नए साल का जश्न: 31 दिसंबर का नृत्य नाटिका उत्सव

नए साल का जश्न: अगले पल का मालूम नहीं तो कल की चिंता क्यूँ करना

नए साल का जश्न: खीखी गाँव में आज सुबह से ही फ़िर किसी बात पर लोगों ने हँसना शुरू कर दिया था। बात इतनी सी थी कि बूढ़ी काकी ने बिना चश्में के अपनी बकरी को कुत्ता समझ लिया था और वह उसे हड़काते हुए घास चराने के लिए मैदान की ओर ले जा रही थी। पर मुखिया खिल्लड़ प्रसाद और उनके दोस्त हँसमुख पटेल और दंतोड़ राम, ये अद्भुत नज़ारा देखकर भी काकी को रोक नहीं पा रहे थे, क्योंकि हँसते हसँते उनके पेट में मरोड़ उठ चुकी थी और आँखों से आँसूं बह रहे थे।

नए साल का जश्न: डॉ. मंजरी शुक्ला

वो तो काकी के पीछे-पीछे उनका आठ साल का पोता ऐनक लेकर दौड़ता हुआ आया और बोला – “काकी, इन्हें लगा लो”।

“काहे लगा ले, का हमको दिखत नहीं है..” कहते हुए काकी ने हाथी की पतली पूँछ जैसी अपनी चोटी हवा में लहराई पर झटके से उनका लाल रिबन चोटी से सरककर दूर जा गिरा। ये देखकर काकी जोरो से हँस पड़ी और उन्होंने अपनी ऐनक लगा ली। ऐनक लगाते ही उन्हें जैसे बिजली का झटका लगा।

शेरू को देखकर वो चिल्लाई – “अरे, तो मेरी बकरी कहाँ गई?”

“काकी…तुम उसे दरवाज़े पर घर की पहरेदारी करने के लिए बाँध आई हो” उनका पोता बत्तीसी खिलखिलाता हुआ अपनी बत्तीसी दिखाते हुए बोला।

ये सुनते ही खिलोड़ प्रसाद, हँसमुख पटेल और दंतोड़ राम पीपल के पेड़ के चबूतरे पर ही पेट पकड़ कर बैठ गए और एक दूसरे को धकियाते हुए हँसने लगे।

खीखी गाँव का यही हाल था। बस दिन भर मस्ती-मजाक और हँसी-ठिठोली… लोग आपस में हिल मिल कर बड़े प्रेम से रहते थे और एक दूसरे की भरपूर सहायता भी करते थेI खीखी गाँव के बगल में था पींपीं गाँव .. यहाँ के लोग हर बात में दुःख को ढूँढ कर ही दम लेते थे, जैसे दूध में से मक्खन खोज लिया जाता है। उन्हें वर्तमान से कोई सरोकार नहीं था। वे तो बस आने वाले दिनों की चिंता में ही घुले रहते थे। इस गाँव में आँसूंदीन यहाँ का मुखिया था, जिसकी आँखों में बात-बात पर आँसूं छलक पड़ते थे। उसके दो सहयोगी थे – शिकायती राम और रोतला प्रसाद।

ये सब खुद तो दुखी रहते ही थे, गाँव के बच्चों को भी आने वाले कल की चिंता और परेशानी के बारे में बता-बता कर निराश किये रहते थे।

इन दोनों गाँवों के अगल-बगल होने के बाद भी दोनों गाँव के लोग एक दूसरे से कभी मिल नहीं पाए थे। पर इस साल खीखी गाँव के बच्चों ने मिलकर तय किया कि नया साल वे लोग अपने बगल वाले पींपीं गाँव वालों के साथ मिलकर मनाएँगे।

बच्चों की बात सुनकर बड़े भी ख़ुशी से उछल पड़े और तुरंत ही खिल्लड़ प्रसाद, हँसमुख पटेल और दंतोड़ राम कुछ लोगों और बच्चों के साथ पींपीं गाँव पहुँच गए।

पींपीं गाँव वालों के बड़े बूढ़ों के चेहरे पर तो कोई खुशी नहीं आई पर बच्चे मुस्कुराए और साथ में नया साल मनाने की ज़िद पर अड़ गए।

