जब उनकी शिक्षा पूरी हो गई और आश्रम छोड़ने का समय आया तो गुरूजी ने उन दोनों को बुलाकर कहा – “मै तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम्हें दो बाते बता रहा हूँ – “अगर तुम इन पर अमल करोगे, तो तुम्हारे राज्य में सदा सम्पन्नता और खुशहाली रहेगी। दोनों राजकुमार एक साथ बोले – “हम आपकी आज्ञा अवश्य मानेंगे। गुरूजी मुस्कुराकर बोले – “तुम दोनों जहा तक हो युद्ध टालने की कोशिश करना और अहिंसा का मार्ग अपनाना और सदाप्रकृति की रक्षा करना।”
दोनों राजकुमारों ने सहर्ष हामी भर दी और अपने अपने राज्य की ओर चल पड़े।
शांतनु ने कुछ दिन तक तो गुरूजी की आज्ञा का पालन किया परन्तु राजा बनते ही उसने शिकार पर जाना शुरू कर दिया। हरे भरे वृक्षों को कटवाकर उसने कई नगर बसवाए। धीरे-धीरे उसके राज्य में गिने चुने पेड़ ही बाकी रह गए। जिसकी वजह से पर्यावरण असंतुलित हो गया, और बारिश ना के बराबर होने लगी और आए दिन सूखा पड़ने लगा।
वही दूसरी और अमृत को अपना वचन याद था। उसने राजा बनते ही शिकार पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगा दिया ओर जगह जगह पेड़ लगवाने शुरू कर दिए। वह जब भी कोई खाली जमीं पड़ी देखता तो वहां पर फूलों के बीज बिखरवा देता ओर कुछ ही दिनों बाद वहां रंग-बिरंगे सुंदर फूल उग जाते। प्रजा भी अपने राजा को पूरा सहयोग करती और बच्चे से लेकर बूढें तक कोई भी फूलों को नहीं तोड़ता था।
फूलों पर रंग-बिरंगी तितलिया मंडराया करती और लोग ठगे से इस मनोरम दृश्य को देखने लगते। अमृत एक दिन दरबार में बैठा हुआ अपनी प्रजा के बारे में बात कर रहा थे तभी एक दूत दौड़ता हुआ आया और बोला – “महाराज, राजा शांतनु ने हमारे राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई है और वह अपनी विशाल सेना सहित युद्ध करने के लिए दो दिन में आ जायेगा।”
यह सुनकर अमृत परेशान होता हुआ बोला – “युद्ध होने से तो हजारों सैनिक मारे जायंगे और मासूम प्रजा भी बर्बाद हो जाएगी।”
इस पर महामंत्री विनम्र शब्दों में बोला – “परन्तु महाराज,अगर हम युद्ध नहीं करेंगे तो वह हम सबको बंदी बना लेगा।”
यह सुनकर अमृत के मुख पर चिंता की लकीरे उभर आई और वह बिना कुछ कहे अपने कक्ष में चला गया। बिना कुछ खाए पिए वह सारी रात और सारा दिन सोचता रहा की युद्ध को कैसे टाला जाएं।
सुबह की पहली किरण के साथ ही वह उठकर बगीचे में चले गए। रंग-बिरंगे फूलो से लदे हुए वृक्षों को देखकर अचानक उनके मन में एक विचार आया और उन्होंने तुरंत महामंत्री को बुलाकर अपनी योजना समझा दी। महामंत्री का चेहरा भी अमृत के साथ ख़ुशी से खिल उठा। इसके बाद राजा आराम से सोने चला गया।
