मुनिया की आखों में आँसूं आ गए। माँ की डाँट से ज्यादा दुःख उसे अपने छोटे भाई राजू के साथ स्कूल जाने का नहीं था।
वो कुछ कहती, इससे पहले ही मालती फिर बोली – “जल्दी से जूते पॉलिश कर दे वरना मेरे लाडले बेटे को स्कूल के लिए देर हो जाएगी।”
मुनिया दौड़ती हुई गई और खटिया के नीचे से राजू के काले जूते ले आई।
पालिश की डिबिया खोलते हुए वो मान से बोली – “मान, क्या तुम मुझे प्यार नहीं करती।”
मालती ने मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से उसे देखते हुए बोला-” क्यों नहीं करती, तू तो मेरी लाडो रानी है।”
मुनिया माँ के प्यार भरे बोल सुनकर खुश हो गई और दुगनी मेहनत से जूते चमकाते हुए बोली – “तो माँ, मेरा भी मन पढाई करने को करता है, मुझे भी भेज दो ना स्कूल।”
ये सुनते ही मानो मालती को करंट लग गया।
उसने लपक कर राजू के जूते मुनिया के हाथ से लिए और उसे पहनाने लगी।
मुनिया की आँखों मे आँसूं आ गए।
तभी राजू बोला – “माँ, भेज दो ना दीदी को भी स्कूल… बेचारी रोज रोती है मेरे स्कूल जाते समय।”
राजू को मुनिया का साथ देते देख मालती चीख पड़ी और बोली – “मैंने आज तक कभी पाठशाला का मुँह देखा क्या, तुम्हारी नानी- दादी गई कभी पढ़ने… और तो और पूरे गाँव में कोई भी औरत ने आज तक सकूल के अंदर पैर तक नहीं धरा।”
“सकूल नहीं माँ, स्कूल…” राजू धीरे से बोला।
“हाँ हाँ वही – अब ज्यादा देर मत करो चुपचाप सकूल जाओ।”
मुनिया राजू का हाथ मत छोड़ना और उसे सकूल के अंदर तक छोड़ के आना।
माँ के सकूल बोलने पर राजू हँस दिया तो मुनिया भी अपने सामने के २ टूटे दाँतों को दिखाते हुए मुस्कुरा उठी।
रास्ते भर राजू मुनिया को अपनी किताबों, दोस्तों और स्कूल के बारे में बताता रहा और बातों ही बातों मे कब स्कूल आ गया वे जान ही नहीं पाए।
सभी बच्चे बस्ता टांगे स्कूल के गेट के अंदर जा रहे थे जिन्हें देखकर मुनिया का मन हुआ कि वो भी दौड़ती हुई अंदर चली जाए और फटाफट सब कुछ याद करके मास्टर साहब को सुना दे पर वो उदास नज़रों से अंदर जाते बच्चों को ही देखती रही।
राजू मुनिया का दुःख समझ गया इसलिए तुरंत बोला -” दीदी, तुम घर जाओ अब मैं चला जाऊँगा।”
“ठीक है…” मुनिया धीरे से बोली और स्कूल की तरफ़ देखते हुए सड़क पर पड़े कंकरों को पैरों से उछालती हुई घर की तरफ़ चल दी
घर पहुँचने के बाद वो अपने आस पड़ोस की सहेलियों के साथ खेलने में व्यस्त हो गई।
दोपहर मे जब राजू ने स्कूल से लौटने के बाद खाना खाया और अपनी किताबे लेकर बैठा तो हमेशा की तरह मुनिया भी उसके पास जाकर बैठ गई।
रंग बिरंगे चित्रों से सजी किताबों के देखकर मुनिया राजू से बोली – “मेरा बहुत मन करता है पढ़ाई करने का…”।
राजू ने मुनिया की तरफ प्यार से देखा और बोला – “जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो तुम्हें स्कूल भेजूँगा।”
उसकी बात सुनकर मुनिया जोरो से हँस पड़ी।
Yes sir, Education bahut jaruri hai har kisi ke liye – chahe vo girl ho ya phir boy, shikshit desh tab hoga jab shikshit samaj hoga. Thank you sir.