माँ: गरीब विधवा माँ और उसके दृढ़ निश्चय की कहानी

माँ: गरीब विधवा माँ और उसके दृढ़ निश्चय की कहानी

अरे, मम्मी… आप क्यों पैरेंट टीचर मीटिंग में चल रही है और फिर से वही पुरानी हरी साड़ी पहनकर।

दस साल का चिंटू चिढ़चिढ़ाता हुआ बोला।

पर उसकी मम्मी तो ख़ुशी के मारे फूली ही नहीं समा रही थी। शहर के सबसे बड़े स्कूल में एक-एक पाई इकठ्ठा करके उसने अपने इकलौते बेटे का एडमिशन बड़ी मुश्किलों से करवाया था। चिंटू के पापा के ना रहने के बाद तो जैसे वो अपने सारे सपने चिंटू की आँखों से ही पूरे कर लेना चाहती थी।

इसलिए वह उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए बोली – “अब जल्दी से चल वरना मीटिंग खत्म हो जायेगी”।

“हो ही जाए तो अच्छा हैं” चिंटू धीरे से बुदबुदाया।

पर उसकी मम्मी तो अपने बच्चे के मार्क्स के लिए बहुत उत्सुक हो रही थी।

शहर के सबसे अच्छे अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चे की गरीब विधवा माँ बहुत सादगी से रहती है। ना तो वह अंग्रेज़ी बोल पाती है और ना ही उनके पास बाहर पहनने के लिए अच्छे कपड़े है। पर अपने बेटे को पढ़ाने के लिए वह दिन रात एक कर देती है। बेटा माँ को हमेशा हीन दृष्टि से देखता है। उसे लगता है की सब उसकी माँ पर हँसते है। क्या उसके विचार अपनी माँ को लेकर बदलेंगे… क्या उसे महसूस होगा कि उसकी माँ ने उसके लिए कितना त्याग किया… ये जाने के लिए सुने मेरी कहानी “माँ”

गरीब विधवा माँ: Story telling By Dr. Manjari Shukla

चिंटू ने एक नज़र अपनी माँ को देखा जो ढेर सारा तेल लगाये एक सादी सी लम्बी चोटी बनाए हुए थी और अपनी वही दो पुरानी दो साड़ी में से हमेशा की तरह सूती हरी साड़ी पहने थी। चिंटू को अपनी सहेलियों की मम्मियाँ याद आ गई जो बहुत ही फ़ेशनबल थी और सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करती थी।

चिंटू सर झुकाए हुए चला जा रहा था पर उसकी मम्मी के पैर तो मानो हवा से बातें कर रहे थे।

“हे भगवान, आखिर स्कूल आ ही गया” चिंटू गेट पर बोला।

उसकी मम्मी ने आश्चर्य से पूछा – “तो हम लोग तो स्कूल ही आ रहे थे ना”?

चिंटू के सभी दोस्त उससे हँस कर मिल रहे थे। वहाँ पर उसकी मम्मी को भी सब नमस्ते कर रहे थे पर पता नहीं क्यों उसे लग रहा था कि सब मन ही मन उसकी मम्मी पर हँस रहे थे।

जब वे दोनों उसकी क्लास में पहुँचे तो टीचर ने चिंटू की बहुत तारीफ़ की और उसके फर्स्ट आने की बात बताई। जिसे सुनकर उसके मम्मी के ख़ुशी के आँसूं छलक पड़े और उन्होंने साड़ी के पल्लू से अपनी आँखें पोंछ ली।

टीचर मुस्कुरा दी पर चिंटू को अपनी मम्मी पर बड़ा गुस्सा आया।

तभी टीचर बोली – “प्रिंसिपल मैडम आपसे मिलना चाहती हैं। आपका बेटा सब सेक्शन्स में फर्स्ट आया हैं ना”।

