राजू के बिना मुनिया का घर में मन ही नहीं लग रहा था इसलिए वह माँ के साथ बरामदे में बैठी हुई उनके साथ गप्पे लड़ा रही थी। तभी पोस्टमैन चाचा चिट्ठियों का बण्डल हाथ में लिए हुए आए और हँसते हुए मुनिया से बोले – “लो बिटिया, तोहार चिट्ठी”।
मुनिया ने मालती को चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा – “माँ , देखो तो क्या आया है?”
जब तक माँ चिट्ठी को उलट पलट कर देखती वो तेज क़दमों से डग भरते हुए चले गए।
मुनिया ने चहकते हुए पूछा – “माँ, हमें तो कोई चिट्ठी नहीं लिखता फिर आज भला किसने भेज दी?”
“हाँ… पता नहीं…” कहते हुए मालती ने चिट्टी को गौर से देखते हुए चारों तरफ से उलट पलट कर देखा, पर उसे कुछ समझ में नहीं आया।
वो बोली – “जब बापू शहर से लौटेंगे तब उन्ही से पढ़वाएँगे चिट्ठी”, और ये कहते हुए मालती ने चिट्टी कमरे में जाकर मेज पर रख दी।
मालती मुनिया के साथ हँस बोल तो रही थी पर मुनिया जान रही थी कि माँ का ध्यान सारे समय चिट्ठी की तरफ़ ही लगा हुआ था।
मुनिया ने माँ का आँचल पकड़ते हुए पूछा – “माँ, चिट्ठी आने के बाद इतनी उदास क्यों हो?”
मालती ने प्यार से मुनिया के गालों पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा – “आज पहली बार हमारे घर चिट्ठी आई है, पता नहीं क्या लिखा होगा?”
और ये कहकर माँ रसोईघर में चली गई।
माँ के जाते ही मुनिया दौड़ते हुए चिट्ठी के पास पहुँची और उसे उठाकर पढ़ने की कोशिश करने लगी।
मालती बिटिया , माँ… बहुत… बी..बीमार है… जल्दी…आ… आजाओ… बापू
“क्या बोल रही है ये अनाप शनाप…” मालती मुनिया के पास आकर गुस्से से बोली।
“माँ… नानी बीमार है… आपको बुलाया है”
“क्या… तुझे कैसे पता…” मालती ने घबराते हुए पूछा।
“इस चिट्टी में लिखा है।”
“पर तुझे कहाँ पढ़ना आता है”।
“आता है माँ…” थोड़ा थोड़ा मैंने राजू को पढ़ते देखकर सीख लिया।
मालती ने मुनिया को सीने से भींच लिया। उसकी रुलाई फूट पड़ी और उसने मुनिया को गोदी में उठा लिया।
मुनिया इस तरह से उसे रोते देखकर सकपका गई और माँ के आंसूं पोंछते हुए बोली-” हम अभी नानी को देखने चलेंगे।”
“हाँ..तू दौड़कर पड़ोस वाली चाची को घर की चाभी दे दे और बापू के आने पर उन्हें भी वहाँ आने के लिए बता देना”।
“हाँ माँ..अभी जाती हूँ”।
“सुन…” मालती ने मुनिया को पुकारा।
“क्या माँ…” हाँफती हुई मुनिया मालती के आगे जाकर खड़ी हो गई।
“नानी के यहाँ से लौटने के बाद तू भी राजू के साथ रोज स्कूल जायेगी…” माँ ने मुनिया का चेहरा बड़े प्यार से अपने हाथों में लेते हुए कहा।
मुनिया ने भरपूर नज़रों से माँ की तरफ़ देखा और उसकी आँखों से दो बड़े – बड़े गर्म आँसुओं की बूँदें माँ की हथेली पर गिर पड़ी।
मुनिया कुछ कहना चाहती थी..पर उसका गला रूंध गया। उसने माँ की हथेलिया चूम ली और बिजली की गति से भागी पड़ोस वाली चाची के घर, उन्हें माँ का संदेसा देने के लिए…
Yes sir, Education bahut jaruri hai har kisi ke liye – chahe vo girl ho ya phir boy, shikshit desh tab hoga jab shikshit samaj hoga. Thank you sir.