तभी उसे अपने भैया की आवाज़ सुनाई दी।
“गोलू, जल्दी से बाहर आओ तुम्हारा दोस्त पिंटू आया है”।
पिंटू का नाम सुनते ही गोलू कमरे के बाहर दौड़ा। पिंकू के हाथ में एक किताब थी।
गोलू बोला – “ये क्या कहानियों की किताब है”।
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पिंटू हँसते हुए बोला – “ये तो जानवरों की किताब है। इसमें बहुत सारे जानवर उनके नाम के साथ दिए गए है”।
“सच! तब तो मैं इसे आज चिड़ियाघर में लेकर जाऊँगा”।
“ठीक है, मैं शाम को आऊंगा तब मुझे बताना कि तुमने कौन-कौन से जानवर देखे” पिंटू मुस्कुराते हुए बोला।
गोलू खुश होकर उछलते हुए भैया के पास पहुँचा।
भैया मोबाइल में कोई गेम खेल रहे थे।
“भैया, मेरी किताब देखो। इसमें बहुत सारे जानवर है”।
“परेशान मत करो” भैया ने गुस्से से कहा।
गोलू उदास हो गया। वह वहीँ पर खड़ा रहा। बहुत देर तक खड़े रहने के कारण उसके पैर दुखने लगे।
वह धीरे से बोला – “भैया…”
“ओफ़्फ़ो… अभी तक गए नहीं तुम”? कहते हुए भैया ने मोबाईल पर और तेज उँगलियाँ चलाने लगे।
गोलू दुखी होता हुआ दीदी के पास पहुँचा।
वह अपने मोबाइल में बैठकर कुछ टाइप कर रही थी।
“दीदी, मेरी किताब देखो। इसमें बहुत सारे जानवर है”।
“बाद में देखूँगी। अभी मैं अपनी सहेली से बात कर रही हूँ” दीदी ने बिना सिर उठाये ही जवाब दिया।
“पर आप बात कहाँ कर रही हो। आप तो कुछ लिख रही हो” गोलू ने मोबाइल को देखते हुए कहा।
“आजकल तो लिखकर ही बात होती है। तुम जाओ अब यहाँ से” कहते हुए दीदी ने गोलू को झिड़क दिया।
गोलू की आँखें भर आई।
मम्मी को ढूँढता हुआ जब वह उनकी कमरे में पहुँचा तो मम्मी किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी।
“मम्मी…” गोलू ने रुंआसे होते हुए कहा।
मम्मी ने उसे हाथ हिलाकर चुप रहने का इशारा किया और वापस बात करने लगी।
गोलू ने किताब को अपने गले से लगा लिया और आँसूं पोंछते हुए पापा के पास जा पहुँचा।
पर ये क्या, पापा मोबाइल में क्रिकेट देख रहे थे।
वह पापा के पास जाकर खड़ा हो गया।
तभी पापा ने उसे देखा और बोला – “अरे गोलू, इतना चुपचाप क्यों बैठे हो”?
गोलू की आँखें डबडबा गई।
वह बोला – “आपने आज चिड़ियाघर चलने को कहा था”।
“फिर कभी चलेंगे। आज बहुत बढ़िया मैच चल रहा है”।
गोलू बहुत देर तक चुपचाप बैठा रहा फिर बोला – “पापा, चिड़ियाघर …”।
“कहा ना कि फिर कभी दिखा लाऊंगा” पापा ने झुंझलाते हुए कहा।
“मुझे वापस मत लाना पापा, इस घर में मुझसे कोई बात नहीं करता है। आप मुझे चिड़ियाघर में ही छोड़ आओ पापा”।
कहते हुए गोलू जोर जोर से रोने लगा।
पापा सन्न रह गए। उन्होंने तुरंत मोबाइल को किनारे रखा और गोलू को गोदी में उठा लिया।
पापा का दुलार देखकर गोलू की सिसकियाँ बंध गई।
गोलू का रोना सुनकर भैया, दीदी और मम्मी भी वहाँ आ गए।
पापा गोलू को चूम रहे थे, प्यार कर रहे थे और उसे चुप करा रहे थे।
तभी भैया बोले – “मैं इतवार के दिन मोबाइल को हाथ भी नहीं लगाऊंगा”।
“मैं भी…” दीदी अपना मोबाइल पापा के मोबाइल के पास रखते हुए बोली।
“और मैं भी…” कहते हुए मम्मी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए।
मम्मी को कान पकड़े देख गोलू जोर से हँस पड़ा और उसके साथ साथ पापा, भैया और दीदी भी।
और फ़िर उसके बाद गोलू कभी अकेला नहीं रहा।