शाम के समय राजा शांतनु ने राज्य की सीमा में अपने हजारों सैनिको के साथ प्रवेश किया और नगर की खूबसूरती देखकर वह अचंभित रह गया। चारो तरफ हरे भरे पेड़ हवा के साथ साथ झूम रहे थे। मोगरा, बेला और चमेंली की कलिया चटख रही थी और चारो और भीनी-भीनी सुगंध आ रही थी। मालती के गुच्छे लता के सहारे दीवारों पर चढ़े हुए बहुत ही सुन्दर लग रहे थे। उसे कुछ पलों के लिए ऐसा लगा मानो वह किसी फूलो के जादुई संसार में आ गया हो। तभी उसके सेनापति ने कहा – “महाराज, अब हमें आक्रमण करना चाहिए।”
“हाँ – हाँ क्यों नहीं” कहता हुआ शांतनु आगे की और बढ़ा। जैसे ही सैनिको ने तलवारे म्यान से निकली और प्रजा को मारने के लिए आगे बढें, लाखो मधु मखियों ने उन पर धावा बोल दिया। अब उनकी तलवारे भी किसी काम की नहीं रही। मधु मखियों ने पूरी सेना को काट काट कर लहू लुहान कर दिया। वे जान बचाने के लिए वापस भागे। इसी बीच शांतनु को भी मधु मखियों ने चेहरे पर काट लिया और उसका मुंह सूजकर गुब्बारे की तरह हो गया। अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और वह घोड़े से नीचे गिर पड़ा। उसका सर किसी नुकीली वस्तु से टकराया और वह बेहोश हो गया।
जब उसको होश आया तो वह अमृत के राजमहल में था और अमृत उसके माथे पर प्यार से हाथ फेर रहा था। उसकी आँखों की कोरो से आंसू बह निकले। वह रुंधे गले से बोला – “मै तुम्हे जान से मारनेआया था और तुम्हि ने मेंरी जान बचाई है।”
अमृत उसके आँसूं पोछते हुए बोला – “मैंने हमेंशा गुरूजी की सीख पर अमल किया है। अहिंसा ही मेंरा धर्म है।”
यह सुनकर शांतनु शर्मिंदा होते हुए बोला – “पर जब तुम्हे पता था की मै तुम पर आक्रमण करने वाला हू तो तुम अपनी सेना लेकर मुझसे युद्ध करने क्यों नहीं आये?”
इस पर अमृत मुस्कुराता हुआ बोला – “मेंरी मधु मखियों की सेना गई तो थी तुमसे लड़ने और देखो उन्होंने मेरे वर्षो पुराने मित्र को एक बार फिर मुझसे मिला दिया।”
अमृत ने शांतनु के चेहरे पर अचरज के भाव देखकर कहा – “तुमने देखा की मेंरे राज्य में हर कदम पर वृक्ष फूलो से लदे हुए है और उनमें सैकड़ो मधु मखियों ने अपने छत्ते बनाये हुए है। जब तुम्हारी सेना आई तो मेंरे सैनिको ने गुलेलो से छत्तों पर पत्थर मारे और छिप गए। और गुस्से में वे सारी मधु मखियाँ तुम लोगो पर टूट पड़ी।”
शांतनु अमृत की दूरदर्शिता और सूझबूझ देखकर हैरान रह गया और बोला – “मुझे माफ कर दो और अब में चलता हूँ।”
यह सुनकर अमृत बड़े प्यार से बोला – “मै तुम्हे खाली हाथ नहीं जाने दूंगा क्योंकि मै तुम्हारे राज्य की सारी स्तिथी जानता हूँ, तुम जितना चाहे उतना धन ले जा सकते हो और कई बोरो में फूलो के बीज भी है उन्हें तुम मिट्टी में दबवा देना ताकि जब मै तुम्हारे यहाँ आऊं तो तुम्हारे राज्य को खूब हरा भरा पाऊ।”
शांतनु अमृत का प्यार देखकर ख़ुशी के मारे रो पड़ा और बोला – “मै भी अपने राज्य को तुम्हारे जैसा ही “फूलों का नगर” बनाऊंगा।” और दोनों मित्र खिलखिलाकर जोर से हंस पड़े।