मन्नत की दीवाली: मैं आपसे कब से कह रही हूँ, पर आप मुझे इस दिवाली पर नई पेंसिल, नए पेन और नया बस्ता दिलवा ही नहीं रही है… मन्नत ने गुस्से से अपनी माँ से कहा।
माँ भी दिवाली नज़दीक आने के कारण घर की साफ़ सफ़ाई कर रही थीI सुबह से लगातार काम करते हुए वो भी बुरी तरह थक चुकी थी, तब भी उन्होंने उसे समझाते हुए कहा – “दिवाली पर तुम्हारे लिए नई फ्रॉक और पटाख़े तो ले ही आये है, अब तुम बेकार इतनी फ़िज़ूलख़र्ची की क्यों बात कर रही हो?”
मन्नत की दीवाली: मंजरी शुक्ला
“नहीं मम्मी, आपने मुझे कितने महीने पहले मेरा बस्ता दिलवाया था”।
“पर वो तो अभी बिलकुल नया ही है ना”।
“नहीं मम्मी, मैं कुछ नहीं जानती, जब तक आप मुझे ये सारी चीज़े नहीं दिलवाओगी, मैं आपसे बात ही नहीं करुँगी”।
और जब तक मम्मी उसे रोकती मन्नत अपने कमरे में जा चुकी थी।
पास ही बैठी दादी उन दोनों की बातें सुन रही थी। उन्होंने देखा कि मम्मी अपने आँसूं पोंछ रही थी। दादी को ये देखकर मन्नत पर बहुत गुस्सा आया, पर वो जानती थी कि ज़्यादा प्यार दुलार के कारण मन्नत की हर बात उसके कहते ही पूरी कर दी जाती थी, इसलिए अब वो हर छोटी से चीज़ के लिए भी जिद पर अड़ जाती थी।
इसलिए दादी ने उसे डाँटने के बजाय प्यार से समझाने के लिए सोचा।
वो मन्नत के कमरे में गई और बोली – “आज हम शाम को एक ऐसी जगह जाएँगे, जहाँ पर तुम आज तक नहीं गई हो”।
दादी की बात सुनते ही घूमने की शौक़ीन मन्नत अपना सारा गुस्सा भूल गई और बोली – “कोई नया पार्क खुला है क्या दादी”?
“शाम तक का इंतज़ार करो और अपने पुराने कपडे, बस्ता और बाकी खिलौने वगैरह स्टोर रूम से ले लेना, जो तुम अब उपयोग में नहीं लाती हो” दादी ने हँसते हुए कहा।
मन्नत तुरंत बिस्तर से कूदी और फटाफट अपना पुराना सामान एक बड़े से झोले में रखने लगी।
शाम को दादी के साथ कार में बैठकर वो रास्ते भर दादी से दिवाली पर खरीदने वाले कपड़ों, बस्तें और खिलौनों की बातें करती रही थी। थोड़ी ही देर बाद ड्राइवर ने एक बड़े से लाल रंग के मकान के सामने कार रोकी, जिस पर बड़े अक्षरों में “अनाथालय” लिखा था।
मन्नत ने आश्चर्य से दादी की तरफ देखा, पर दादी तो ड्राइवर के साथ मिठाई और पटाखों का डिब्बा और मन्नत का झोला उठाकर अनाथालय के भीतर जा रही थी।
मन्नत भी दादी के पीछे दौड़ी। दादी को देखते ही वहाँ पर बच्चो की भीड़ इकठ्ठा हो गई तभी एक महिला ने आकर उन्हें नमस्ते किया।
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा – “बच्चों को कुछ सामान देना था”।
“आप अपने हाथ से दीजिये ना, बच्चे बहुत खुश होंगे”।
दादी ने मन्नत से कहा – “बिटिया, तुम सभी बच्चों को मिठाई, पटाखे और सामान दो”।
मन्नत ने जैसे ही डिब्बा और झोला खोला, सभी बच्ची उसे घेरकर खड़े हो गए।
एक-एक फुलझड़ी, चकरी और अनार पाकर सभी बच्चों के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे। कोई रंगीन गेंद पकड़कर उछल रहा था तो कोई सीटी वाला बन्दर बजा रहा था। कपड़ों को भी सभी बच्चों ने मिनटों में ही अपनी नाप के अनुसार छांट कर ले लिए थे। वे सब एक-दूसरे को ख़ुशी-ख़ुशी अपने खिलौने, कपड़े और पटाखें दिखा रहे थे। दादी ने कनखियों से मन्नत की तरफ़ देखा जो एक कोने में आँखों में आँसूं भरे बिलकुल सन्न खड़ी थी।
दादी ने प्यार से उसका हाथ पकड़ लिया और बाहर आ गई। मन्नत दादी के गले लिपट गई और रोते हुए बोली – “मैंने आज इन बच्चों से सीखा कि खुशियाँ हमारे पास ही होती है। पुराने कपड़ों और खिलौनों में भी ये बच्चे कितना खुश है। अब मैं कभी कोई जिद नहीं करुँगी। मेरे पास इतना होने के बाद भी में आप सबको तंग करके कुछ ना कुछ माँगा ही करती हूँ”।
दादी की आँखें भी नम हो गई। उन्होंने मन्नत के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा – “तो फ़िर इस दिवाली पर और क्या लेने का इरादा है”?
दादी… कहते हुए मन्नत जोरो से हँस पड़ी और इस हँसी में दादी को कई रंगबिरंगे अनार और फुलझड़ियाँ सतरंगी रौशनी बिखेरती हुई नज़र आ रही थी।