“हाँ हाँ… आपको भला क्यों अच्छा लगेगा मेरा उदास चेहरा। मामा तो हर साल राखी के एक दिन पहले ही आ जाते हैं आपसे राखी बँधवाने के लिए और पापा को तो देखो जरा, बुआ से कितने चाव से तीन-तीन राखी बँधवाते हैं और एक मैं ही हूँ जिसके हाथ में राखी तो क्या एक धागा तक नहीं होता।”
उसकी माँ यह सुनकर भावुक हो गई और बड़े ही प्यार से बोली – “तो आ मैं ही बाँध देती हूँ ना तुझे राखी जितनी तू कहेगा, उतनी सारी, ढेर सारी।”
“नहीं आप तो मेरी माँ हो। राखी तो बहने बाँधती हैं ना।” और यह कहते हुए गोलमटोल सा नन्हा टूटू जोरो से रो पड़ा और भागते हुए अपने कमरे में चला गया।
थोड़ी ही देर के बाद जब खीर की सुगंध से घर कमरा महक उठा तो टूटू खुद को रोक नहीं सका और दौड़कर किचन में गया जहाँ उसकी माँ खीर बना रही थी।
टूटू को देखते ही माँ खुश हो गई – आखिर उन्होंने आज स्पेशल खीर टूटू का मूड ठीक करने के लिए ही तो खीर बनाई थी।
उन्होंने मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से टूटू को गोदी में उठा लिया।
टूटू मुस्कुराते हुए बोला – “वाह… खीर आज तो मजा आ गया माँ, पर फिर वो खीर के भगोने को ध्यान से देखते हुए बोला – “पर माँ आपको तो पता हैं मैं बिना किशमिश के खीर खाता ही नहीं हूँ।”
“अरे, किशमिश तो खत्म हो गई हैं चलो हम लोग बाज़ार से जाकर ले आते है…” माँ दुलार से उसका माथा चूमते हुए बोली।
बाहर जाकर माँ ने एक रिक्शा किया और टूटू को अपनी गोदी में बैठा लिया।
आज बाज़ार में त्यौहार की वजह से बहुत चहल- पहल थी। सब तरफ मिठाइयों की दुकानों में एक से बढ़कर एक मिठाई सजी हुई थी जिन्हें देखकर टूटू के मुँह में पानी आ गया। टूटू ने अपने कई दोस्तों को भी देखा जो माथे पर चावल रोली का लाल तिलक लगाये हुए अपने हाथों की सुनहरी चमकीली राखियों को बहुत खुश होकर देख रहे थे और अपने मम्मी पापा और बहनों के साथ खिलौने और गुब्बारे खरीद रहे थे।
टीटू को अब अपनी कोई बहन नहीं होने का दुःख और भी ज्यादा सताने लगा। जब उसका रिक्शा वो थोड़ा ओर आगे बढ़ा तो अचानक रिख्शे वाले ने इतनी जोर से ब्रेक लगाये कि टूटू गिरते-गिरते बचा।