“जब तुम्हारे सारे दोस्त फ़ीस जमा कर रहे थे तब तुम कहाँ थे?” मिश्रा सर ने अंकुर से गुस्से से पूछा।
“मैं भूल गया था सर” अंकुर ने ज़मीन की ओर ताकते हुए कहा।
“और जब आज फ़ीस भरने की आख़िरी तारीख़ है तो तुम मेरा हिंदी का पीरियड छोड़कर फ़ीस भरने ऑफ़िस जाना चाहते हो” सर की आवाज़ अब कक्षा के बाहर तक जा रही थी।
“चले जाने दीजिये सर, कल से जुर्माना लग जाएगा” अंकुर रुआँसा होते हुए बोला।
“ठीक है जाओ और जल्दी आ जाना। मैं परीक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण मुहावरें समझाऊंगा” सर ने स्वर में थोड़ी नरमी लाते हुए कहा।
अंकुर ने तुरंत कक्षा से बाहर की ओर दौड़ लगा दी और सीधे फ़ीस जमा करने वाले काउंटर पर पहुँच गया।
फ़ीस लेने वाले नायर सर मुस्कुराते हुए बोले – “आज फ़िर आख़िरी तारीख़ में फ़ीस भरने आए हो”।
अंकुर एक ही साँस में बोला – “सर, जल्दी कर दीजिये वरना मिश्रा सर बहुत डांटेंगे”।
नायर सर भी अंकुर की मजबूरी समझते थे इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा। वह जानते थे कि अंकुर के पापा मिस्त्री थे और बहुत मुश्किल से अपना घर चलाते थे।
फ़ीस के पैसे इकठ्ठा करने में भी पूरा महीना लग जाता था पर वह हर मुसीबत को झेलने के बाद भी अंकुर को एक अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे।
नायर सर बोले – “ये तो दो हज़ार का नोट है और मेरे पास खुल्ले पैसे नहीं हैं”।
अंकुर के सामने मिश्रा सर का चेहरा घूम गया।
नई सीख: डॉ. मंजरी शुक्ला
वह माथे का पसीना पोंछते हुए बोला – “आप फ़ीस की रसीद के साथ ही मुझे बाकी पैसे बाद में दे दीजियेगा। मैं इंटरवल में स्टाफ़ रूम में आ जाऊँगा”।
“ठीक है” कहते हुए नायर सर अंकुर के रसीद बनाने लगे।
अंकुर वापस दौड़ता हुआ वापस मिश्रा सर की क्लास में पहुंचा।
इतने दौड़ने भागने के बाद भी मिश्रा सर उसे देखकर गुस्सा हो गए और बोले – “क्लास के बाहर ही खड़े रहो। जब कहा था जल्दी आना तो जल्दी क्यों नहीं आये”।
अंकुर ने गुस्से और दुःख से अपनी मुट्ठियाँ इतनी जोर से भींच ली कि उसके नाख़ून हथेलियों में चुभ गए।
वह आँखें बंद करते हुए कक्षा के बाहर की दीवार पर पीठ टिकाकर खड़ा हो गया।
आँखों से बहते आँसूं उसके गले तक आ रहे थे।
“क्या करुँ, किस-किसको बताऊँ कि घर में पैसों की कितनी दिक्कत है। जब बारिश होती है तो पापा को कहीं काम नहीं मिलता माँ कितनी मुश्किल से घर चलाती है। कितने भी त्यौहार बीत जाए हमारे घर किसी के नए कपड़े नहीं बनते” अंकुर आँखें बंद करे हुए सोचता रहा।
तभी उसे लगा कि उसके बगल में कोई आया है।
उसने आँखें खोली तो मिश्रा सर को अपने बगल में खड़ा पाया।
आँसूं पोंछते हुए वह बोला – “माफ़ कर दीजिये सर”।
पर मिश्रा सर कुछ नहीं बोले। वह बस एकटक उसे देखे जा रहे थे।
अचानक ही उनकी नज़र गणित वाले सर पर पड़ी।
उन्हें अपनी ओर आता देख कर वह अपनी किताबें संभालते हुए चल दिए।
अंकुर के चेहरा देख गणित वाले सर ने बड़े ही प्यार से कहा – “शिक्षक हमेशा विद्यार्थी के भलाई के लिए ही सोचता है इसीलिए कभी प्यार से तो कभी डाँट डपट से काम लेता है। मिश्रा सर बिलकुल नारियल की तरह है वह ऊपर से तो सख़्त दिखाई देते है पर वह सदैव विद्यार्थियों का हित सोचते रहते है। जाओ, मुँह धोकर आ जाओ”।
थके क़दमों से अंकुर मुँह धोने के लिए चला गया और थोड़ी देर बाद आकर कक्षा में बैठ गया।
बहुत देर रोने के कारण उसकी आँखों में इतनी जलन हो रही थी कि इंटरवल में भी वह बिना खाना खाये, अपनी बेंच पर आँखें मूंदकर बैठा रहा।
कब इंटरवल खत्म हो गया उसे पता ही नहीं चला।
तभी इतिहास के सर आ गए और सभी बच्चों ने जल्दी से अपनी किताबें निकाल ली।
सर ने जैसे ही प्राचीन काल की मुद्राओं और सिक्कों के बारे में बताना शुरू किया तो अंकुर को जैसे बिजली का झटका लगा।
उसे तुरंत अपने रुपये याद आ गए जो उसे इंटरवल में जाकर नायर सर से लेने थे।
उसने सर की तरफ़ देखा जो ब्लैक बोर्ड पर मुग़ल काल के सिक्के बनाकर दिखा रहे थे।
वह जानता था कि सर इतने कड़क है कि वह उसे वापस इतिहास में तो भेज सकते है पर नायर सर से पैसे लाने के लिए कभी नहीं जाने देंगे।
कम से कम सौ बार घड़ी देखने के बाद भी अंकुर को लग रहा था कि समय जैसे रूक गया है।
जैसे ही पीरियड खत्म होने की घंटी बजी अंकुर ने तुरंत बस्ता उठाया और इतनी तेज भागा कि एक पल को तो सर भी नहीं समझ पाए कि क्या हुआ।
तभी एक बच्चा रोंदू सा मुँह बनाता हुआ बोला – “सर, मुझे तो आपकी क्लास बहुत पसंद है”।
ये सुनते ही क्लास में हँसी का फव्वारा छूट गया और सर भी ठहाका मारकर हँस दिये।
दौड़ता भागता अंकुर जब अपने पैसे लेने पहुँचा तो ऑफ़िस में बैठे नायर सर को देखकर उसकी जान में जान आई।
वह उनके सामने जाकर खड़ा हो गया।
“क्यों नहीं आये इंटरवल में?” नायर सर ने उसे देखते ही सवाल दागा
“मैं भूल गया था”।
“कोई बात नहीं, पैसे मैंने मिश्रा सर को दे दिए है तुम उनसे ले लेना”।
अंकुर ने आश्चर्य से पूछा – “पर आपने उन्हें क्यों दे दिए पैसे”?
