नन्हे पेड़ की दिवाली: पेड़ों में दिवाली के उत्साह पर मंजरी शुक्ला की कहानी

नन्हे पेड़ की दिवाली: पेड़ों में दिवाली के उत्साह पर मंजरी शुक्ला की कहानी

नन्हे पेड़ की दिवाली: दिवाली आने वाली थी और सबसे मज़ेदार बात ये थी कि इस साल पेड़ सबसे ज़्यादा खुश थे। छोटे पेड़ बड़े पेड़ों से पूछा करते थे कि दिवाली आने में कितने दिन बचे हैं और बड़े पेड़ मुस्कुराते हुए कहते की दिन भर में पचास बार पूछने से दिवाली जल्दी नहीं आ जाएगी।

सबसे ज़्यादा हैरान था, दूर कोने में खड़ा नन्‍हा पेड़, जिसके आस पास बात करने के कोई नहीं था।

वह इधर देखता फिर उधर देखता और फिर जहाँ तक देख सकता था, वहाँ तक देखता पर उसके आस पास तो क्‍या दूर-दूर तक कोई पेड़ ऐसा नहीं नज़र आता, जहाँ तक उसकी आवाज़ पहुँच पाती और वह उससे बात कर सकता।

वह सोचता कितना अच्छा होता अगर मैं चल पाता या फिर मैं उड़ सकता या कम से कम कम मैं तैर सकता।

नन्हे पेड़ की दिवाली: मंजरी शुक्ला

अगर मैं चल सकता तो दूर खड़े उन पेड़ों के पास पहुँच जाता, जहाँ पर हवा में ख़ुशी से हुए वे ना जाने कितनी सारी का रहते हैं। उनसे बताता कि अकेले होना कितना बड़ा दुःख है। मैं उनसे पूछता कि जब वे सब एक साथ हैं तो मैं ही अकेला क्यों हूँ। अगर मैं उड़ सकता तो मेरी जहाँ मर्ज़ी होती वहाँ जाकर रहता। बड़े-बड़े पेड़ों के बीच में छुप जाता और उन्हें गुदगुदी करता। जब वे हँसते तो मैं खुश होता। अगर मैं तैर पाता तो नदी के उस पार चला जाता और कभी लौट कर वापस नहीं आता।

दिन बीतते जा रहे थे पर नन्हे पेड़ के पास अभी भी कोई नहीं था इसलिए वह सोना ज़्यादा पसंद करता था सोते समय वह खुद को सभी पेड़ों से घिरा हुआ पाता जो उसके साथ इतनी मज़ेदार बातें करते थे कि हँसते-हँसते उसके आँसूं निकल आते और पत्तियों पर गिरकर चमकीले मोती की तरह चमकने लगते।

एक दिन उसने देखा कि कुछ बच्चे अपने हाथों में कुछ झालरें लेकर आर थे। झालरों पर कई रंगों के छोटे छोटे बल्ब लगे हुए थे। वे बच्चे हँस रहे थे, खिलखिला रहे थे और हँसते हर पेड़ों के चारों तरफ़ दौड़ते हुए चक्कर काट रहे थे।

नन्‍हा पेड़ चिल्लाया – मेरे साथ भी खेलो।

पर भला नन्हे पेड़ की बात कौन समझता, कौन सुनता यहाँ तक कि पेड़ भी उसकी बात नहीं सुन सके क्‍योंकि ठंडी हवा सर्र सर करती अठखेलिया कर रही थी आख़िर दिवाली की बात उसे भी तो सब जगह बतानी थी।

नन्हे पेड़ की आँखें भर आईं।

उसने धुंधली आँखों से देखा कि बच्चे पेड़ों पर झालर लगा रहे थे। जिन पेड़ों पर झालरें लपेटी जा रही थीं, उन पेड़ों की ख़ुशी देखते ही बनती थी। सभी पेड़ बच्चों के साथ साथ हँस रहे थे, झूम रहे थे। एक छोटा पेड़ इतराता हुआ कह रहा था कि अब दिवाली की रात को मैं भी जगमगाउंगा।

इस पर बड़े पेड़ ने हँसते हुए कहा – हाँ, तुम्हारी पहली दिवाली है ना!

नन्हे पेड़ ने सोचा, पहली दिवाली तो मेरी भी है!

