पप्पी के पापा ने उसके बैग से ताश की डिबिया निकाली और उसमें एक नोट लिख कर रख दिया। इस पर लिखा था, “ताश खेलने की आदत न केवल जुआरी बनाती है बल्कि झूठ बोलने की आदत भी डाल देती है। जुएबाज की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? – तुम्हारे पापा।”
स्कूल से घर लौटते समय आज फिर पप्पी अपने दोस्तों के साथ ताश खेलने के लिए बैठा तो डिबिया में से एक छोटा-सा पत्र निकला। इस पत्र को खोलते समय अचानक ही उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। वह पत्र पढ़ने लगा। उस पत्र को पढ़कर पहले तो वह कुछ देर तक सोचता रहा लेकिन फिर पैसों की शर्त लगाकर जुआ खेलने लगा। झूठ बोलना भी उसे ताश के खेल ने ही सिखाया था। वह मन ही मन शर्मसार होने लगा। उसे इस बात की और भी शर्म आ रही थी कि पापा को उसकी हरकतें पता चल जा ने के बावजूद भी उसे मारपीट नहीं की।
पत्र में लिखे शब्दों में पता नहीं क्या जादू था? वह अपने दोस्तों को ताश सौंपता हुआ बोला, “ये लो ताश। आज से तुम ही खेलो। आगे से कभी ताश नहीं खेलूंगा।”
दोस्तों ने यह सुना तो उनकी हैरानी बढ़ गई। उन्होंने भी वह पत्र पढ़ा। सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। फिर वे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर बोले, “हमारा भी यह फैसला है।”
पप्पी ने ताश के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। पप्पी की जिंदगी में परिवर्तन आ गया। एक रात को मम्मी-पापा ने देखा, पप्पी टेबल लैंप लगाकर पढ़ने में व्यस्त था। यह देखकर पापा बोले, “कई बार बच्चे को डांट की बजाय प्यार की युक्ति से समझाना उचित होता है।”
“बिल्कुल ठीक कहा आपने। मैं आपकी युक्ति को मान गई हूं।” मम्मी बोली।
इस बार वार्षिक परीक्षा में पप्पी ने इतने अंक प्राप्त किए जो मम्मी-पापा को हैरान करने के लिए काफी थे।