वह दोस्त ही रहा: गोविंद शर्मा

वह दोस्त ही रहा: गोविंद शर्मा की सच्ची दोस्ती पर प्रेरणादायक हिंदी कहानी

वह दोस्त ही रहा: राजू और बिरजू दोनों दोस्त थे। दोनों 8वीं के छात्र, पर बिरजू एकदम पहलवानों जैसा। वह किसी से लड़ता-झगड़ता नहीं था, पर स्कूल के जो बच्चे उसे जानते थे, वे उससे डरते थे क्योंकि बिरजू को कोई छेड़ बैठता तो उसे वह सबक जरूर सिखाता। इसके विपरीत राजू कुछ कमजोर, पर शरारती पूरा। वह किसी न किसी से उलझता रहता। जब मुसीबत में फंस जाता तो बिरजू को बुलाता।

बिसजू उसकी मदद तो करता, पर उसे समझाता भी कि शरारतें करना अच्छी बात नहीं है। उसका दोस्त जो ठहरा। उसकी मदद करना और समझाना-सिखाना उसका कर्त्तव्य था, पर राजू पर उसकी बातों का ज्यादा असर नहीं हो रहा था।

वह दोस्त ही रहा: गोविंद शर्मा

एक दिन राजू और बिरजू घूमते-घूमते अपने शहर के दूसरे किनारे पर पहुंच गए। वहां की गलियों में दोनों को कोई नहीं जानता था। बिरजू शांत था, राजू हमेशा की तरह शरारती। वह कभी किसी घर के दरवाजे पर ठोकर जमा देता तो कभी अकारण डोरबैल बजा देता। लोगों के घरों के आगे बने बगीचे से फूल-पत्तियां तोड़ लेता। मुंह से अजीब-अजीब आवाजें निकालता। बिरजू उसे ऐसा करने से बार-बार रोक रहा था, पर राजू पर कोई असर नहीं हो रहा था।

यह क्या? राजू ने तो हद ही कर दी। एक पत्थर उठाया और एक घर के भीतर फैंक दिया। छन्न की आवाज आई। बिरजू ने कहा, “रे तुमने यह क्या कर दिया। तुम्हारे पत्थर से घर के भीतर कोई शीशा टूटा है। देखना अब घर के भीतर से लोग आएंगे हमसे लड़ने के लिए।”

राजू ने बेपरवाही से जवाब दिया, “अरे तुम्हारे होते मुझे क्या परवाह है। जिसका बिरजू है यार, उसका सदा होगा बेड़ा पार।”

इतने में घर से कुछ लोग निकले और जोर से चिल्लाए, “किसने तोड़ा पत्थर मार कर हमारी कार का शीशा?” इतना सुनते ही राजू ने घबराकर बिरजू की तरफ देखा।

बिरजू ने आव देखा न ताव, तुरंत वहां से भाग छूटा। उनमें से एक-दो ने बिरजू का पीछा करना चाहा पर बिरजू भागने में तेज था। वह गायब हो गया । राजू के पांव तो जैसे वहीं जम गए। अरे यह क्या हुआ? मेरे लिए हर जगह लड़ने के लिए तैयार रहने वाला बिरजू आज भाग गया? मुझे मुसीबत में छोड़कर गया? यह कैसा दोस्त है? आज से, अभी से बिरजू मेरा दोस्त नहीं है।

घर के भीतर से निकले लोगों में से एक राजू से बोला, “क्या वह तुम्हारा दोस्त है?”

“नहीं, वह मेरा दोस्त नहीं हैं”।

“हमें तो पता नहीं कि तुम दोनों में से किसने पत्थर फैंक कर घर में खड़ी कार का शीशा तोड़ा है। हम तो तुम दोनों को ही पिटाई करते पर उसने यहां से भाग कर साबित कर दिया कि दोषी वही है। इस तरह तुम पिटाई से बच गए।”

यह कह कर वे लोग घर के भीतर चले गए। राजू सभी शरार्तें भूल चुका था। वह घर वापस जाने लगा। एक गली के मोड़ पर उसे बिरजू दिखाई दे गया। बिर्जू लपक कर उसके पास आया और बोला, “तुम्हें उन लोगों ने कुछ कहा तो नहीं?”

राजू बोला, “कहा तो मुझे था, पर वह मुझे नहीं तुम्हें कहा था। उन्होंने कहा था कि यह अच्छा है कि भागने वाला तुम्हारा। अगर वह तुम्हारा दोस्त होता तो आज हम तुम्हें जरूर पीटते। तुम ऐसे शरारती बच्चों के साथ कभी मत रहना।”

“राजू लगता है तुम मुझसे नाराज हो। मैं तुम्हारा दोस्त हूं क्या तुम नहीं मानते हो?”

“हां बिरजू, एक बार तो मैंने यह मान ही लिया था कि तुम मेरे दोस्त नहीं हो। तुम मुझे पीटने के लिए छोड़ कर भाग गए पर बाद में उन लोगों की बातों से लगा कि मुझे तुम्हारी दोस्ती पर नाज करना चाहिए। अगर तुम वहीँ रहते तो वे हम दोनों को दोषी मानकर हमारी पियई करते क्योंकि वे हमसे बड़े और ज्यादा थे। तुम्हारे भागने से वे यह समझे कि पत्थर फैंकने वाला मैं नहीं, तुम हो। सदा तुम मेरे पास खड़े होकर मुझे बचाते रहे हो। आज तुमने भाग कर मे कसूर अपने सिर लेकर मुझे बचाया है। उन लोगों ने मुझे सीख दी है कि मुझे तुम जैसे शरारती बच्चों से दूर रहना चाहिए। वास्तव में यह सीख कहती है कि तुम्हें मुझसे दूर रहना चाहिए।”

राजू अपनी बात जारी रखते हुए बोला, “बताओ, क्‍या तुम मेरे दोस्त बने रहोगे या उन लोगों की बात मानकर…।”

“अरे नहीं मैं तुम्हारा दोस्त हूं और रहूंगा।”

“वैसे मैं दूरी बनाने की सोच चुका हूं।”

“मुझसे?”

“नहीं, अपनी पंगा लेने की आदतों से, शरारतें करने से।”

इतना सुनते ही बिरजू को हंसी आ गई। फिर भला राजू हंसे बिना कैसे रहता।

~ ‘वह दोस्त ही रहा‘ story by ‘गोविंद शर्मा

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