गोलू की मुस्कान हिंदी कहानी: गोलू के जन्मदिन पर उसके पापा ने उसे एक सुंदर साइकिल उपहार में दी। अपना मनपसंद गिफ्ट पाकर गोलू बहुत खुश था। खुशी के साथ उसे मलाल भी था। मलाल यह था कि उसे साइकिल चलाना नहीं आती थी इसलिए उसने अपने दोस्त वैभव से कहा, “मुझे साइकिल चलाना सीखा दोगे?”
“हां क्यों नहीं। कल शाम को पब्लिक पार्क मे आ जाना। वहीं पर तुम्हें साइकिल चलाना सीखा दूंगा। यह तो मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है” वैभव ने कालर ऊंची करते हुए कहा।
“अरे ये हाथों का ही नहीं बल्कि पैरों और दिमाग का काम है” गोलू ने हंसते हुए कहा।
गोलू की मुस्कान: आरती लोहनी की प्रेरणादायक हिंदी कहानी
दूसरे दिन शाम होते ही गोलू अपनी साइकिल लेकर पार्क में पहुंच गया। थोड़ी ही देर में दो-चार दोस्तों के साथ वैभव भी आ गया। सब ने मिल कर गोलू को साइकिल चलाना सिखाना शुरू किया।
गोलू कभी लहराता तो कभी हैंडल के साथ बलखाता। कभी-कभी तो वह धड़ाम से गिर भी जाता। एक-दो घंटे प्रैक्टिस करने के बाद वैभव ने कहा, “देखो गोलू दो-चार दिन में तुम परफैक्ट हो जाओगे।”
“वैभव मुझे अपने आप पर भी भरोसा है” गोलू ने हंसते हुए कहा।
कुछ दिनों के बाद गोलू साइकिल चलाना सीख चुका था। वह घर का काम करने से लेकर स्कूल जाने तक सब साइकिल से ही करता | एक दिन वह स्कूल से आ रहा था तो अचानक उसकी साइकिल के सामने एक पप्पी (कुत्ते का बच्चा) आ गया।
उसे बचाने के चक्कर में गोलू सड़क के किनारे लगी मिट्टी के बर्तन व खिलौने बेचने वाले की दुकान में जा घुसा। वह गरीब दुकानदार कुछ करता उससे पहले गोलू फुर्ति से उठ और साइकिल उठा कर घर भाग गया।
उसे हांफते डर देख मम्मी ने पूछा, “अरे गोलू बहुत तेज साइकिल मत चलाया करो। देखो कितना हांफ रहे हो।”
“हां, मम्मी मैं अपने दोस्त के साथ साइकिल कौ रेस करते हुए आया इसलिए हांफ रहा हूं” गोलू ने झूठ बोलते हुए कहा।
“चलो मुंह-हाथ धो लो। मैं खाना लाती हूं।” मम्मी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा।
गोलू अभी भी उस गरीब दुकानदार के बारे में सोच रहा था। उसके मन में बार-बार यही विचार आ रहा था कि जो हुआ, गलत हुआ। उस बेचारे को उसकी वजह से काफी नुक्सान हुआ था। उसके चेहरे पर उदासी थी।
रात हो चुकी थी लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी। उसकी आंखों के सामने फिर वही चेहरा आ रहा था।
सुबह होते ही मम्मी ने पूछा, “बेटा क्या तुम रात भर सोए नहीं, क्या बात है? मम्मी को भी नहीं बताओगे?”
मम्मी की बात सुनकर गोलू उनसे लिपट कर रोने लगा। उसने सब कुछ सच-सच बता दिया। सारी बात सुनकर पापा ने कहा, “बेटा तुम्हारा कहना बिल्कुल ठीक है। किसी गरीब को नुक्सान पहुंचाना बिल्कुल गलत है पर बेटा तुमने यह सब जानबूझ कर नहीं किया। तुमने एक पुण्य का काम भी किया है।”
“इसमें कौन-सा पुण्य हुआ जी” मम्मी ने उसके पापा से पूछा।
“तुम्हारे बेटे ने एक नन्हे पप्पी की जान जो बचाई है” उसके पापा ने कहा।
अगले ही पल गोलू और उसके पापा-मम्मी उस मिट्टी के बर्तन और खिलौने बेचने वाले के पास पहुंच गए। गोलू को देखते ही दुकानदार ने पूछा, “बेटा कल तुम ही थे न जो मेरी दुकान से टकरा गए थे। तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई बेटा?”
यह सुन वे सब एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि दुकानदार गोलू की हरकत से नाराज होगा परंतु वह तो शिकायत ही नहीं कर रहा था।
गोलू के पापा ने हाथ जोड़कर कहा, “भैया जी जो नुक्सान हुआ है उसका मुआवजा देने के लिए हम आए हैं।”
“कैसी बातें कर रहे हो भाई। आपके बच्चे ने एक नन्हे पप्पी की जान बचाकर बहुत बड़ा काम किया है। मेरा तो छोटा-मोटा नुक्सान हुआ है जो एक जान से बढ़कर नहीं हो सकता” दुकानदार ने गोलू की तारीफ करते हुए कहा।
अब गोलू के मन से वह बोझ उतर गया जो वह कल से ढो रहा था। अब उसे तसल्ली मिल चुकी थी और गोलू के होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान भी थी।