रंगों की होली: मंजरी शुक्ला
आशू, सोनी, चीनू , मोनू, पिंकी, बिल्लू और अब्दुल के तो दिन और रात काटने मुश्किल हो रहे थे। सपने में गुलाल और बातों में ढेर सारे रंग, बस इनके अलावा उनके पास आजकल कुछ भी नहीं था। सभी बच्चे परीक्षा खत्म होने के बाद पुस्तकालय के पास बने अपने मोहल्ले के एकमात्र हेण्डपम्प के पास मिले और एक दूसरे को देखते ही ऐसे प्रसन्न हो गए मानों चाँद पर जाने की तैयारी हो रही हो। कुछ ही मिनट इधर उधर की बातें हुई होंगी और फिर शुरू हो गई होली की ढेर सारी बातें…
“इस बार तो हमें होली बहुत ही जोरदार मनानी है, पर कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे”?
“हाँ – पर हमारे मोहल्ले वाले तो रंगों के नाम से ही ऐसे डर रहे है, जैसे किसी ने भूत देख लिया हो”।
वो भी क्या करे… याद है शर्मा आंटी के हाथ इतनी बुरी तरह छिल गए थे रंग के कारण कि महीनों इलाज करना पड़ा था”।
और बेचारे वर्मा अंकल की तो आँख तो कई दिन तक लाल रही थी, इतने केमिकल मिले होते है इन रंगों में”।
“इतनी तकलीफ़ झेलकर कौन खेलना चाहेगा होली”? पिंकी उदास स्वर में बोली।
“पर हमें तो ऐसी ही होली मनानी है, जिसमें सब रंगों से डरे बिना होली खेले”।
“हाँ, इसके लिए कुछ तरकीब तो लगानी ही होगी” सोनी ने सभी की तरफ़ गौर से देखते हुए कहा।
“चलो, हम सब मेरे दादाजी के पास चलते है” बिल्लू उत्साहित होते हुए बोला।
“क्यों भला, कहीं वो हमें होली खेलने से ही ना रोक दे”।
“नहीं – नहीं, मेरे दादाजी तो तुम लोगो से भी छोटे बच्चे है। उन्हें तो इन सभी त्योहारों में बड़ा मजा आता है”।
“हाँ… हाँ… मुझे याद है। पिछली बार ईद पर तुम्हारे दादाजी ने अपनी सिवई खत्म करने करने के बाद मेरे हिस्से की भी चट कर डाली थी” अब्दुल ने नाराज़ होते हुए कहा।
हा हा हा… सभी बच्चे ये सुनकर जोरो से हँस पड़े।
उछलते कूदते कुछ ही मिनटों वे सब बिल्लू के घर पहुँच गए जहाँ पर उसके दादाजी अपने दोस्तों के साथ बैठकर किसी बात पर हँसते हुए जोरो से ठहाका लगा रहे थे। उन सबको देखकर सभी बच्चों को बहुत अच्छा लगा।
आशू फुसफुसाकर बोला – “ऐसा लग रहा है जैसे सभी हमारी ही उम्र के हो”।
“अरे भाई, ये शैतानों की टोली सुबह सुबह कहाँ से चली आ रही है” दादाजी उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए बोले।
“दादाजी, इस बार हम लोग ऐसी होली मनाना चाहते है जिससे किसी भी को कोई परेशानी ना हो और सभी इस त्यौहार का भरपूर मज़ा ले सके”।
“अरे वाह, हम सब भी हम इसी मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे” दादाजी के एक दोस्त बोले।
“मेरा विचार है कि इस बार रंग हम सब खुद बनाएँगे” दादाजी ने कहा।
“अरे दादा जी, आप सोच भी नहीं सकते कि हम सब को रंग बनाने में कितना मजा आएगा” आशु ने कहा, पर उस के चेहरे से ख़ुशी छिपाए नहीं छिप रही थी।
“अरे वाह, हम खुद रंग बनाएंगे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है” बिल्लू खुशी के मारे दादाजी के गले लग गया।
“पर हमें तो रंग बनाना आता ही नहीं है” अब्दुल ने थोड़ा सा परेशान होते हुए बोला।
“तो क्या हुआ, हम सब है ना तुम्हारे साथ… अरे, जब हम सब तुम्हारी उम्र के थे, तो भला कहाँ बाज़ार से रंग खरीदते थे। हमारी भी तुम लोगों की तरह ही “शैतानों की टोली” थी। हम सब बहुत मस्ती करते थे घूमते थे, हुड़दंग मचाते थे। एक दूसरे पर ढेर सारे रंग डालते थे पर सभी रंग प्राकृतिक तरीकों से बने हुए होते थे इसीलिए उनसे कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था”।
“आप भी हमारी ही उम्र के थे” राजू ने उन सब की तरफ आश्चर्य से देखते हुए कहा तो कमरे में सम्मिलित स्वर में ठहाका गूंज उठा!