हँसमुख बोला – “अरे भाई, बिना खाए पिए तो किसी भी कार्यक्रम में कुछ मज़ा ही नहीं आता है। कोई हलवाई हो तो ज़रा उसको भी बुला दो”।

बत्तीसी अपने पूरे बत्तीस दाँत दिखाते हुए बोला – “हाँ, बालूशाही इमरती के बिना क्या नया साल और क्या पुराना साल”।

मुटल्लू हलवाई ने अपना लाल गमछा गले में डालते हुए कहा – हम है यहाँ के “स्पेसल हलवाई“।

तभी पींपीं गाँव का शिकायती राम मुटल्लू से बोला – “तुम्हारे भूलने की बीमारी, हम लोगों की नाक में दम किये हुए है… पिछले साल इमरती में नमक डालकर पूरी मिठाई का सत्यानास कर दिया था”।

ये सुनकर आँसूंदीन की आँखों में आँसूं आ गए और उसने कहा – “फ़िर वहीँ इमरती हमें मठरी की तरह चाय के साथ खानी पड़ी थी”।

ये सुनते ही खीखी गाँव के लोग ठहाका मारकर हँस पड़े और पींपीं गाँव के लोग सड़ा सा मुँह बनाकर ये सोचते रहे कि आख़िर इसमें हँसने जैसा क्या था।

खैर बहुत देर विचार विमर्श के बाद 31 दिसंबर की रात को जश्न मनाने की तैयारी की बात हुई हुई और तय हुआ कि भोजन के बाद नृत्य नाटिका होगी, जो दोनों गाँव अपने-अपने गाँववालों के साथ मिलकर प्रस्तुत करेंगे। खीखी गाँव का खिलखिलाता राम बोला – “हम लोग ज़्यादा तेल मसाले वाला खाना नहीं खाते हैं इसीलिए हमारा खाना थोड़ा कम मिर्च मसाले का बना देना”।

पींपीं गाँव का दुखी राम ये सुनकर सिर पर हाथ रखकर बोला – “पर हम लोग तो बहुत तीखा और मिर्च मसाले वाला खाना खाते हैं”। वह ये बोलते बोलते इतना दुखी हो गया कि उसकी आँखें भर आई।

उसको इतना दुखी देखकर हँसोड़ राम सकपका गया और बोला – “तो कोई बात नहीं …मुटल्लू दोनों तरह का खाना बना देगा”।

मुटल्लू बोला – “इस बार हम सब याद रखेंगे और फ़िर देखना… हमारे हाथ का बना स्वादिष्ट खाना खाकर तुम सब उँगलियाँ चाटते रह जाओगे”।

मुटल्लू की बात सुनकर खीखी गाँव के लोग मुस्कुरा उठे और पींपीं गाँव वालों से विदा लेकर चल पड़े।

31 दिसंबर की रात को खीखी गाँव वालों का उत्साह देखते ही बनता था। चारों तरफ हँसी, मज़ाक, ठहाके… आने वाले साल की खुशनुमा बातें माहौल को मज़ेदार बना रही थी, वहीँ दूसरी और पींपीं गाँव वाले हमेशा की तरह चुपचाप आकर बैठ चुके थे।

थोड़ी देर बाद भोजन का कार्यक्रम शुरू हुआI पर मुटल्लू की भूलने की बीमारी ने एक बार फ़िर अपना कमाल दिखा दिया था। उसने अपने साथियों के साथ मिलकर गलती से तेज़ मिर्च मसाले वाला खाना खीखी गाँव वालों को परोस दिया और कम तेल और बिना मिर्च मसालों का फीका खाना पींपीं गाँव वालो को दे दिया।

आदत नहीं होने के कारण, इतनी तेज मिर्च का खाना खाने के बाद, खीखी गाँव वालों की आँखों से आँसूं निकलने लगे, पर तब भी उन्होंने हँसते मुस्कुराते हुए खाना खा लिया। वहीँ दूसरी ओर पींपीं गाँव वाले हर कौर पर मुँह बनाते हुए, मुटल्लू को सबक सिखाने के मंसूबे बनाते रहे।

