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होली के त्योहार से जुड़ी कुछ बाल-कहानियाँ

मुस्कान की होली: मंजरी शुक्ला

घर भर में हड़कंप बचा हुआ था। आठ बरस की नन्ही मुस्कान गिरती पड़ती आगे-आगे भाग रही थी और दादा-दादी, मम्मी-पापा उसके पीछे-पीछे। आखिर दादी हांफते हुए बोली – “रुक जा बेटा, भरे बुढ़ापे में क्या मेरा घुटना तुड़वाकर ही मानेगी”?

यह सुनकर मुस्कान खिलखिलाकर हंस दी ठुमकते हुए बोली – “दादी आप सब मेरे पीछे क्यों पीछे पड़े हो? मैं होली नहीं खेलूंगी।”

अरे बिटिया, होली मत खेलना, पर कम से कम अपनी नई फ्रॉक तो बदल ले वरना अभी तेरे दोस्त आएंगे और तुझे रंग में सराबोर कर देंगे।

पर, ये तो मेरी सबसे पसंदीदा फ्रॉक है न, गुलाबी फ्रॉक… मुस्कान अपनी फ्रॉक की ओर बड़े ही प्यार से देखते हुए बोली।

मां थोड़ा गुस्से से पिताजी की तरफ देखते हुए बोली – “मैं तो पहले ही आपसे कह रही थी कि इतनी सुंदर फ्रॉक आज होली के दिन इसे सुबह-सुबह मत पहनाइए, वर्ना ये बदलेगी ही नहीं।”

पिताजी ने चुपचाप वहां से सरकने में ही अपनी भलाई समझी और पिछले दिन का पुराना पेपर लेकर पढ़ने बैठ गए।

दादाजी बोले – “अरे हम अपनी रानी गुड़िया को और अच्छी फ्रॉक दिलवाएंगे।”

मुस्कान ने बड़ी बड़ी आंखों से दादाजी की ओर देखा और पूछा – “पक्का दिलवाओगे न आप”?

“हां, बिलकुल पक्का”, दादाजी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

“ठीक है” – मुस्कान ने कहते हुए मम्मी की तरफ अपने नन्हे हाथ फैला दिए।

मम्मी ने उसे प्यार से गोद में उठाया और उनके कमरे में चली गई।

थोड़ी ही देर बाद मुस्कान अपनी पुरानी फ्रॉक पहने तैयार थी, जिस पर पहले से ही थोड़ा-थोड़ा रंग लगा हुआ था। मुस्कान ने बाहर आकर देखा कि दादाजी ने दादी के चेहरे पर पीला और गुलाबी गुलाल लगाया हुआ था और दादी दादाजी के माथे पर हरे गुलाल से तिलक कर रही थीं। मुस्कान को यह देखकर बहुत अच्छा लगा।

उसका मन हुआ कि वह भी मुट्टी भर गुलाल लेकर सबके ऊपर उड़ा दे, पर सब उसको देखकर भी अनदेखा कर रहे थे। मुस्कान से अब रुका नहीं जा रहा था, इसलिए वह दादाजी के पास जाकर बोली – “मुझे रंगों से डर लगता है। मैं होली नहीं खेलूंगी और मैं पक्का बता दे रही हूं, अगर किसी ने भी मुझ पर रंग डालने की कोशिश की तो मैं सबसे कुट्टी हो जाऊंगी”। मुस्कान गुलाल की तरफ ललचाई नजरों से देखते हुए बोली।

“नहीं, नहीं… हममें से कोई भी तुम्हें रंग नहीं लगाएगा” – कहते हुए मम्मी मुस्कुरा दी।

मुस्कान ने सोचा कि मम्मी उसकी मान मनौव्वल करेंगी, प्यार से दुलारेंगी और जबरदस्ती उसके मुंह पर ढेर सारा रंग पोत देंगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

मुस्कान ने मम्मी की तरफ देखा जो पापा के साथ गुलाल की थाली सजा रही थीं, मुस्कान चुपचाप जाकर खिड़की के पास खड़ी हो गई। थोड़ी ही देर बाद बाहर से बच्चों की आवाजें आनी शुरू हो गर्इं। मुस्कान से रहा नहीं गया।

उसने धीरे से खिड़की खोली और देखा कि उसके दोस्त पूरी तरह से हरे, गुलाबी, नीले, पीले रंग में रंगे हुए थे। वे सब खूब मस्ती कर रहे थे और एक दूसरे पर पिचकारी से रंग डाल रहे थे।

मुस्कान खुशी से चिल्लाई – “अरे मम्मी, देखो तो जरा निक्की को, कैसे घूम घूम कर सब के बालों में सूखा रंग डाल रही है”!

मुस्कान की बात सुनकर मम्मी वहां आई और रंग बिरंगे बच्चों को देखकर मुस्कुरा उठी।

मुस्कान तो पल भर के लिए भी उसके दोस्तों के ऊपर से नजरें नहीं हटा पा रही थी।

वह अपनी ही धुन में फिर चहकते हुए बोली- “और जरा बबलू को तो देखो, वह तो पूरा फव्वारे के पानी में डूब गया है। ओह, वे सब कितने मजे से छप छप कर रहे है न”?