“हाँ भई, हम सब तो ऐसे ही बूढ़े पैदा हो गए हैं” दादा जी अपने दोस्तों की ओर देखते हुए जोर से हँसते हुए बोले।
“अच्छा बच्चों, कल हम सभी यहाँ इसी समय फ़िर मिलेंगे और देखेंगे कि हम लोग कौन-कौन से रंग बनाते है”।
“अरे वाह, अब तो बड़ा मजा आएगा”।
बिल्लू खुशी से चिल्लाया और सभी बच्चे हँसते मुस्कुराते हुए वहाँ से रंगों के बारे में बातें करते हुए चल दिए।
रात भर सभी हरे, पीले ओर भी ना जाने कितने रंगों से सराबोर होते रहे और आँख खुलते ही बिल्लू के घर पहुँचने का इंतज़ार करने लगे।
बारह बजने के पहले ही सभी दोस्तों का जमघट बिल्लू के घर पर लग चुका था।
तभी बिल्लू के दादाजी आते दिखाई दिए उनके हाथों में कई तरह के पैकेट थे।
सभी बच्चें उन्हें घेर कर खड़े हो गए।
आशु पैकेट के अंदर झाँकने की कोशिश करने लगा।
दादाजी मुस्कुराते हुए बोले -” पीला रंग कौन बनाएगा”?
मैं… मैं… मैं… और मैं भी… कहते हुए सभी बच्चें ख़ुशी के मारे कूदने लगे।
ये देखो पहले एक हल्दी लेकर इसे इस बड़े भगोने के पानी में मिलाना है।
लो बच्चों, अब तुम सब थोड़ी-थोड़ी हल्दी और गेंदे के फूल की पत्तियाँ इस बर्तन मैं डालो।
बच्चों के हल्दी और फूल डालने के बाद दादाजी बोले – “अब हम इस पानी को उबाल कर छानेंगे और एक उबाल आने के बाद जब दादाजी ने भगोने को पलटा तो गाढ़ा पीला रंग तैयार था।
“पर बच्चों उबालने काम तो मम्मी या पापा ही करेंगे, तुम लोग बिलकुल नहीं”।
“हाँ दादाजी, हम कभी भी किसी बड़े को लिए बिना गैस या स्टोव नहीं जलाते है”।
“हाँ… क्योंकि तुम सब बहुत ही समझदार और अच्छे बच्चे हो”।
बच्चों के चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान तैर गई।
अरे वाह..कितना प्यारा, कितना सुन्दर पीला रंग बना है।
आशु के मुँह से निकला, सभी बच्चे पीले रंग को देखकर आश्चर्यचकित थे।
“हाँ, अब ये देखो”।
“पर दादाजी, ये तो चुकंदर है” चीनू चहकी।
“अरे दादाजी, क्या हम सलाद भी बनाने वाले है”।
“अरे अभी देखो तो…”
“ये देखो, किसा हुआ चुकंदर हम पानी में डाल देते है”।
और पल भर में भी भगोने का पानी सुर्ख लाल हो गया।
लाल रंग… सभी बच्चें ख़ुशी से चिल्लाए।
अब ये देखो… कहते हुए दादाजी ने एक पतीले के ऊपर से ढक्कन हटाया।
सभी बच्चों के आँखें ख़ुशी से चमक उठी।
“दादाजी कितना सुन्दर चटख नारंगी रंग…” चीनू ताली बजाते हुए बोली।
“हाँ, पर इसमें ये कौन से फूल पड़े है”? मोनू ने भगोने के अंदर देखते हुए कहा।
“बच्चों, ये टेसू (पलाश) के फूल है। इन्हें रातभर पानी में भिगो कर रखने के बाद कितना खूबसूरत रंग बनकर तैयार हो गया”।
दादाजी, अब तो हमारे पास कितना सारा रंग तैयार हो गया और अब हम इसी तरह से रंग बनाएंगे ताकि सभी लोग इस बार बिना डरे होली खेल सके।
हाँ बच्चों, तुम सभी लोगो को साथ में इन रंगों को बनाना भी सीखा देना, ताकि वे भी प्राकृतिक रंगों की होली खेल सके।
हाँ दादाजी… कहते हुए सब ख़ुशी के मारे दादाजी से लिपट गए और दादाजी की आँखों में ढेर सारे रंग बिखर गए जिसमें सभी बच्चें खूबसूरत रंगों में सराबोर होकर होली खेल रहे थे।