यह सुनकर मम्मी खिलखिलाकर हँस पड़ी और उसके साथ प्रिंसिपल मैडम से मिलने चल दी। जब वे लोग कमरे के अन्दर पहुँचे तो स्कूल के माली काका मैडम बैठकर बातें कर रहे थे। प्रिंसिपल मैडम ने मुस्कुराकर उसे और उसकी मम्मी को बैठने के लिए कहा।

तभी माली काका बोले – “तो अब मैं चलता हूँ। बहुत काम हैं मुझे”।

“जी” कहकर प्रिंसिपल मैडम उठी और उनके पैर छूने लगी।

माली काका ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कमरे से मुस्कुराते हुए बाहर चले गए।

चिंटू ये देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसकी आँखों के आगे जैसे कमरा घूमने लगा। इतनी बड़ी प्रिंसिपल मैडम, इतनी अच्छी साड़ी पहने और इतने गंदे-संदे रहने वाले माली काका के पैर छू रही थी।

उसके इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वो मैडम से कुछ पूछता इसलिए चुपचाप उन्हें ताकता रहा।

पर प्रिंसिपल मैडम चिंटू के मनोभावों को बड़ी ही आसानी से समझ गई। उन्होंने सबसे पहले अपनी कुर्सी से उठकर उसकी मम्मी को गले से लगाया और बोली – “आज तक मेरे स्कूल में ९९ परसेंट मार्क्स किसी बच्चे के नहीं आये थे। आपके बेटे ने आज हमारे स्कूल का नाम रोशन कर दिया पर इसकी असली हकदार मैं आपको मानती हूँ”।

मम्मी ख़ुशी से गदगद हो उठी और बड़े ही प्यार से चिंटू की ओर देखने लगी।

“आप इसे क्या किसी से ट्यूशन भी पढ़वाती हैं” मैडम ने आगे पूछा?

यह सुनकर उसकी मम्मी की आँखों में आँसूं भर गए।

वह रूंधे गले से बोली – “मैडम, हम लोग बहुत गरीब हैं। इसलिए ट्यूशन नहीं लगवा सकती। मैं इसे खुद ही पढ़ाती हूँ”।

यह सुनकर प्रिंसिपल मैडम ने चिंटू को देखकर भावुक होते हुए कहा – “बेटा, फर्स्ट तुम नहीं तुम्हारी मम्मी आई हैं”।

और उन्होंने उसकी मम्मी को अपने ही स्कूल में नौकरी का आवेदन करने के लिए बोला।

फिर उन्होंने मुस्कुराकर चिंटू अपने पास बुलाया और कहा – “बेटा, वो माली काका मेरे पिताजी हैं। उन्होंने ही मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं इतने बड़े स्कूल की प्रिंसिपल हूँ।”

यह सुनते ही चिंटू अपनी माँ से लिपट गया और फफक-फफक कर रोने लगा।

उसकी माँ उसे गोदी में उठाकर चुप कराने लगी और मैडम मुस्कुरा रही थी क्योंकि वो जानती थी कि ये चिंटू पश्चाताप के आँसूं थे, जिन्होंने उसके मन का सारा अन्धकार धो दिया था और अब वहाँ सिर्फ़ ज्ञान और विवेक का प्रकाश था।

चिंटू प्रिंसिपल रूम से निकलते वक्त मम्मी का हाथ जोर से पकड़े हुए था और उसे गर्व था कि उसकी माँ ने कितनी सादगी में रहते हुए भी उसके लिए सब कुछ किया ।

उसने मम्मी की ओर हँसकर देखा जो चिंटू की भावनाओं से अनजान उसके स्कूल को अभी भी बहुत ख़ुशी खुशी देख रही थी।

~ डॉ. मंजरी शुक्ला

Check Also

दिवाली के पटाखों की बाल-कहानी: दिवाली

दिवाली के पटाखों की बाल-कहानी: दिवाली

दिवाली के पटाखों की बाल-कहानी: एक दुकान में ढेर सारे पटाखे सजे हुए रखे थे, …