मैं डॉक्टर बनूँगा: नाम से कुछ नहीं होता सोच सकारात्मक होनी चाहिए

मैं डॉक्टर बनूँगा: नाम से कुछ नहीं होता सोच सकारात्मक होनी चाहिए

मैं डॉक्टर बनूँगा: सात साल का शिखर अपनी मम्मी के साथ अस्पताल गया। दरअसल ठंड लगने के कारण उसकी तबीयत कुछ  नासाज थी। अस्पताल के पर्ची काऊंटर पर लंबी लाइन लगी हुई थी, इसलिए मम्मी ने उसे एक बैंच पर बैठा दिया और वह खुद लाइन में लग गई।

शिखर बैंच पर बैठा-बैठा बोर हो गया था तो वह इधर-उधर टहलने लगा। टहलते-टहलते वह एक डॉक्टर के कक्ष के बाहर खड़ा हो गया। उस पर एक डॉक्टर साहब की निगाह पड़ी।

मैं डॉक्टर बनूँगा: गोविन्द भारद्वाज

“अरे यह कौन बच्चा है जो मेरे रूम के बाहर घूम रहा है?” डॉक्टर ने एक नर्स से पूछा।

“कौन-सा बच्चा सर?” नर्स ने इधर-उधर नजर दौड़ाते हुए पूछा।

“अरे जो अभी-अभी यहीं खड़ा था… और हां उसकी लाल रंग की टी-शर्ट पर बालमैन लिखा था।” डॉक्टर ने बताया।

उस नर्स ने कक्ष के बाहर आकर देखा तो सचमुच एक बच्चा लाल रंग की टी-शर्ट पहने खड़ा था और उसकी टी-शर्ट पर बालमैन लिखा था।

“बेटा तुम यहां क्यों खड़े हो?” नर्स ने उसके नजदीक जाकर पूछा।

“मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए डॉक्टर साहब को दिखाने के लिए आया हूं।” शिखर ने जवाब दिया।

नर्स ने उसे छुआ तो सचमुच उसका बदन तप रहा था।

“चलो मैं तुम्हें डॉक्टर साहब के पास ले चलती हूं… देखो सामने डॉक्टर साहब बैठे हैं।” नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

शिखर नर्स की उंगली पकड़कर डॉक्टर साहब के रूम में चला गया।

“क्या नाम है बेटा तुम्हारा?” डॉक्टर साहब ने पूछा।

“शिखर” उसने झट से बताया।

“अच्छा शिखर… शिखर धवन।” डॉक्टर ने उसे चैक करते हुए कहा।

“शिखर धवन नहीं सर, शिखर चौहान।” उसने पलटकर जवाब दिया।

“क्यों भई… शिखर धवन में कोई खराबी है क्या?” डॉक्टर साहब ने पर्ची पर कुछ लिखते हुए पूछा।

“मेरे पापा कहते हैं कि अपने नाम के साथ अपनी पहचान बनाओ… दूसरे के नाम जैसा नाम भले हो लेकिन खुद अपना नाम करो।” शिखर ने बड़ों की तरह जवाब दिया।

“ऐसे कैसे बेटा?” डॉक्टर ने उससे मुस्कुराते हुए पूछा।

“डॉक्टर अंकल जैसे आपका नाम सचिन चौबे है… तो आप सचिन तेंदुलकर थोड़ी बने। आप तो एक डॉक्टर बन गए।” उसने कहा।

“ओरे वैरी इंटेलिजैंट ब्वॉय।” डॉक्टर साहब ने कहा।

“अच्छा तो तुम बड़े होकर कया बनोगे?” नर्स ने भी पूछ लिया।

“मैं… मैं तो डॉक्टर बनूंगा… डॉ. शिखर चौहान।” शिखर ने कहा।

“गुड वैरी गुड… जरूर बनोगे बेटा… ।” डॉक्टर अंकल ने कहा।

फिर नर्स की तरफ देखते हुए डॉ. सचिन चौबे ने कहा, “नर्स दवा काऊंटर से इस बच्चे को दवाइयां दिलवा दो और देखो यह किसके साथ आया है।”

“मैं अपनी मम्मी के साथ आया हूं। वह लंबी लाइन में लगी हैं… पर्ची बनवाने के लिए।” उसने बताया।

नर्स उसकी उंगली पकड़कर दवा काऊंटर पर गई। इसके बाद वह उसे पर्ची काऊंटर पर ले गई।

“मम्मी… ओ मम्मी।” शिखर ने लाइन के बीच में खड़ी अपनी मम्मी को पुकारा।

“थोड़ी देर और मेरे बच्चे… पर्ची बनने ही वाली है… दस-बारह और लोग आगे खड़े हैं मुझ से।” मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा।

“आ जाओ अब लाइन में खड़े रहने की जरूरत नहीं है? मम्मी… डॉक्टर अंकल ने मुझे देख लिया है और दवा भी दिलवा दी है।” शिखर ने बताया।

“अरे कब… कैसे?” मम्मी ने लाइन से बाहर आते हुए पूछा।

उसी समय नर्स ने शिखर की सारी बातें विस्तार से बता दी। “लो बहन जी ये दवाइयां… सुबह-शाम तीन दिन तक देनी हैं इसे और ठंडी चीजें खाने को नहीं देनीं।” नर्स ने दवाइयां देते हुए कहा।

“धन्यवाद सिस्टर।” मम्मी ने आभार जताते हर कहा।

“अरे मेरा शिखर तो बहुत होशियार निकला… ।” मम्मी ने उसे गोद में उठाते हुए कहा।

~ गोविन्द भारद्वाज, अजमेर

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