किटकिट का चश्मा: जानवरों के नेत्र देखभाल शिविर पर मजेदार हास्य कहानी

किटकिट का चश्मा: जानवरों के नेत्र देखभाल शिविर पर मजेदार हास्य कहानी

सुंदरवन में नेत्र रोग कैंप लगा हुआ था। सभी उम्र के प्राणियों की आंखों की जांच चल रही थी।

डॉक्टर मोनू बंदर के नेतृत्व में नेत्र रोग विशेषज्ञों का दल जांच कर रहा था।

सोशल वर्कर सभी को घर-घर जाकर मुफ्त जांच करवाने के लिए प्रेरित कर रहे थे। किटकिट गिलहरी नीम के पेड़ पर बैठी ठंडी हवा का आनंद ले रही थी।

किटकिट का चश्मा:

तभी वहां कप्पो कबूतर आया और बोला, “किटकिट बहन आज तुम अपनी आंखों की जांच करने नहीं गई क्या?”

“कैसी जांच…?” किटकिट ने जानकर भी अनजान बनते हुए पुछा।

कप्पो ने कहा, “अरी बहना… आंखों के रोगों से बचाने के लिए सुंदरवन सरकार ने मुफ्त में आंखों का कैंप लगा रखा है।”

“अरे न बाबा न, मुझे नहीं करवानी जांच-बांच… मुझे तो पहले से ही मोटा-सा चश्मा चढ़ा हुआ है।” किटकिट ने पूंछ हिलाते हुए जवाब दिया।

उसी समय सुंदरवन सरकार का संदेश लेकर धोलू खरगोश आ गया। उसने कप्पो से कहा, “जिसकी आंखें कमजोर हैं, उन्हें दूर का या पास का कम दिखाई देता है, उन्हें मुफ्त में दवाइयों के साथ-साथ चश्मे भी दिए जाएंगे… वे भी नए डिजाइन के… हो सकता है आंखों में लेंस भी लगा दें…।”

किटकिट गिलहरी ने धोलू की बात सुन ली तो बहुत खुश हो गई। उसने सोचा कि उसे मुफ्त में नया चश्मा मिल जाएगा… तो फिर इस पुराने चश्मे से मुक्ति मिल जाएगी।

उसने फटाफट अपना पुराना चश्मा लगाया और कप्पो से बोली, “कप्पो भैया मैं अभी जा रही हूं… अपनी आंखों को जांच कराने… तुम भी चलोगे क्या मेरे साथ?”

“हां…हां अभी चलता हूं।” कप्पो ने अपने सुंदर पंख फड़फड़ाते हुए कहा।

वे आखों के कैम्प में पहुंच गए। वहां किटकिट गिलहरी ने अपना चश्मा उतारकर डॉक्टर मोनू की टेबल पर रख दिया और अपनी आंखों की जांच करवाने लगी।

जांच के दौरान मोनू डाक्टर ने उसकी आंखों को ध्यान से देखा। फिर आंखों में ड्रॉप डाली और पर्ची पर दवा लिखते हुए कहा, “एक सप्ताह बाद तुम्हारी आंखों में लेंस लग जाएगे”।

“धन्यवाद जी।” किटकिट ने अपने जवाब में कहा।

पर्ची हाथ में लेकर अपना चश्मा लगाते हुए वह अपने घर की ओर रवाना हो गई। रास्ते में उसकी आंखों के सामने अंधेरा-सा छाने लगा और उसे चक्कर आने लगें। दिखाई भी पहले से कम देने लगा।

“अरे धोलू के बच्चे… अरे कप्पो के नाती… ये कैसा ड्रॉप डलवा दिया तुमने मेरी आंखों में…।” उसने चिल्लाते हुए कहा।

“क्या हुआ… गिलहरी बहना?” कप्पो ने पूछा।

“देख, मुझे कम दिखने लगा है… मेरी आंखों की रोशनी कम हो रही है…।” किटकिट ने घबराते हुए कहा।

धोलू खरगोश और कप्पो कबूतर तुरंत उसे मोनू डॉक्टर के पास वापस ले गए। किटकिट ने सारी बात एक सांस में कह डाली।

उसकी बातें सुनकर मोनू डॉक्टर जोर-जोर से हंसने लगा। उसकी हंसी को देख कर सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।

“क्या हुआ डॉक्टर साहब, मुझे तो आंखों से धुंधला दिखाई दे रहा है… और आप हंस रहे हैं।” किटकिट गिलहरी ने पूछा।

“अरी बहन जी… आप जल्दबाजी में किसी और का चश्मा उतार ले गईं… आपका चश्मा तो मेरी टेबल पर रखा है।” डॉक्टर मोनू बंदर ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसी समय भालू दादा आए और बोले, “डॉक्टर साहब मैं नया चश्मा लगाने की खुशी में अपना पुराना चश्मा यहीं भूल गया शायद…।”

“हां… जी, आपका चश्मा किटकिट ले गई थी… जल्दबाजी में…।” मोनू डॉक्टर ने कहा।

यह सुनकर किटकिट बड़ी शर्मिंदा हुई। अब तो धोलू और कप्पो भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।

~ ‘किटकिट का चश्मा’ story by ‘गोविन्द भारद्वाज’

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