जब भी क्लास में शर्मा सर थोड़ी देर से आते तो बच्चे उनके नाम का मजाक उड़ाया करते थे। शैतानी में सबसे आगे रहने वाले सागर ने तो उन्हें बंसी मैडम ही कहना शुरू कर दिया था।
दरअसल सागर की माँ नहीं थी और पापा घर संभालने के साथ साथ ऑफ़िस भी जाते थे। पर सुबह से रात तक बाहर काम करने के कारण वह सागर की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते थे और उन्होंने उसके लिए एक ट्यूशन भी लगवा दी थी।
ट्यूशन में भी सागर ने दो चार दिन तो ठीक से पढ़ा पर फ़िर उसने पढ़ाई की जगह खेलना कूदना और नदी में जाकर तैरना अच्छे से सीख लिया था।
किसी भी सवाल का जवाब नहीं देने के कारण उसे हर दूसरे पीरियड में कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया जाता।
यह सज़ा उसकी मनपसंद सजा थी। वह दबे पाँव खेल के मैदान की ओर चल देता वहाँ पर खूब धमाचोकड़ी मचाता।
घंटी बजने से कुछ ही देर पहले वापस आकर खड़ा हो जाता।
शर्मा सर के सरल स्वभाव और पढ़ाने के तरीके को देखकर सभी बच्चे उन्हें बेहद प्यार करने लगे थे।
कठिन शब्दों और व्याकरण को वह मज़ेदार किस्से की तरह सुनाते।
एक दिन शर्मा सर कॉरिडोर से निकल रहे थे कि तभी सागर अपने दोस्त अमित के साथ गुज़रा।
सर को देखते ही सागर अमित से बोला – “मैंने रात भर जागकर सारे पर्यायवाची याद किये है”।
अमित ने हँसते हुए कहा – “तो जरा एक दो मुझे भी सुना दे”।
सागर ने जोर से कहा – “बंसी का पर्यायवाची है, बाँसुरी, मुरली, वेणु, वंशिका”।
अमित को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में नहीं सोचा था की सागर, शर्मा सर के नाम का मजाक उड़ाने के लिए पर्यायवाची शब्द बताने के लिए कह रहा है।
शर्मा सर उनके पास आये और मुस्कुराते हुए सागर से बोले – “तुमने तो सच में बहुत पढ़ाई की है। और क्या पढ़ा है बंसी के बारे में…”
सागर बोला – “बाँसुरी सबसे प्राचीन संगीत वाद्य भी कहलाता है और हरिप्रसाद चौरसिया जी का बाँसुरी वादन विश्व प्रसिद्ध है”।
शर्मा सर बोले – “कल बंसी के बारें में और जानकारी लाना”।
सागर को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई। उसने सोचा अब वह सर के सामने ही उन्हें बंसी के बारें में बताता रहेगा और वह सब कुछ जानते हुए भी उसे कुछ नहीं कह पाएंगे।
पढ़ाई के बीच में भी वह जानबूझकर सर को बंसी के बारें में बताता और सभी बच्चों को उसका यह बर्ताव बहुत बुरा लगता।
कुछ ही दिनों बाद शिक्षक दिवस था। बहुत बच्चों ने नृत्य, गायन, वाद विवाद जैसी अनेक प्रतियोगिताओं में भाग लिया था।
शिक्षक दिवस के दिन सभी बच्चे एक से बढ़कर एक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे।
तभी प्रिंसिपल सर ने स्टेज पर आकर बोला – “शर्मा सर के कहने पर आज एक बिनई तरह की प्रतियोगिता आयोजित की गई है, जिसमें बच्चों को हमारे प्राचीन वाद्य यंत्रों के बारें में जानकारी देनी है”।
बच्चे यह सुनकर खुश हो गए और तुरंत स्टेज पर जाकर टेबल, हारमोनियम, सितार, वीणा आदि के बारें में बताने लगे।
जब प्रिंसिपल सर विजेता बच्चें का नाम बताने के लिए आगे आये तो शर्मा सर माइक पर बोले – “सागर, स्टेज पर आओ”।
अपना नाम सुनकर सागर सन्न खड़ा रह गया। शर्मा सर के दुबारा बुलाने पर वह स्टेज पर गया।
शर्मा सर ने प्यार से कहा – “बंसी के बारें में कुछ नहीं बताओगे”?
शर्म और ग्लानि से सागर की आँखें भर आई। उसने भर्राये गले से बाँसुरी के बारें में बताना शुरू किया और लगातार बोलता रहा।
जब उसने अपनी बात ख़त्म की तो पूरा हाल तालियों से गड़गड़ा उठा।
सागर ने शर्मा सर की ओर देखा जो अपने ख़ुशी के आँसूं पोंछते हुए उसे ही देख रहे थे।
वह दौड़ा ओर उनके पैरों से लिपटकर फूट फूट कर रोने लगा। सिसकियों के बीच बस एक आवाज़ सुनाई दे रही थी, “हैप्पी टीचर्स-डे सर…”