जंपी मेंढक कुछ कहता, इससे पहले ही घोंदू मगरमच्छ बोला – “इसके उछलने कूदने से मैं परेशान हो चुका हूँ। कल तो मेरी आँख ही फूटते हुए बची थी”।
जंपी मेंढक सकपकाता हुआ बोला – “तुम सारे समय तो आँखें बंद करके मिट्टी में पड़े रहते हो, पता ही नहीं चलता कि…”
जंपी मेंढक की बात पूरी होने से पहले ही घोंदू मगरमच्छ चिल्लाते हुए बोला – “चुप रहो, तो क्या तुम्हारे कूदने के कारण आँखें खोलकर सो जाऊँ!”
जंपी मेंढक: मंजरी शुक्ला की एक और मजेदार जातक कहानी
तभी बेकी बगुला बोला – “और ये जो धपधप धपधप करते हुए इधर-उधर कूदा करते हो ना इस कारण मछलियाँ भाग जाती है मेरी…”
जंपी मेंढक लगातार सबकी डाँट खाते हुए रुँआसा हो गया|
तभी पानी से सुनहरी मछली निकली और बोली – “जंपी, तुम जी भरकर कूदा करो, इस बेकी को खड़े रहने दिया करो दिनभर एक टाँग पर…”
जंपी मेंढक ने सुनहरी को उदास होते हुए देखा और वहाँ से उछलता हुआ चल दिया।
अगले दिन नदी के किनारे जंपी का कहीं अता पता नहीं था पर किसी को भी उसके नहीं दिखने का कोई दुःख नहीं हुआ।
बेकी, पीहू और घोंदू आराम से नदी किनारे बैठकर धूप सेंक रहे थे।
बेकी बोला – “मुझे तो लगता है कि जंपी जंगल छोड़कर ही चला गया”।
घोंदू एक आँख खोलकर बोला – “अरे वाह, तब तो मज़ा आ जाएगा। सारे समय मुझे अपने अंधे होने की चिंता लगी रहती थी”।
“जंपी इस जंगल में लौटकर ही ना आये तो बहुत अच्छा हो” पीहू आँखें मूंदते हुए बोली।
यह सुनकर सभी खिलखिलाकर हँस पड़े।
दो दिन बाद ही जंगल में अफ़रा तफ़री मची हुई थी।
खोखो बन्दर ने एक शिकारी को जंगल में घूमते हुए देखा था।
सभी पशु पक्षी बहुत डरे हुए थे और जहाँ तहँ छुपने की जगह ढूँढ रहे थे।
दिन भर तो शिकारी का कहीं अता पता नहीं था पर शाम होते ही वह नदी किनारे आकर बैठ गया।
बेकी और पीहू तो धूप सेंकने के बाद जा चुके थे पर घोंदू आँखें बंद किये हुए, मिट्टी में लिपटा हुआ आराम से लेटा हुआ था।
शिकारी बुदबुदाया – “पता नहीं क्या बात है, कोई मगरमच्छ दिखाई नहीं पड़ रहा। एक मगरमच्छ भी मिल जाये तो उसकी खाल से अच्छे पैसे मिल जाएँगे”।
यह सुनते ही घोंदू ने तुरंत अपनी एक आँख खोली और सामने शिकारी को बैठे देखा।
डर के मारे घोंदू के हाथ पैर काँपने लगे। अब तो वह वहाँ से भाग कर नदी में भी नहीं जा सकता था वरना शिकारी उसे गोली मार देता।
उसने सोचा कि शिकारी के जाते ही वह नदी मैं चला जाएगा।
पर शिकारी भी अपनी पूरी तैयारी के साथ आया था। उसने कुछ सूखी लकड़ियाँ इकठ्ठा करके आग जलाई और एक बैग में से कुछ बर्तन निकाले।
अपनी टोपी एक ओर रखकर वह बंदूक पकड़कर बैठ गया।
“अभी नदी का पानी अगर ऊपर आ गया तो मेरे ऊपर से मिट्टी हट जायेगी और फ़िर मैं नहीं बचूँगा”। सोचते हुए घोंदू की आँखों से आँसूं बह निकले।
तभी घोंदू ने देखा कि शिकारी अचानक उछलकर खड़ा हो गया और जोर से चीखने लगा।
हड़बड़ाहट में उसके हाथ से बन्दूक भी गिर गई जो सीधे घोंदू के पास आकर गिरी थी।
“अब मुझे इस दुनिया में कोई नहीं बचा सकता” घोंदू ने बिना हिले डुले चुपचाप सोचा।
“मेरी टोपी उछलते हुए भाग रही है… हे भगवान मैं ये क्या देख रहा हूँ, मेरे बर्तन उछल रहे है” शिकारी डर के मारे थर थर काँपते हुए बोला।
और फ़िर अचानक ही उसने भूत भूत करके दौड़ लगा दी और इतनी तेज भागा कि कुछ ही देर बाद आँखों से ओझल हो गया।
घोंदू आँखें फाड़े उछलते हुए बर्तन देख रहा था।
तभी टोपी रुकी और उसमें से हँसता हुआ जंपी बाहर निकला और बोला – “दोस्तों बाहर आ जाओ। शिकारी भाग गया”।
जंपी की आवाज़ सुनते ही बर्तनों में से मेंढक बाहर निकल आये और हँसने लगे।
“चलो, अब वह शिकारी यहाँ कभी नहीं आएगा” कहते हुए जंपी जाने को हुआ।
तभी घोंदू रोते हुए बोला – “क्या अपने दोस्त को माफ़ नहीं करोगे जंपी”?
जंपी उछलता हुआ उसके पास आया और बोला – “मैं तुमसे नाराज़ थोड़े ही हूँ”।
“तो मेरी पीठ पर कूदो” घोंदू अपने आँसूं पोंछते हुआ बोला।
“अरे पर…” जंपी सकुचाता हुआ बोला।
“कूदो, वरना मैं समझूंगा कि तुम मुझसे नाराज़ हो”।
और थोड़ी ही देर बाद जंपी अपने दोस्तों के साथ घोंदू की पीठ पर कूद रहा था और घोंदू शिकारी के भागने को याद करते हुए हँसता जा रहा था।