गुलेल तोड़ दी: अभिनय सातवीं कक्षा की परीक्षा दे चुका था। उसका परीक्षा परिणाम आने में अभी कई दिन बाकी थे। उसके बार-बार कहने पर उसके पापा उसे अपने गांव उसके चाचा-चाची तथा दादा-दादी के पास छोड़ आए। अभिनय को गांव के खुले वातावरण में घूमना-फिरना बहुत पसंद था। उसकी अपने चाचा जी के बेटे गुलजार से बनती भी बहुत थी। वह दोनों नाश्ता करने के बाद घर से घूमने-फिरने निकल जाते थे।
गुलेल तोड़ दी: प्रिं. विजय कुमार की पक्षी संरक्षण पर प्रेरणादायक हिंदी कहानी
घूमने-फिरने के शौक में वे कभी-कभी दोपहर का खाना भी भूल जाते। जिस दिन वे देर से घर लौटते, उन्हें उनके दादा-दादी से बहुत डांट पड़ती थी लेकिन वे दोनों यह कहकर छूट जाते थे, कि दादा जी, छुट्टियां तो हैं, जब स्कूल लग जाएंगे तो हमें घूमने-फिरने का समय ही कहां मिलेगा? गुलजार कहता, दादा जी मुझे अभिनय के साथ घूमने का मौका कब मिलेगा? फिर घर देर से नहीं आएंगे।
गुलजार, अभिनय को कभी-कभी अपने गांव के बड़े बाग में ले जाता था, जहां दोनों पक्षियों की मीठी आवाजें सुनते। कभी घर से लाया हुआ नमक लगाकर कच्चे आम खाते, कभी पक्षियों को पकड़ने की कोशिश करते, कभी गांव के बाहर बहते दरिया में नहाने लगते और कभी दरिया में तैरती मछलियों को निहारते रहते थे। एक दिन गुलजार अपने एक मित्र के घर से मशीनी गुलेल लेकर आया और उसने अपने पापा-मम्मी के डर से वह गुलेल (slingshot / catapult) अपने कमरे में छुपा कर रख दी।
दूसरे दिन जब वह अभिनय को साथ लेकर बड़े बाग में गया तो अपने साथ वह मशीनी गुलेल भी ले गया। रास्ते में अभिनय के पूछने पर उसने उसे बताया कि यह मशीनी गुलेल है, वह यह गुलेल अपने मित्र अविनाश से लेकर आया है।
उनके खेतों में पक्षी जब उनकी फसलों का नुकसान करते हैं तो वह उन्हें इस मशीनी गुलेल से मारता है और छुट्टियों में गांव के बड़े बाग में जाकर इस मशीनी गुलेल से पक्षियों का शिकार करता है। मैं भी इस बार अपने गांव में लगने वाले मेले से ऐसी ही मशीनी गुलेल खरीदूंगा और पक्षियों का शिकार किया करूंगा।

गुलजार को लगा कि अभिनय उसकी बातें सुनकर बहुत खुश होगा लेकिन अभिनय ने गुलजार को कोई जवाब न दिया। गुलजार समझ गया था कि अभिनय को उसकी बातें अच्छी नहीं लगीं। गुलजार उस मशीनी गुलेल से पक्षियों को शिकार बनाने की कोशिश करता रहा परंतु वह किसी भी पक्षी को अपना शिकार न बना सका।
रात को सोते समय गुलजार ने अभिनय को पूछा, ‘यार अभिनय, क्या तुम्हें मशीनी गुलेल से मेरा पक्षियों का शिकार करना अच्छा नहीं लगा? अभिनय ने आगे से उत्तर दिया, ‘भाई, तुम तो मुझसे बड़ी क्लास में पढ़ते हो, क्या तुम्हारे विज्ञान के अध्यापक ने तुम्हें यह नहीं पढ़ाया कि ये पक्षी हमारी कितनी सहायता करते हैं? यदि ये पक्षी न हों तो उन कीड़ों-मकौड़ों को कौन खाएगा, जो हमारे लिए हानिकारक हैं?’
अभिनय ने आगे कहा, ‘हमारे विज्ञान के अध्यापक ने बताया था कि पक्षी उतना हमारा नुकसान नहीं करते, जितनी हमारी फसलों की कीड़ों-मकौड़ों से रक्षा करतें हैं।’ वे दोनों बातें करते-करते सो गए।
गुलजार के पापा की छुट्टी थी। सुबह नाश्ता करने के पश्चात गुलजार के पापा ने उन्हें कहा, “बच्चो, आज आप दोनों खेलने के लिए बाहर नहीं जाओगे, आज मैं आपको बच्चों की एक फिल्म दिखाऊंगा।”
फिल्म देखने की बात सुनकर वे दोनों बहुत खुश हुए। अभी फिल्म शुरू नहीं हुई थी कि अविनाश गुलजार से अपनी मशीनी गुलेल लेने आ गया। गुलजार के पापा ने उसे भी फिल्म देखने के लिए बिठा लिया।
वह फिल्म एक ऐसे बच्चे की थी जो गुलेल से पक्षियों का शिकार करता था। एक दिन वह बीमार पड़ जाता है। उसका कई डॉक्टरों से उपचार करवाया गया, परंतु उसकी बीमारी ठीक नहीं हुई। अंत में एक वैद्य की दवाई से वह ठीक हो गया।
उस बच्चे के पिता जी ने उस वैद्य को पूछा कि मेरे बच्चे की बीमारी इतने डाक्टर ठीक नहीं कर सके, आपने उसे कैसे ठीक कर दिया? वैद्य ने बताया, इस बीमारी को केवल एक बूटी ठीक करती है, जिसके बीज पक्षी दूर जंगलों से लाकर इधर-उधर फेंक देते हैं, वही बीज पौधे बनकर उग पड़ते हैं। उन पौधों से ही यह दवाई बनती है। उस बच्चे ने उस वैद्य की बात सुनते ही अपनी गुलेल तोड़ दी और उस दिन के बाद पक्षियों का शिकार नहीं किया।
अविनाश ने भी फिल्म देखकर अपनी गुलेल तोड़ दी। गुलजार तथा अविनाश ने कभी पक्षियों को न मारने की कसम खाई। गुलजार ने पूछा, पापा आपको हमारी मशीनी गुलेल से पक्षियों का शिकार करने की बात कैसे पता चली? गुलजार के पापा ने उसे बताया, बेटा मैंने रात को आपकी सारी बातें सुन ली थीं।