जब भी कलरव करते पक्षी उस पर आकर बैठते या राहगीर उसकी छाया में आराम करने आते तो वह मधुर गीत गाता जिससे सभी अपनी परेशानियां भूल जाते और ख़ुशी से झूम उठते। धीरे -धीरे उस पेड़ की ख्याति दूर दूर तक पहुँचने लगी। लोग उस पेड़ को देखने के लिए दूर दराज़ से आने लगे।
पहले तो पेड़ ये देखकर बहुत खुश होता था पर फिर उसे लगने लगा की मैं तो जंगल में एक ही जगह खड़ा रहता हूँ जिसके कारण जो लोग यहाँ नहीं आ पाते हैं वे मेरा संगीत सुनने से वंचित रह जाते हैं। मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे मैं चल फिर सकू और सबके पास पहुँचकर उन्हें गाना सुनाऊ। बस फिर क्या था पेड़ ने तुरंत अपनी इच्छा वनदेवी को बताई। वनदेवी उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई। उन्होंने कहा – “पर इससे तो तुम अपनी अहमियत खो दोगे। जब तुम्हे इतना प्यार और सम्मान यहाँ मिल रहा हैं तो यहाँ से जाने को क्या जरूरत हैं।”
पर वह लगातार गिड़गिड़ाता हुआ वनदेवी से प्रार्थना करने लगा। वनदेवी बोली “हमें कभी भी अपने संगी साथिओं को दुखी करके अनजाने लोगों के पीछे नहीं जाना चाहिए।”
पर पेड़ कहा मानने वाला था। वह विनती भरे स्वर में बोला – “आपको मेरी यह इच्छा पूरी करनी ही होगी क्योंकि आज तक मैंने आपसे कुछ नहीं माँगा हैं।”
वनदेवी उसे आखरी बार समझाते हुए बोली – “पर जो लोग यहाँ तुम्हें सुनने आते हैं उनका क्या होगा।”
पेड़ बोला – “जब मैं ही घूम- घूम कर सबके यहाँ अपना मधुर संगीत सुनाने जाऊँगा तो किसी को यहाँ आने की परेशानी ही नहीं होगी।”…
वह लगातार वनदेवी से विनती करने लगा। हारकर वनदेवी ने उसकी बात मान ली और उसे चलने की शक्ति दे दी। पेड़ बच्चो की तरह खुश हो गया और जंगल से बाहर जाने लगा।
सभी पक्षी उसे जाता देखकर घबरा गए और तेजी से उसके पास उड़ते हुए आकर बड़े ही प्यार से बोले – “हम सब तुम्हारे मधुर संगीत को सुने बिना एक दिन भी नहीं रह सकते। कृपया हमें छोड़कर मत जाओ।”
ये सुनकर पेड़ इठलाता हुआ बोला – “तुम लोगों ने मेरा गाना बहुत सुन लिया हैं। अब मैं जंगल के बाहर जाऊँगा, जहा पर सब लोग मेरे मधुर संगीत को सुनकर मुझे तुमसे भी ज्यादा प्यार करेंगे।”
और यह कहकर पेड़ इतराता हुआ एक गाँव की ओर चल पड़ा। गाँव के अन्दर जाते ही उसे एक स्कूल दिखा जहाँ पर बच्चे पढाई कर रहे थे। वहाँ जाकर जैसे ही उसने मधुर धुन बजानी शुरू की तो वहाँ का अध्यापक गुस्से में लगभग दौड़ता हुआ बाहर आया और चिल्लाते हुए बोला – “भागो यहाँ से… यहाँ पहले ही बच्चों ने मेरी नाक में दम कर रखा हैं और ऊपर से तुम परेशान करने आ गए।”
पेड़ यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। आज तक किसी ने भी उसे गाना गाने पर इस तरह अपमानित नहीं किया था वह दुखी होकर चुपचाप आगे बढ़ चला।
आगे जाने पर उसे एक हस्पताल दिखा जहा पर मरीजों की लम्बी कतार लगी थी। पेड़ ने सोचा कि मैं इन मरीजों के पास जाकर मधुर संगीत सुनाता हूँ जिससे ये अपना दुःख भूल जायेंगे और खुश हो जायेंगे। यह सोचकर उसने जैसे ही संगीत की धुन बजानी आरम्भ की… डाक्टर अन्दर से आग बबूला होता हुआ बाहर आया और चीखा – “क्यों तंग कर रहे हो यहाँ हम लोगो को। देख रहे हो यहाँ मरीजों का इलाज किया जा रहा हैं और तुम उन्हें परेशान करने के लिए आ गए।”
दुःख के मारे पेड़ की आँखों में आँसूं आ गए और वह चुपचाप आगे बढ़ चला। तभी उसे एक जगह मंदिर दिखाई पड़ा जिसके आगे बहुत से भिखारी गा बजाकर भीख माँग रहे थे। पेड़ ने सोचा यहाँ पर मुझे कोई गाने के लिए मना नहीं करेगा और वह खुश होकर उस ओर चल पड़ा। वहाँ पहुंचकर उसने जैसी ही बड़े ही मीठे स्वर में गीत गाना शुरू किया, तो सारे भिखारी जो गा-बजा रहे थे, उसके पास आ गए और उसे पत्थरों से मारकर भगाने लगे।
पेड़ बेचारा रोते हुए कहने लगा – “मैंने तुम लोगो का क्या बिगाड़ा हैं। क्यों मार रहे हो मुझे।”
“तुम अगर यहाँ इतनी सुरीला गाओगे तो हमें कौन पैसे देगा। और तुम अपना जंगल छोड़कर हम लोगो के बीच में यहाँ क्या कर रहे हो। भागो यहाँ से।”
बेचारा पेड़ फूट फूटकर रोने लगा और अपने उन संगी साथियों को याद करने लगा जो उसे कितना प्यार करते थे। पेड़ वापस अपने जंगल की ओर चल पड़ा अब वो यह जान गया था कि वनदेवी सही कह रही थी… सच्चा सुख अपने लोगो के बीच में रहने से ही होता हैं यहाँ वहाँ भटकने से कभी भी हमें मान सम्मान नहीं मिलता हैं और किसी के यहाँ भी बिना बुलाये जाकर हम अपनी अहमियत खो देते हैं।