मम्मी ने मुस्कान को देखा और कहा – “पर, तुम बाहर बिलकुल मत जाना। तुम्हें तो रंग पसंद ही नहीं है न”?

मुस्कान जैसे नींद से जागी और धीरे से बोली – “हां… मुझे भला रंग क्यों पसंद हो? मुझे तो रंग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं”?

मुस्कान अब बिलकुल चुपचाप खड़ी हो गई। पर तभी उसके दोस्तों ने जोरदार नाचना शुरू कर दिया।

“अरे, ये गाने की आवाज कहां से आ रही है”? सोचते हुए मुस्कान ने इधर-उधर झांक कर देखा।

तभी उसकी नजर गोलू के पापा पर पड़ी जो एक कोने में खड़े होकर टेप रेकॉर्डर बजा रहे थे।

“वाह…” इन सबको को तो कितना मजा आ रहा है। रंग-बिरंगे पानी में कितनी मस्ती झूम झूम कर नाच रहे हैं, पर मैंने ही जिद पकड़ रखी थी कि होली नहीं खेलूंगी, अब क्या करूं …कैसे जाऊं बाहर। मुस्कान ने सोचा।

तभी पापा के हंसने की आवाज आई, उसने पलट कर देखा तो दादा, दादी, मम्मी, पापा सब आराम से बैठकर गप्पें लड़ाते हुए आपस में एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली की बधाइयां दे रहे थे। तभी उसे याद आया कि पिछले साल मम्मी ने प्यार से उसके गाल पर लाल रंग लगा दिया था तो वह चीख-चीख कर रोई थी और उसने कई दिन तक मम्मी से बात नहीं की थी और करीब एक घंटे तक अपना गाल रगड़-रगड़ कर धोया था। उसके सभी दोस्त उसे कितनी देर तक मनाते रहे पर उसने उन्हें भी दरवाजे से ही लौटा दिया था। कितनी देर तक वे सब बेचारे दरवाजा खटखटाते रहे पर मुस्कान दरवाजा बंद करके ही बैठी रही। गोलू तो खिड़की के पास आकर बोला था। आजा मुस्कान, होली खेलने में बहुत मजा आएगा और मुस्कान ने गुस्से में खिड़की बहुत तेजी से बंद कर दी थी।

गोलू की उंगली भी दब गई थी। कितने दिन तक गोलू का नाखून काला रहा और उसके बाद उसके दोस्तों ने उससे कई दिन तक बात नहीं की। पर फिर सब आपस में सब भूल गए और सब कुछ पहले जैसा चलने लगा। पर आज होली के दिन उसे एक भी दोस्त बुलाने नहीं आया और न ही उसकी मम्मी ने उसे रंग लगाया। मुस्कान की आंखों में आंसू आ गए। उसने सोचा अब गलती उसकी है तो माफी तो मांगनी ही पड़ेगी। आखिर टीचर जी ने भी तो समझाया है कि माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता।

अपने आंसू पोंछते हुए मुस्कान ने गुलाल की प्लेट के पास पहुंचकर उसमें से एक चुटकी गुलाल उठाया और दादाजी के गाल में लगा दिया।

दादाजी ने उसे प्यार से गले लगा लिया। बस फिर क्या था मम्मी-पापा दादी सबने मुस्कान को गुलाल लगाया और मिठाई खिलाई।

“मम्मी आपने मुझे माफ तो कर दिया न…” मुस्कान ने मम्मी की तरफ देखते हुए धीरे से कहा।

“मेरी इतनी प्यारी गोल मटोल मुस्कान से भला कोई नाराज भी हो सकता है क्या”? मम्मी ने हंसते हुए बोला।

मुस्कान ने तुरंत पूछा – “तो क्या मेरे दोस्त भी मुझे माफ कर देंगे”?

“हां, कर देंगे… क्यों नहीं करेंगे भला… ये लो अपनी पिचकारी” – कहते हुए पापा ने अलमारी से एक बहुत ही खूबसूरत पीले रंग की पिचकारी मुस्कान को थमा दी और साथ ही रंगों से भरे कुछ पैकेट भी।

मम्मी बोली – “जाओ, अपने दोस्तों के साथ जाकर होली खेलो”।

“सच…पर पहले कोई दरवाजा तो खोलो” – मुस्कान ने दरवाजे की, पर लगी ऊपर वाली सिटकनी को देखकर बोला।

पापा ने हंसते हुए दरवाजा खोला और मुस्कान हवा की गति से बाहर फव्वारे के पास पहुंच गई।

सभी रंगे पुते चेहरों में मुस्कान साफ-सुथरी खड़ी हुई थी। उसने गोलू को देखा और कहा – “मुझे कुछ कहना है”।

मैं समझ गया, मुस्कान की आंखों में तैरते आंसुओं ने जैसे सब कुछ बता दिया था।

गोलू का दिल पिघल गया – वह बोला – “कुछ मत कहो, पहले तो ये तो लो”, कहते हुए गोलू ने उस पर अपनी रंगों से भरी पिचकारी छोड़ दी।

बस फिर क्या था, सभी दोस्त उसके आसपास आ गए और उस पर रंगों की बौछार करने लगे। हमेशा रंगों को नापसंद करने वाली मुस्कान को आज रंग भले लग रहे थे, बहुत भले…

डॉ. मंजरी शुक्ला

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