अचानक अम्मा दर्द से कराह उठी।
क्या हुआ अम्मा… कहते हुए श्यामा हड़बड़ाकर उठी और उसका पैर अमिया काटने वाली हँसियां के ऊपर पड़ गया।
दर्द भरी चीत्कार श्यामा के मुँह से निकली और पल भर भी हँसियां और श्यामा का पैर खून से नहा उठा।
पर श्यामा का पूरा ध्यान अभी भी अम्मा की तरफ था जिनकी कमर की नस चली गई थी और वो दर्द से चिल्ला रही थी।
श्यामा ने दर्द से होंठ काटते हुए, खटिया के पास पड़ा अंगोछा किसी तरह झुककर अपने पैर में बाँधा और अम्मा को उठाने की कोशिश करने लगी।
तभी हवा में शराब और सिगरेट की मिली जुली गंध फ़ैल गई और उसने पलट कर देखा तो उसका बड़ा भाई बड़ी ही बेफिक्री से सारी रात घर से गायब रहने के बाद चला आ रहा था।
अम्मा तो उसे देखकर जैसे निहाल हो गई और उनका दर्द भी जैसे छूमंतर हो गया। वह तुरंत श्यामा का हाथ दूर सरकाते हुए बोली – “पर हट, मेरी बुढ़ापे की लाठी आ गया, अभी देखना मुझे गोदी में उठाकर मेरे कमरे तक पहुंचाएगा।”
श्यामा ने धीरे से अपना पैर सरकाया और अम्मा की चारपाई के पास खड़ी हो गई।
अम्मा ने भैया को देखते हुए बड़े ही प्यार से उलाहना देते हुए बोला – “श्रवण,लागत है, हमेशा की तरह कमर की नस चली गई है, जरा हमें सहारा देकर खड़ा तो कर दे”।
“वाह अम्मा वाह… रात भर का थका हारा बेटा दिन चढ़े घर लौटा है… चाय तो दूर एक कप पानी तक नहीं पूछा और कमर का रोना लेकर बैठ गई”।
और ये कहते हुए वो श्यामा को घूरते हुए तेज आवाज़ में बोला-” चाय बना दे मुझे एक कप”। ओर ये कहते हुए वो अंदर चला गया।
अम्मा के चहरे की बेबसी ने श्यामा को अंदर तक भिगो दिया। उसने सकुचाते हुए अम्मा की ओर देखा तो उनकी डबडबाई हुई आँखें शर्म और अपमान से उसकी ही तरफ देख रही थी।
अम्मा बोली – “सहारा दे बिटिया जरा मुझे…”
श्यामा का हाथ थर्रा गया… आज पहली बार अम्मा ने उसे बिटिया कहा था।
श्यामा ने तुरंत उनकी पीठ पर हाथ का सहारा देते हुए उन्हें सावधानी से खड़ा कर दिया।
“चलो अम्मा कमरे में… मैं गर्म पानी से सिकाई कर देती हूँ”, श्यामा ने अम्मा का हाथ बड़े ही प्यार से पकड़ते हुए कहा।
“नहीं ..सिकाई विकाई रहने दे… मेरी पीठ तो तेरे भाई के शब्दों ने ही सेंक दी। अब जरा चल, सामने वाली वर्माइन के घर चलते है”।
“पर अम्मा… चल… चुपचाप”, कहते हुए अम्मा के साथ श्यामा वर्मा आंटी के घर जा पहुंची।
उनके घर में ढोलक की थापों पर मंज़ीरें, झांझर बज रहे थे और बधाई गीतों की आवाज़ें आ रही थी।
अम्मा को देखते ही जैसे सबके चेहरे का रंग उड़ गया।
ढोलक वाले हाथ वही रुक गए और मंजीरे वाली ने पल्लू के अंदर मंजीरे ऐसे छुपा लिए मानों वो हथगोले हो।
गाने वाली फटाक से मुँह के ऊपर घूँघट डाल कर बैठ गई ताकि अम्मा आने वाले कई साल तक उनकी फ़जीहत ना करे।
पर अम्मा तो इन सब बातों से बेखबर सीधे वर्मा आंटी के पास पहुंची ,जहाँ वो नन्ही से बेटी को लेकर गोद में बैठी थी।
और कुछ देर पहले खिला हुआ चेहरा अब अम्मा को देखकर मुरझा गया था।
अम्मा ने बड़े ही सावधानी से उस नन्ही सी गुड़िया को उठाया और उसे प्यार से चूमते हुए वर्मा आंटी से बोली – “बड़ी ही नसीब वाली हो वर्माइन…बहुत – बहुत बधाई हो …बेटी हुई है”।
और ये सुनते ही वर्मा आंटी का चेहरा फूल की तरह खिल उठा और उन्होंने झुककर बड़ी ही श्रद्धा से अम्मा के पैर छू लिए।
अम्मा ने सजल आखों से उनके सर पर हाथ फेरा और श्यामा के साथ बाहर आ गई।
ढोलक की थाप पर झांझर की रुनझुन की आवाज़ अब बधाई गीतों के साथ और भी जोरो शोरो से आने लगी थी।
it is nice story bro keep it up and send me more storys for readings thank you
I really loved your story please make more sir.