पप्पी में अब पहले से काफी परिवर्तन आया हुआ था। वह घर भी लेट आने लगा था। पिछले वर्ष वह अपनी कक्षा में आगे बैठने वाले विद्यार्थियों में से एक था लेकिन इस वर्ष वह उन लड़कों के साथ घूमता नजर आता जो कक्षा में पीछे बैठते थे और प्रायः मुर्गा बनते रहे थे। उनको अध्यापक जी ‘नालायक टोली’ कहा करते थे।
मम्मी के पूछने पर पप्पी घर लेट आने का कोई न कोई बहाना बना ही लेता। कभी कहता, उसकी साइकिल की हवा निकल गई थी। कभी कहता, किसी दोस्त के घर कापी या किताब लेनी थी, उधर चला गया था और कभी स्कूल में फंक्शन होने की बात कहता।
आखिर एक दिन बिल्ली थैले से बाहर आ ही गई। पप्पी घर काफी देर के बाद आया। फिर बैड पर लेट गया। जल्दी ही उसकी झपकी लग गई।
पापा ने उसे सोया हुआ देखकर उसका बैग उठाया। उसकी तलाशी ली। जब ताश की एक डिबिया उनके हाथ लगी तो वह सन्न रह गए। अब उनका शक असलियत में बदलने लगा। उन्होंने पप्पी के बस्ते में उसी तरह किताबें-कापियां डाल दीं और साथ ही ताश की डिबिया भी। अगला दिन शनिवार था। पप्पी ने मम्मी से स्कूल की फीस के तौर पर 20 रुपए लिए। फीस के पैसे जेब में डालकर वह स्कूल की तरफ रवाना हो गया। वास्तव में अभी स्कूल में फीस देने की आखिरी तिथि में पांच दिन पड़े थे। पप्पी ने मम्मी को बोला था, “मम्मा स्कूल की फीस दो न। कल आखिरी दिन है फीस जमा करवाने का। वर्ना जुर्माना लग जाएगा।”
शनिवार का दिन होने के कारण स्कूल से जल्दी छुट्टी हो गई थी। हमेशा की तरह पप्पी अपने दोस्तों, मिट्ठू, जग्गी, बिट्टू और हैप्पी के साथ एक उजड़े से घर के पास आ गया। फिर वे सभी ताश खेलने में व्यस्त हो गए। पप्पी इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि उसे कोई दूर खड़ा देख रहा है। सभी दोस्त काफी देर तक ताश खेलते रहे। पप्पी जुए में बीस के बीस रुपए हार गया।
जब वह घर लौटा तो पापा ने उससे फीस के बारे में पूछा तो बोला, “जमा करवा दी थी पापा।” इतना कहकर वह फिर इधर-उधर हो गया ताकि पापा उससे कोई और ऐसा सवाल न पूछ लें जिससे असलियत सामने आ जाए।