क्रिसमस आने में सिर्फ़ दो दिन बाकी थे और हर साल की तरह पूरा शहर रौशनी में नहाया हुआ था। केक, पेस्ट्री और ताजे बिस्कुट की भीनी-भीनी महक से सबके कदम खुद ब खुद बेकरी की ओर खिंचे चले जा रहे थे। दर्ज़ी की दुकान में तो तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी। बच्चे हो या बड़े, नए कपड़े सिलवाने के लिए सभी गिरते पड़ते दौड़े चले जा रहे थे। आख़िर दौड़ा-भागी करें भी क्यों ना… क्यों ना पहने नए कपड़े, क्रिसमस भला कोई रोज़- रोज़ थोड़े ही ना आता है।
चर्च की खूबसूरती तो देखते ही बनती है। सफ़ेद रंग में साल भर शान्ति का प्रतीक बना, गर्व से खड़ा चर्च क्रिसमस की एक रात पहले रंगबिरंगी झालरों से सज कर ऐसा भव्य और खूबसूरत दिखने लगा है कि राह चलते राहगीर भी ठिठक कर उसकी सुंदरता निहारने के लिए रुक जाते है। सारा शहर जहाँ खुशियाँ मनाने में व्यस्त है और किसी के पास भी पल भर चैन से साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं है, वहीँ पर मिसेज़ जॉर्ज अपने कमरे में अकेले बैठी किसी किताब के पन्ने पलट रही है। क्रिसमस के आने या जाने से उनके ऊपर अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। मिसेज़ जॉर्ज ने किताब टेबल पर रखी और कुछ बुदबुदाते हुए दरवाज़ा खोला।
सामने कुछ बच्चे खड़े थे।
वो कुछ पूछती उससे पहले ही एक बच्चा बोला – “आँटी, हम सब बच्चे क्रिसमस ट्री सजा रहे है।”
तभी उसके पीछे खड़ा दूसरा बच्चा बोला – “मेरे घर पर।”
मिसेज़ जॉर्ज चिढ़ते हुए बोली – “तो मैं क्या करूँ?”
“आप थोड़े से पैसे दे दो ना और कुछ फल भी, जिससे हम क्रिसमस ट्री बहुत सुन्दर सजा सके और उसके बाद आराम से बैठकर फल खा सके।”
मिसेज़ जार्ज को इतना तेज गुस्सा आया कि उनका मुँह लाल हो गया और बिना कुछ कहे उन्होंने धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर लिया। कमरे के अंदर आकर वो बहुत देर तक बड़बड़ाती रही।
“ट्री सजाना है… फल खाने है… मैं किसी को एक पैसा भी ना दूँ। आख़िर इतना प्यार और इतना विश्वास करने के बाद मुझे क्या मिला।” और ये कहते हुए वो दोनों हथेलियों में अपना चेहरा छुपाकर रो पड़ी।
उधर दरवाज़े के बाहर खड़े बच्चे समझे कि आँटी अंदर से उनके लिए पैसे और फल लाने गई है, इसलिए वो दरवाज़े के बाहर ही बैठ गए।
झीनी सी शर्ट पहने हुए रॉबिन बंद दरवाज़े की तरफ़ ताकते हुए बोला – “बहुत देर हो गई आँटी को अंदर गए हुए। मुझे तो बड़ी ठंड लग रही है।”
“हाँ.. मुझे लगता है उनके पास पैसे नहीं है” सैम ने अपनी फ़टी शर्ट को कसकर भींचते हुए कहा।
“तुम्हें क्या लगता है?” आलोक ने डुफ़्रिन के तरफ देखते हुए पूछा क्योंकि वो उन सबमें सबसे समझदार मानी जाती थी।
इसके दो कारण थे। एक तो वो बहुत कम बोलती थी और दूसरा कि वो बहुत बड़े फ्रेम चश्मा लगाती थी। सब समझते थे, वो बहुत पढ़ाकू है और इसलिए उसे इतना बड़ा चश्मा लगा है जबकि असलियत ये थी कि वो फ़्रेम उसके नाना का था और उसकी मम्मी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो डुफ़्रिन के लिए नया फ़्रेम खरीद सके। इसलिए उन्होंने उसके नाना के पुराने फ़्रेम में लैंस लगवा दिए थे।
ख़ैर डुफ़्रिन ने अपना चश्मा हमेशा की तरह ठीक किया और बुद्धिमान बनने की पूरी कोशिश करते हुए बोली – “हमें इस खुली हुई खिड़की से झाँककर देखना चाहिए कि आँटी अंदर इतनी देर क्यों लगा रही है?”