दावत के थोड़ी देर बाद पीपी गाँव वालों की नृत्य नाटिका आरंभ हुई। उसमें दुनियाँ भर का दुख समाया हुआ थाI सब बेहद दुखी और ग़मगीन थेI सूत्रधार दुखी था। पात्र दुखी थेI यहाँ तक कि पर्दा खींचने वाला भी बेहद कष्ट में लग रहा था।

सभी पात्र संजीदा अभिनय में मंजे हुए कलाकारों को भी मात दे रहे थे क्योंकि सालों से दुखी रहते हुए उनके चेहरें भी बिलकुल गंभीर हो चुके थे।

हँसोड़राम हँसते हुए बोला – “मुझे तो ऐसा लग रहा है कि ये सब हँसी को कुएँ में फेंक आए है”।

नए साल का जश्न – ये सुनते ही वहाँ ज़ोरदार ठहाका गूँज उठा।

रोतला प्रसाद आश्चर्य से बोला – “तुम सब इतनी दुखद नाटिका देखने के बाद भी हँस रहे हो”?

खिलखिलाता प्रसाद भला कैसे चूकता, वो बोल पड़ा – “हमें तो पेड़ के अंधेरें कोटर में भी डाल दो, तो हम लोग वहाँ भी हँस लेंगे”।

तब तक पता चला कि अब खीखी गाँव के लोगों की नृत्य नाटिका प्रस्तुत होगी, इसलिए सब चुपचाप बैठ गए।

खीखी गाँव वालों ने देशभक्ति से ओतप्रोत, एक नृत्य नाटिका पेश की, जिसे देखकर सभी रोमाँचित हो उठे।

जब गोलाबारी के बीच में भी सैनिक हँसते मुस्कुराते हुए सरहद अपने देश की रक्षा के लिए खड़े हुए होते है, तो सबकी आँखें भीग जाती है और ज़ोरदार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ नाटिका समाप्त होती है।

तभी पींपीं गाँव का एक बच्चा दुखिया कहता है – “हमारे गाँव में तो कोई भी बच्चा ना तो बहादुर बन पाएगा और ना ही फ़ौज में जा सकेगा, क्योंकि हमें तो हर समय सिर्फ़ डरना और घबराना ही सिखाया जाता है”।

दुखिया की बात सुनकर उसका दोस्त भीरु बोला – “सही कह रहे हो। बन्दर आने पर भी हमें ही घर के अंदर भगाया जाता है ना की बन्दर को…”।

सभी बच्चों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

ये सुनकर, वहाँ बैठे सभी बड़े बुज़ुर्गों की आँखें शर्म से झुक गईI उन्हें अचानक महसूस हुआ कि उन्होंने निराशावादी सोच के कारण, अपने साथ-साथ बच्चों की भी अच्छी खासी ख़ुशनुमा ज़िंदगी को हौव्वा बनाकर रख दिया था।

अचानक गाँव का मुखिया आँसूंदीन उठा और ज़िंदगी में पहली बार हँसते हुए बोला – “हम बेकार ही उन बातों की चिंताओं में इतने सालों से घुले जा रहे है जो अभी तक हुई भी नहीं है। पर हमनें यहाँ आकर ज़िंदगी का एक नया पहलू देखा। अब हम भी खीखी गाँव वालों की तरह हँसते मुस्कुराते रहेंगे”।

ये सुनकर मुटल्लू तुरंत भीड़ में से खड़ा होते हुए बोला – “तो फ़िर अब गाँव पहुँचने पर मेरी पिटाई तो नहीं होगी ना…”

ये सुनकर वहाँ ज़ोरदार ठहाका गूँज उठाI पर इस बार इस हँसी में खीखी गाँव के साथ साथ पींपीं गाँव वालों की हँसी भी शामिल थी। फ़िर सबने देर रात तक हँसते बोलते और मस्ती करते हुए नए साल का स्वागत कियाI कुछ समय बाद ही पींपीं गाँव वालों ने अपने गाँव का नया नाम भी रख दिया… हँसमुख गाँव… और अब सच में वहाँ पर सभी लोग हँसते मुस्कुराते ही मिलते है।

~ ‘नए साल का जश्न’ story by ‘डॉ. मंजरी शुक्ला’

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