शो केस पर सजी हुई रंगबिरंगी गुड़िया बहुत देर से सड़क की और देख रही थी। कितने दिन हो गए थे, उसे फ़ैक्टरी से बन कर आये हुए, पर कोई भी अब तक खरीदने नहीं आया था।
काँच की दीवार में रहना उसे बिलकुल पसंद नहीं था।
उसने साथ खड़े झबरीले पूँछ वाले से मोती कुत्ते से पूछा – “दुकान के सभी खिलौने बिक जाते है पर मुझे कोई क्यों नहीं खरीदता।”
“क्योंकि तुम बहुत सुन्दर हो और इसलिए तुम्हारी कीमत बहुत ज़्यादा है। बहुत सारे बच्चे तुम्हें खरीदने आये पर पाँच सौ रुपये सुनकर सब चले गए।”
गुड़िया दुखी होते हुए बोली – “तो क्या मैं हमेशा इसी तरह शो केस में खड़ी रहूंगी?”
तभी काँच का दरवाज़ा खोलते हुए दो बच्चे दुकान के अंदर आये।
दोनों की उम्र करीब आठ या दस साल की रही होगी।
दोनों ने दुकान के चारों ओर घूम घूम कर सभी खिलौनों को बहुत देर तक देखा और गुड़िया के पास आकर खड़े हो गए।
बच्चा बोला – “रानी, तेरे जन्मदिन पर यह गुड़िया ले लेते है, कितनी सुन्दर है ना…”
“लग तो बहुत महँगी रही है” बच्ची ने गुड़िया को एकटक देखते हुए कहा।
“पर कितनी सुन्दर है… सुनहरे बाल, नीली आँखें और मुस्कुरा भी रही है” बच्चा गुड़िया की तारीफ़ करते हुए बोला।
बच्ची बोली – “भैया, तुम्हारे मुट्ठी में कितने पैसे है?”
बच्चे ने सकुचाते हुए मुट्ठी खोली और पैसे गिनते हुए बोला – “पचास रुपये”
रानी ने अपने भाई का हाथ पकड़ लिया और बोली – “अगर मैं यह गुड़िया ले पाती तो इसे खूब अच्छे से रखती। इसे सब दोस्तों को दिखाती। देखो तो जरा, इसकी पोशाक कितनी महँगी लग रही है पर कितनी गंदी हो चुकी है, लगता है जब से इसे यहाँ रखा है तब से इसके कपड़े भी नहीं बदले।”
गुड़िया ने पहली बार इस बात पर ध्यान दिया और अपनी सुनहरी नीली पोशाक को देखा।
काँच से छन कर आती सूरज की किरणों के कारण कई जगह से महंगे सिल्क के गाउन का रंग ही उड़ गया था।
“चलो, चले…” बच्चा अपनी बहन का हाथ पकड़ते हुए बोला।
“पर भैया, मुझे अपने जन्मदिन पर यही गुड़िया चाहिए” बच्ची अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली।
बच्चे का चेहरा उतर गया। वह कुछ बोलता, इसके पहले ही बच्ची बोली – “इस गुड़िया के दिन रात खड़े रहने से इसके पैर भी दुखने लगे होंगे। मैं रोज़ रात में इसे अपने पास ही सुलाउंगी”।
अपने लिए इतना प्यार देखकर गुड़िया की आँखें भर आई।
वह मोती से बोली – “तुम जल्दी से मुझे धक्का देकर गिरा दो।”
मोती गुड़िया के बात समझ गया और उसने धीरे से गुड़िया को धक्का दे दिया।
गुड़िया धमाक से जाकर फ़र्श पर गिर पड़ी।
दुकानदार दौड़ा दौड़ा आया और गुड़िया को उठाते हुआ बोला – “इसका तो एक हाथ ही टूट गया। अब कौन खरीदेगा इसे!”
दोनों बच्चे खड़े होकर गुड़िया को देख रहे थे।
बच्चा डरता हुआ धीरे से बोला – “पचास… पचास रुपये में देंगे क्या?”
दुकानदार कुछ कहता इसके पहले ही बच्ची ने सहमते हुए भाई का हाथ पकड़ लिया और बाहर जाने लगी।
दुकानदार बोला – “रुको, ले जाओ पचास रुपये में…”
बच्ची के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।
उसने हँसते हुए दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए।
दुकानदार ने गुड़िया उसके नन्हें हाथों में थमा दी।
बच्ची और उसका भाई ख़ुशी के मारे एक दूसरे के गले लग गए।
गुड़िया मुस्कुरा रही थी और साथ ही शोकेस में उसे देखता हुआ मोती भी…
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