हमेशा की तरह इस बार फ़िर सब उसकी बुद्धिमानी का लोहा मान गए।
सैम ने कहा – “अगर हमारे पास जूते होते तो हम उस बड़े से कीले पर चढ़कर देख लेते”।
ये सुनते ही सबने अपने नंगे पैरों की तरफ़ देखा और दुखी हो गए।
“कोई बात नहीं मैं घोड़ा बन जाता हूँ और मोनू अंदर झाँक लेगा, क्योंकि वो लंबा है” सैम बोला।
ये विचार सबको पसंद आया और सैम मोटापे के कारण हमेशा की तरह घोड़ा बना और दुबला-पतला मोनू लपक कर उसके ऊपर चढ़ गया।
उसने अंदर झाँककर देखा तो मिसेज़ जॉर्ज सिसकियाँ लेते हुए बहुत जोर-जोर से रो रही थी।
वो तुरंत वापस नीचे कूद गया और बोला – “आँटी तो बहुत रो रही है”।
“रो रही है, पर क्यों”?
“हाँ… हमने तो सिर्फ़ कुछ पैसे और फल ही माँगे थे”।
“तो नहीं होंगे ना…”।
“इतना बड़ा घर, इतनी सारी बत्तियाँ, इतना बड़ा बाग़ और क्या उनके पास कुछ पैसे नहीं होंगे”!
इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था, इसलिए सब फ़िर से डुफ़्रिन की ओर देखने लगे।
सबको अपनी ओर ताकता देख डुफ़्रिन सकपका गई और बोल पड़ी – “आँटी कुछ काम तो करती नहीं है, तो उनके पास पैसे कहाँ से आएँगे? अंकल तो बहुत साल पहले नहीं रहे और उनका बेटा भी तो उन्हें अकेला छोड़कर अमेरिका चला गया है”।
“हाँ… अमेरिका… वो तो बहुत बड़ा देश है… इतनी दूर से कैसे पैसे भेजेगा?”
“आँटी भी कैसे जाएँगी? उनके पास इतने पैसे नहीं होंगे ना! तभी तो आज तक नहीं गई”।
“हमें आँटी से पैसे और फल नहीं माँगने चाहिए थे, हमने उनका दिल दुखा दिया”।
“चलो, माफ़ी माँग लेते है” मोनू बोला।
“नहीं नहीं… अभी नहीं… कुछ सोचते है जिससे आँटी खुश हो जाए, आख़िर कल क्रिसमस है ना… हम उन्हें इस मौके पर अकेले रहकर रोने नहीं दे सकते”।
और फ़िर सब आपस में ढेर सारी बातें करते और कुछ सोचते हुए वहाँ से चल दिए।
रास्ते भर उन्होंने सलाह मश्वरा किया और अंत में एक बात पर सब सहमत होते हुए एक-दूसरे से विदा लेकर ख़ुशी ख़ुशी अपने-अपने घर चले गए।
अगले दिन क्रिसमस था। चारों तरफ़ सेंटा क्लाज़, लाल फर वाली कैप, ग्रीटिंग कार्ड और ढेर सारे खिलौनों से दुकाने पटी पड़ी थी। ये सभी बच्चे क्रिसमस ट्री और खिलौनों की तरफ़ ललचाई नज़रों से देखते हुए आँटी के घर की तरफ चले जा रहे थे।
आँटी के घर पहुँचकर सैम बोला – “डुफ़्रिन, तू दरवाज़े की घंटी बजा”।
डुफ़्रिन ने खुश होते हुए घंटी बजाई और मुस्कुराते हुए सबकी ओर देखने लगी”।
घंटी बजते ही आँटी ने दरवाज़ा खोल दिया। उनके हाथ में स्टील का भगोना था।
मोनू धीरे से बोला – “आँटी शायद दूधवाले का इंतज़ार कर रही थी”।
दूधवाले की जगह इन बच्चों को देखकर मिसेज़ जॉर्ज का गुस्सा भड़क उठा और वो चिढ़ते हुए बोली – “नहीं आया क्या तुम्हारा क्रिसमस ट्री?”
