उधर शम्भू वर्मा सर को देखकर सोच रहा था – “अगर सर को पढ़ाना आता होता तो कितना अच्छा होता”।
और यह सोचते ही उसकी नज़र खिड़की से बाहर चली गई जहाँ पर एक नन्ही चिड़िया बैठी हुई थी।
नीले और पीले रंग की छोटी सी चिड़िया को फुदकते देखकर शम्भू खुश हो गया और वह एकटक उस चिड़िया को देखने लगा।
चिड़िया कभी फुदक रही थी तो कभी कभी उड़ कर घास के ऊपर बैठ रही थी।
जैसे ही सर ने शम्भू को खिड़की से बाहर झाँकते देखा तो वह गुस्से से चीखे – “शम्भू! तुम्हारा ध्यान किधर है”?
शम्भू हड़बड़ा गया और तुरंत खड़ा हो गया।
शिक्षक के लिए पत्र: मंजरी शुक्ला
सर गुस्से से बोले – “बताओ, मैं क्या पढ़ा रहा था”?
अब शम्भू ने कुछ सुना होता तो बताता। उसने चुपचाप सिर नीचे कर लिया।
सर उसके पास आये और बोले – “जब सारे बच्चे इतने ध्यान से पढ़ते है तो एक तुम्हारे ही दिमाग में सौ तरह के फितूर क्यों चलते रहते है”।
“वो पीले और नीले रंग की इतनी सुन्दर चिड़िया मैंने पहली बार देखी है इसलिए उसे देखने लगा था”।
“और मैं जो इतनी देर से चीख चीख कर मुहावरें समझा रहा हूँ उनको कौन याद करेगा?” सर ने डस्टर मेज पर मारते हुए कहा।
“गलती हो गई” कहते हुए शम्भू रुआंसा हो गया।
शम्भू के आँसूं देखकर सर ने प्यार से शम्भू के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा – “इस कक्षा के बाकी छात्रों को देखो, कितनी तल्लीनता से पढ़ाई कर रहे है”।
शम्भू ने कनखियों से अपने दोस्तों को देखा जो मुँह दबाकर हँस रहे थे और इशारे से बता रहे थे कि उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया।
तभी सर बोले – “बैठ जाओ और अब खिड़की के बाहर मत देखना”।
शम्भू बिना किसी की तरफ देखे चुपचाप अपनी बेंच पर बैठ गया। पर सभी बच्चों की दबी दबी हँसी उसे सुनाई दे रही थी।
सर का पीरियड खत्म होते ही सभी बच्चे उसके आस पास आकर इकठ्ठा हो गए।
राजीव बोला – “सर खुद तो हर दस मिनट में मोबाइल देखते रहते है और हमारे पीछे पड़े रहते हैं”।
सुहानी ने कहा – “बड़ा मुहावरें पढ़ा रहे थे। हर शब्द किताब से देखकर पढ़ाते हैं। अगर कभी किताब ना हो तो इनका और हमारा ज्ञान बराबर ही समझो”।
“हाँ, अगर किताब छुपा दो तो इनका मुहावरा इन पर ही फ़िट हो जाएगा कि ‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे‘” राहुल अपना चश्मा ठीक करता हुआ बोला।
राहुल का बोलना था कि सभी बच्चे ठहाका मारकर हँस पड़े। शम्भू भी अपने आँसूं पोंछते हुए मुस्कुरा दिया।
शम्भू जब घर लौटा तो उसका उदास चेहरा देखते ही मम्मी समझ गई कि आज फ़िर उसे वर्मा सर से डाँट पड़ी है।
इसलिए मम्मी तुरंत बोली – “जल्दी से हाथ मुँह धो लो। आज मैंने तुम्हारे लिए ढेर सारी किशमिश डालकर खीर बनाई है”।
और कोई दिन होता तो खीर का नाम सुनते ही शम्भू ख़ुशी से उछल पड़ता।
पर उस समय पता नहीं क्यों शम्भू की रुलाई फूट पड़ी।
उसे रोता देख माँ सकपका गई और बोली – “सातवीं कक्षा में होते हुए भी छोटे बच्चों की तरह रो रहा है”।
“वर्मा सर बिलकुल अच्छा नहीं पढ़ाते है और फ़िर अगर ज़रा सा इधर उधर देख लो तो डाँटना शुरू कर देते है”।
शम्भू की बात सुनकर माँ कोई जवाब नहीं दे सकी। वह बहुत अच्छे से जानती थी कि वर्मा सर का पढ़ाया हुआ बच्चों को समझ में नहीं आता है। कई बार शम्भू के दोस्त भी उन्हें ये बात बता चुके थे। पर वह भला कर भी क्या सकती थी।
उन्होंने शम्भू की तरफ़ देखा जो कटोरे में रखी खीर किसी तरह से जबरदस्ती निगल रहा था।
माँ का दिल भर आया और वह शम्भू के पास पानी रखकर चली गई।
शम्भू रात तक अनमना सा रहा और फ़िर अपनी पढ़ाई करके जल्दी ही सो गया।
अगले दिन जैसे ही हिंदी की पीरियड की घंटी बजी शम्भू का मन हुआ कि वह स्कूल छोड़कर भाग जाए।
तभी उसकी नज़र पेड़ पर बैठे बन्दर पर पड़ी जो एक डाल से दूसरी डाल पर उछल कूद मचा रहा था।
शभु की मुँह से निकला – “हे भगवान, मुझे अगले जन्म में बन्दर ही बनाना”।
“अभी कौन सा बन्दर से कम हो? सिर्फ़ पेड़ पर चढ़े नहीं बैठे हो” सर की आवाज़ गूंजी।
