सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानी हिंदी में: लाइसेंस [2]
तांगा चल पड़ा… और चलता रहा, कई सड़कें घोड़ों की सुमों के नीचे से निकल गईं। उसके होंठों पर शरारत-भरी मुस्कराहट नाच रही थी… लड़की सहमी हुई बैठी थी। जब बहुत देर हो गई तो लड़की ने डरी आवाज़ में पूछा: “टेशन नहीं आया अभी?”
“आ जाएगा… तेरा-मेरा टेशन एक ही है” उसने मानीख़ेज़ (अर्थपूर्ण) अंदाज़ में जवाब दिया।
“क्या मतलब?”
उसने पलटकर लड़की की तरफ़ देखा और कहा: “अल्हड़िए, क्या तू इतना भी नहीं समझती कि तेरा-मेरा टेशन एक है….उसी वक़्त एक हो गया था, जब अब्बू ने तेरी तरफ़ देखा था… तेरी जान की क़सम… तेरा यह ग़ुलाम झूठ नहीं बोलता।”
लड़की ने सिर पर पल्लू ठीक किया… उसकी आंखें साफ बता रही थीं कि वह अब्बू की बात का मतलब समझ चुकी है। उसके चेहरे से यह भी पता चलता था कि उसने अब्बू की बात का बुरा नहीं माना है।
वह कशमकश में थी, दोनों का टेशन एक हो, या ना हो, अब्बू बांका सजीला तो है, क्या वह अपनी बात का पक्का भी है, क्या वह अपना टेशन छोड़ दे?
अब्बू की आवाज़ ने उसको चौंका दिया, “क्या सोच रही है भागभरिए?”
घोड़ा मस्त ख़रामी से दुलकी चाल से चल रहा था। हवा ख़ुनुक थी, सड़क के दुरूया (दोनों ओर से) उगे हुए दरख़्त भाग रहे थे और उनकी टहनियां झूम रही थीं। घुंघरुों की यह आहंग झनझनाहट के सिवा और कोई आवाज़ नहीं थी।
वह गर्दन मोड़े लड़की के सांवले हुस्न को निगाहों से चूम रहा था… कुछ देर के बाद उसने घोड़े की बागें जंगले की सलाख़ से बांध दीं और उचककर पिछली सीट पर लड़की के साथ आन बैठा।
लड़की ख़ामोश रही।
उसने लड़की के दोनों हाथ पकड़ लिए। “दे-दे अपनी बागें मेरे हाथों में।”
लड़की ने सिर्फ़ इतना कहा, “छोड़ भी दे मेरा हाथ” लेकिन दूसरे ही लम्हे वह अब्बू के बाज़ुओं में थी और उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से फड़फड़ा रहा था।
अब्बू से हौले से प्यार भरे लहज़े में कहा, “यह तांगा-घोड़ा मुझे अपनी जान से ज़्यादा अजीज़ है… कसम ग्यारहवें पीर की, मैं तांगा-घोड़ा बेच दूंगा और तेरे लिए सोने के कड़े बनवाऊंगा… ख़ुद फ़टे-पुराने कपड़े पहनूंगा, लेकिन तुझे रानी बनाकर रखूंगा… क़सम वह्दहु-ला-शरीक (वह एक है और उसका कोई शरीक नहीं) की, ज़िंदगी में यह मेरा पहला प्यार है… तू मेरी ना बनी तो मैं तेरे सामने अपना गला काट लूंगा…” उसने लड़की को अपने बाज़ुओं के हलक़े से अलग किया: “जाने क्या हो गया है मुझे…चल तुझे टेशन छोड़ आऊं।”
लड़की ने हौले-से कहा, “नहीं अब तू मुझे हाथ लगा चुका है”
उसकी गर्दन झुक गई, “मुझे माफ़ कर दे…मुझसे ग़लती हो गई।”
“निभा लोगे इस ग़लती को?”
लड़की के लहज़े में चैलेंज था, जैसे किसी ने अब्बू से कहा हो, “ले जाओगे अपना तांगा उस तांगे से आगे निकालकर?”
उसका झुका हुआ सिर उठा, उसकी आंखें चमक उठीं, “भागभरिए…” यह कहकर उसने अपने सीने पर हाथ रखा, “अब्बू अपनी जान दे देगा”।
लड़की ने अपना दांया हाथ बढ़ाया, “तो ये ले मेरा हाथ।”
उसने लड़की का हाथ मज़बूती से पकड़ लिया: “क़सम अपनी जवानी की, अब्बू तेरा ग़ुलाम रहेगा…”
दूसरे रोज़ अब्बू और उस लड़की का निकाह हो गया।
नाम लड़की का इनायत, यानी नीति था और वह ज़िला गुजरात की मोचन थी।
वह अपने रिश्तेदारों के साथ आई थी। उसके रिश्तेदार स्टेशन पर उसका इंतज़ार करते ही रह गए और वह मुहब्बत की सारी मंज़िलें तय कर गई।
अब्बू और नीति, दोनों ख़ुश थे….न नीति ने चाहा, न अब्बू ने तांगा-घोड़ा बेचा, न नीति के लिए सोने के कड़े बने, लेकिन अब्बू ने अपनी जमा-पूंजी से नीति को सोने की बालियां ख़रीद दीं और कई रेशमी जोड़े बनवा दिए। नीति के लिए यह कम ना था।
लश-लश करते हुए रेशमी लाचे में जब वह अब्बू के सामने आती तो अब्बू का दिल नाचने लगता, “क़सम पंजतन पाक की, दुनिया में तुझ-सा सुंदर और कोई नहीं, वह नीति को अपने सीने के साथ लगा लेता, नीति तू मेरे दिल की रानी है।”