“नहीं आ पाया आँटी”।
मिसेज़ जॉर्ज कुछ और कड़वा बोलने जा रही थी कि मोनू ने बंद मुट्ठी उनके आगे खोलते हुए कहा – “ये आपके लिए”।
आँटी ने देखा कि उसकी हथेली में कुछ मुड़े हुए नोट और सिक्के है।
“ये क्या है”? उन्होंने आश्चर्य से पूछा।
“कल आप हमारे पैसे माँगने पर रो रही थी ना, इसलिए हमने जो पैसे इकठ्ठा किये थे, उसे आपके लिए ले आए है और हमनें क्रिसमस ट्री भी नहीं खरीदा।”
मिसेज़ जॉर्ज के हाथ से भगोना छूट गया।
सैम आगे आते हुए बोला – “आँटी आप दुखी मत हो, पैसे जरा कम है पर हम सब और जोड़ेंगे और अगले क्रिसमस पर आपको अच्छा गिफ्ट देंगे।”
आँसूं भरी डबडबाई आँखों से मिसेज़ जॉर्ज ने सामने खड़े बच्चों को देखा।
दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में केवल पतली महीन शर्ट पहने दुबला पतला बच्चा, छोटी सी बच्ची झालर वाली फ्रॉक पहने जिसकी सिलाई कई जगह से उधड़ रही थी, उसके छोटे से चेहरे पर बहुत बड़े फ़्रेम का चश्मा, अपने हाथों को कसकर चिपटाते हुए ठंडी फ़र्श से बार-बार अपने नंगे पैर उठाते बच्चे… उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली। उनकी बंद आँखों से बहते आँसूं उनके गालों तक बह निकले।
उन्होंने रूंधे गले से कहा – “हे प्रभु, मुझे क्षमा कर देना। मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया। एक बेटा मुझे छोड़कर चला गया तो मैंने इन बच्चों के साथ नाइंसाफी कर दी।
उन्हें रोता देख बच्चे बुत बने खड़े थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर आँटी पैसे देखने के बाद इतना रो क्यों रही थी।
तभी मिसेज़ जॉर्ज जैसे होश में आई और घुटनों के बल बैठकर उन्होंने सब बच्चों को अपने गले से लगा लिया।
थोड़ी ही देर बाद मिसेज़ जॉर्ज को भी साँस लेने की फुरसत नहीं थी। आख़िर वे भी बच्चों के साथ कभी कपड़ों की दुकान तो कभी बेकरी और क्रिसमस ट्री खरीदने दौड़ी जा रही थी।
बच्चे ख़ुशी से चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे और उनके इर्द गिर्द नाच रहे थे।
और मिसेज़ जॉर्ज… वो तो बस खुश थी… बहुत खुश। आख़िर ये क्रिसमस उनके लिए ढेर सारी खुशियाँ और नन्हें दोस्त जो लेकर आया था।
~ डॉ. मंजरी शुक्ला
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