तभी एक बच्चा बोला- हम सबकी इमारतों के पीछे कितने खूबसूरत पेड़ हैं और इन पर हमारा ध्यान सिर्फ़ दिवाली पर ही जाता है।

अब हम शाम को यहीं पर खेलने आया करेंगे। दूसरा बच्चा पेड़ के तने से लिपटता हुआ बोला।

घुंघराले बालों वाली एक लड़की बोली – आज शाम को हम तुम सबकी झालर जलाएँगे और तुम सब बहुत सुन्दर लगोगे, बहुत सुन्दर!

नन्‍हा पेड़ चिल्लाया – मुझे भी प्यार कर लो।

पर बच्चे तो अपनी ही धुन में मगन थे। पेड़ों की डालियाँ भी एक दूसरे से बात करती हुई झूम रही थीं।

नन्‍हा पेड़ बहुत देर तक सबको बुलाता रहा और और ना जाने क्या सोचकर भरभराककर रो पड़ा।

थोड़ी देर बाद ही बच्चे चले गए और नन्‍हा पेड़ डबडबाई आँखों से बहुत देर तक पेड़ों को देखता रहा और ना जाने कब सो गया।

शाम को जब उसकी आँखें खुली तो उसने देखा कि सभी पेड़ रोशनी से जगमगा रहे हैं।

रंग-बिरंगे झालरों से सजे हुए पेड़-पौधे अपनी कर रोशनी से चारों तरफ़ अपनी आभा बिखेर रहे थे।

नन्‍हा पेड़ उन पेड़ों को भौचक्का होकर देख रहा था। सब पेड़ कितने सुन्दर लग रहे थे, कितने खुश लग रहे थे।

नन्‍हा पेड़ मुस्कुरा दिया।

उसने देखा कि उसके बगल में फटे पुराने कपड़े पहने हुए एक लड़का आकर बैठ गया। उसके कंधे पर एक बड़ा सा मटमैले रंग का झोला लटका हुआ था। लड़के ने चारों तरफ़ देखा और बुदबुदाया – दिवाली कैसे मनाऊं। कोई सामान ही नहीं बिका।

नन्हे पेड़ ने दुखी होते हुए लड़के की तरफ़ देखा और सोचा – त्यौहार में तो सब को खुश होना चाहिए। अगर मैं इसकी कुछ सहायता कर पाता तो मुझे बहुत ख़ुशी होती।

तभी वहाँ अँधेरा छा गया। चारों तरफ़ से लोगो के चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। तभी अँधेरे में कोई छोटा बच्चा गिर गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा।

लड़के ने झोले के अंदर हाथ डाला और टटोलते हुए कुछ सामान निकाला।

नन्‍हा पेड़ दम साधे लड़के की तरफ़ देख रहा था पर लाख चाहने पर भी इतने अँधेरे में उसे कुछ नहीं दिखाई दे रहा था।

वह सोच रहा था कि सब तो रोशनी के लिए इधर उधर भाग रहे हैं और ये लड़का इतने घनघोर अँधेरे में भी कितना निश्चिन्त बैठा हुआ ना जाने कौन सा सामान ढूँढ रहा है।

तभी लड़के ने माचिस की तीली जलाई और एक दीये में तेल डालकर उसकी बाती जला दी। दीये की इठलाती और टिमटिमाती लौ की झिलमिल रौशनी से नन्‍हा पेड़ नहा उठा।

बच्चों के साथ साथ उन के साथ के सभी लोग नन्हे पेड़ की तरफ़ दौड़े।

तब तक उस लड़के ने कई दीये जला लिए थे। उनकी रौशनी में नन्‍हा पेड़ अनोखी आभा से जगमगा रहा था।

तब तक बच्चों के साथ साथ बहुत सारे लोग उस लड़के से दीये खरीदने आ चुके थे। थैले के खाली होने के साथ ही लड़के की मुस्कराहट बढ़ती जा रही थी। बच्चे नन्हे पेड़ के आसपास कूद रहे थे, उसे प्यार कर रहे थे और उसके आसपास और पेड़ लगाने की बात कर रहे थे।

थोड़ी ही देर में सभी पेड़ों के आगे खुशियों के दीपक जगमगाते हुए रौशनी बिखेर रहे थे।

नन्‍हा पेड़ ख़ुशी के मारे झूम रहा था और बहुत प्यार से थके हुए लड़के को देख रहा था जो उस पर सिर टिकाये हुए नींद में भी मुस्कुरा रहा था।

~ ‘नन्हे पेड़ की दिवाली‘ story by ‘Manjari Shukla

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