नन्हें गणेश: डॉ. मंजरी शुक्ला

नन्हें गणेश: गणपति की मूर्ति के आकार पर मंजरी शुक्ला की प्रेरणादायक कहानी

नन्हें गणेश: “भगवान गणपति की यह मूर्ति कितनी भव्य और भव्य है” रोहन ने माँ से कहा।

“हाँ, बहुत सुंदर है” उसकी माँ कमला ने फ़र्श पर पोछा लगाते हुए जवाब दिया।

“कम से कम एक नज़र देख तो लो” रोहन बोला।

कमला ने अपना सिर घुमाया और फीकी मुस्कान के साथ मूर्ति की ओर देखा और फिर से अपना काम करने लगी। कमला एक आलीशान बंगले में झाड़ू पोंछे का काम करती थीं। कभी-कभी रोहन भी साथ चला जाता था।

काम खत्म करने के बाद, घर लौटते समय कमला बोली – “हम भी गणेश जी की एक मूर्ति खरीद लेते हैं”।

रोहन ख़ुशी से उछलने लगा और बोला – “हाँ, हम भी लाएंगे”।

नन्हें गणेश: भगवान गणपति की मूर्ति के आकार पर प्रेरणादायक कहानी

बाज़ार में कई दुकानों को खूबसूरती से सजाया गया था और विभिन्न आकारों और रंगों में भगवान गणेश की विभिन्न मूर्तियाँ थीं। रोहन मूर्तियों पर मुग्ध हुआ जा रहा था। एक दुकानदार से काफ़ी देर तक बहस करने के बाद कमला ने एक छोटी मूर्ति पसंद करते हुए उसे रोहन को दिखाया। रोहन को मूर्ति कुछ ख़ास पसंद नहीं आई और उसे थोड़ी निराशा हुई। कमला समझ गई पर सीमित संसाधनों के साथ जो सबसे अच्छा था जो वह वही कर सकती थी। जब वे घर पहुंचे तो कमला ने उनके घर का एक कोना साफ़ किया और लाल कपड़े पर भगवान गणपति की मूर्ति रख दी।

रोहन काफी थक गया था इसलिए वह मूर्ति के सामने बैठ गया और मूर्ति को बड़े ध्यान से निहारने लगा। अचानक उसने महसूस किया कि धुएं की एक दीवार बन गई है और भगवान दीवार के बीच से प्रकट हो रहे थे। तभी गणेश जी उसके ठीक सामने आकर खड़े हो गए।

रोहन ने हकलाते हुए कहा, “आपने चलना भी शुरू कर दिया मैंने तो आपको हमेशा बैठे देखा है”।

“जब मैं तुम्हारे जैसे मासूम बच्चे को उदास पाता हूँ तो कारण पूछने के लिए मुझे चलकर आना पड़ता है”।

कुछ पल रुक कर उन्होंने पूछा – “तुम इतना उदास क्यों महसूस कर रहे हो”?

“माँ ने आपकी छोटी सी मूर्ति खरीदी है”।

“हा…हा….हा” भगवान गणपति जोर से हँसेऔर बोले, “कई लोग हैं जो इससे भी छोटी मूर्तियों को भी खरीदते हैं लेकिन उनके स्नेह और प्रेम को देखकर मैं अभिभूत हो जाता हूँ”।

“लेकिन उस बंगले आपकी बहुत बड़ी मूर्ति है” रोहन ने मासूमियत से कहा।

“लेकिन क्या तुम जानते हो कि मैं उस घर के अंदर खुश नहीं हूं” गणेश जी ने निराशा भरे स्वर में बोला।

“लेकिन क्यों” रोहन ने आश्चर्य से पूछा?

“तुम खुद ही देख लो” गणेश जी ने दीवार की ओर इशारा किया।

रोहन ने देखा कि बंगले में एक कमरे में मूर्ति थी और उसके पास बिजली का दीया जलबुझ रहा था और आरती की CD लगी हुई थी।

“अरे आप तो बिलकुल अकेले हो” रोहन दुखी होते बोला।

“मैं तुम्हारे और तुम्हारे दोस्तों की आरती का आनंद लूंगा जो मेरे सामने, मिट्टी के दीये जलाकर गाएँगे”।

“और हम आपको मोदक भी देंगे” कहते हुए रोहन ने ताली बजाई।

“इसलिए मैं उस बड़े से घर की तुलना में यहाँ अधिक खुश हूँ”।

भगवान गणेश ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।

“और आपने मेरे साथ उस छोटे चूहे पर भी ध्यान दिया होगा”।

“छोटा सा है पर मुझे यह बहुत पसंद है” गणेश जी हँसते हुए बोले।

“यह मेरी गलती थी। मैं बेकार के ख़्यालों में खोया हुआ था” रोहन ने शर्मिंदा होते हुए कहा।

गणेश जी ने हँसते हुए रोहन का हाथ थाम लिया।

“ऐसा मत करो… मत जाओ” कहते हुए रोहन गणेश जी को रोकने लगा।

“कोई सपना देख रहे हो क्या? उठो, सभी दोस्त आ गए हैं। गणेश जी की पूजा करने का समय हो गया है। आरती के लिए तैयार हो जाओ”।

रोहन ने अपने “नन्हें गणेश” की ओर देखा और दौड़कर उन्हें कसकर गले से लगाते हुए ख़ुशी से रो पड़ा।

~ “नन्हें गणेश” short story by “डॉ. मंजरी शुक्ला

Check Also

A Christmas Carol - Charles Dickens

A Christmas Carol: Charles Dickens – A Ghost Story of Christmas

A Christmas Carol: Once upon a time – of all the good days in the …

One comment

  1. भगवन गणेश के बारे में बहुत ही अच्छी कहानी है इसे हमे बहुत प्रेणा मिलती है इस तरह की पोस्ट लिखते रहे
    दिल से धन्यवाद्