शम्भू सकपका कर खड़ा हो गया। सामने वर्मा सर खड़े थे।
हमेशा की तरह शम्भू ने सिर झुका लिया।
वर्मा सर ने उसे गुस्से से देखा और बोले – “एक गाँधी जी थे और एक तुम लोग हो। बचपन में उन्होंने हरिश्चंद्र नाटक देखा था और प्रतिज्ञा की थी कि जीवन भर झूठ नहीं बोलेंगे। यहाँ तक कि सच का साथ देने के लिए उन्होंने अपने शिक्षक तक की बात नहीं मानी और गलत स्पेलिंग को गलत ही रहने दिया। और एक तुम लोग हो जब देखो तब झूठ बोलते रहते हो”।
शम्भू झिझकते हुए बोला – “पर सर मैं…”
वर्मा सर ने उसकी बात काटते हुए कहा – “आज मैं तुम सबको पत्र लिखने के लिए दे रहा हूँ। पत्र में सब सच लिखना। पत्र बहुत ध्यान से लिखना और मात्राओं की गलती तो बिलकुल नहीं होनी चाहिए”।
जैसे ही बच्चों ने लिखना शुरू किया वर्मा सर अपनी मेज से ही चीखे – “शम्भू, अगर तुमने खिड़की के बाहर देखा तो मैं तुम्हें उसी समय क्लास से बाहर निकाल दूँगा”।
डाँट शम्भू को पड़ी पर सभी बच्चे बिलकुल चुप हो गए।
सभी बच्चें अचानक ही ऐसे दिखाने लगे जैसे पत्र लिखने में उन्हें बहुत मज़ा आ रहा हो।
वर्मा सर अपना मोबाइल देखने लगे।
जब पीरियड खत्म हुआ तो सर ने सबकी बेंच पर जाकर पत्र ले लिए और बोले – “कल बताउंगा कि सबसे अच्छा पत्र किसने लिखा है”।
शम्भू ने भी नीची नज़रें करते हुए सर को अपना पत्र पकड़ा दिया।
सारे दिन बच्चों में यही बात होती रही कि किसने क्या लिखा और किसे लिखा।
अगले दिन जब बच्चे स्कूल पहुंचे तो पहली बार उन्हें वर्मा सर की आने का इंतज़ार था।
जैसे ही सर क्लास में आये दीपेश फुसफुसाया – “आज सर क्या पढ़ाएँगे। अपनी किताब तो लगता है कहीं भूल आये”।
शम्भू हमेशा की तरह खिड़की से बाहर पेड़ पर सरपट दौड़ती गिलहरी को देख रहा था।
तभी वर्मा सर की आवाज़ गूंजी – “आज बाहर पेड़ की नीचे बैठकर कौन कौन पढ़ना चाहिए”।
“मैं… मैं… मैं…” कहते हुए सभी बच्चे ख़ुशी से कूदने लगे।
शम्भू ने आश्चर्य से सर की ओर देखा जो उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे।
सभी बच्चों के साथ साथ शम्भू भी बरगद की विशाल वृक्ष की ओर चल पड़ा।
आज सर से पढ़ते हुए बच्चों को बहुत मज़ा आ रहा था। ना तो वह किताब देखकर पढ़ा रहे थे और ना ही हमेशा की तरह उनके एक हाथ में मोबाइल था।
सर शम्भू को देखकर मुस्कुरा रहे थे और आज पहली बार सर के लिए शम्भू के मन में बेहद श्रद्धा और आदर के भाव उत्पन्न हो रहे थे।
उधर वर्मा सर के घर में उनकी मेज पर एक पत्र रखा हुआ था, जो गुलाब के फूलों के फूलदान से दबा हुआ था।
पत्र में लिखा था – “आदरणीय सर, ये पत्र पढ़ने के बाद आप शायद मुझे इस स्कूल से निकलवा देंगे या फ़िर मेरे मम्मी पापा को बुलाकर मेरी शिकायत करेंगे। पर आज आपने ही गाँधी जी का उदाहरण देते हुए सच बोलने की लिए कहा है। तो सर, सच ये है कि आप किताब का हर वाक्य बोलकर सुना देते है और आपको लगता है कि आपने हमें पढ़ा दिया। वे किताबें तो हमारे पास भी है। हम उन्हें पढ़कर अगर सब समझ जाते तो हमें आपसे पढ़ने की क्या ज़रूरत थी। आप ने सिर्फ़ वही मुहावरा समझाया जो किताब में था जबकि मेरे दादाजी तो बात बात पर मुहावरें कहते है ओर उन्होंने कभी कोई किताब उठाकर नहीं देखी। आप जब पढ़ाते है तो बच्चे हिंदी की किताब के बीच में दूसरे विषयों की किताबें रखकर पढ़ते रहते है और आप को लगता है कि वे सब हिंदी की पुस्तक पढ़ रहे है। मैं ये नहीं करता हूँ इसलिए मेरी नज़र अपने आप ही खिड़की के बाहर चली जाती है और इसलिए मैं ही अकेले पूरी क्लास में हर समय आप से डाँट खाता रहता हूँ। आप खुद तो सारा समय मोबाइल देखते रहते है और हमें समझ में नहीं आता कि हम आपको कैसे मना करे। जब भी आप हमें टेस्ट देते है तो जोर-जोर से मोबाइल पर बात करने लगते है। क्या आपने कभी सोचा है कि हम लोगो को उस समय कितनी दिक्कत होती है। इसीलिए कोई भी बच्चा आपको पसंद नहीं करता है और जब आप हमारे शिक्षक नहीं रहेंगे तो शायद ही कोई बच्चा आपसे बात करे”।
आपका शम्भू