“वह तुम्हारे घर के पास ही रहते हैं ना, मुझे लगा तुम पैसे लेना भूल जाओगे तो घर में डाँट ना पड़े। शाम को उनसे ले लेना”।
“ठीक है सर” कहते हुए अंकुर वहाँ से चल दिया।
घर पहुँचते माँ बोली – “बेटा, गेहूं खरीदने है। पैसे दे दो”।
“माँ, नायर सर ने पैसे मिश्रा सर को दे दिए है। मैं खाना खाकर उनसे पैसे ले आता हूँ”।
“ठीक है। सर को मेरा भी नमस्ते कह देना। बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्ति है” माँ ने खाना परोसते हुए कहा।
अंकुर ने खाना ऐसे खाया मानों खाना निगलने की प्रतियोगिता में बैठा हो। दो चार बार उसे ठसका भी लगा पर वह तो जैसे तैसे कौर निगल रहा था। उसे सिर्फ़ पैसे लाने की जल्दी थी।
खाना खाकर वह सीधे मिश्रा सर के घर गया।
मिश्रा सर उसे देखते ही बोले – “नायर सर ने तुम्हारे लिए एक लिफाफा दिया है”।
सर की बात सुनकर अंकुर तेज क़दमों से उनके पास जाकर खड़ा हो गया और बोला – “उसमें फ़ीस के बाकी बचे हुए पैसे और रसीद है”।
“मैंने तो ये सब देखा नहीं, मैं तो अपना स्कूटर स्टार्ट कर रहा था, तभी नायर सर ने एक लिफाफा मेरे बैग में रख दिया और तुम्हें देने के लिए कहा” कहते हुए मिश्रा सर अपना बैग खोलने लगे।
“ये लो अपना लिफाफा” कहते हुए मिश्रा सर ने पीले रंग का एक लिफाफा अंकुर की ओर बढ़ा दिया।
अंकुर उन्हें नमस्ते कर के जैसे ही मुड़ा, उसे लगा लिफाफा तो बिलकुल खाली है।
उसने लिफाफा रौशनी की तरफ़ किया तो उसके अंदर कुछ भी नहीं था।
“सर, ये तो खाली है” अंकुर हड़बड़ाते हुए बोला।
“खाली है” मिश्रा सर ने आश्चर्य से कहा।
“जी सर, इसमें तो कुछ भी नहीं है” अंकुर ने कांपते हाथों से सर को लिफाफा पकड़ाते हुए कहा।
“कहीं मेरे बैग में ही तो नहीं गिर गए” मिश्रा सर ने बैग के अंदर देखते हुए कहा।
अंकुर बिलकुल जड़ हो गया। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा।
मिश्रा सर ने बैग उलटा करके सोफ़े पर रख दिया। पर ना तो कहीं रसीद थी और ना ही पैसे।
अंकुर भरे गले से बोला – “सर, हमारे घर में खाना भी नहीं बन पायेगा। वो पैसे सब कुछ है मेरे लिए…”
मिश्रा सर ने रुमाल से पसीना पोंछा और दुखी होते हुए बोले -“बेटा, तुम्हारे सामने ही तो पूरा बैग देख लिया, अगर पैसे होते तो इसमें ही होते। नायर सर ने इसी बैग के अंदर ही लिफाफा रखा था”।
अंकुर को अचानक लगा कि वह हर बार मिश्रा सर का पीरियड आधे में छोड़कर चला जाता है और वह उससे इस बात पर हमेशा नाराज़ रहते है। इसलिए उन्होंने ही रसीद और पैसे निकालकर खाली लिफाफा उसे पकड़ा दिया है।
उसने जलती हुई नज़रों से मिश्रा सर की तरफ़ देखा। वह सोफ़े पर दोनों हथेलियों में अपना चेहरा छुपाये बैठे थे।
उसका मन हुआ कि उनके घर की सारी चीजे तोड़ फोड़ दे। घबराहट में उसकी टांगें काँप रही थी और उसकी इतनी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि वह बिना सहारे के खड़ा हो सके।
वह आँसूं रोकता हुआ सर के घर के बाहर निकला और बाहर सड़क के किनारे ही बैठ गया।
ना जाने कितनी देर तक वह घुटनों को मोड़कर उन पर सिर टिकाये बैठा रहा।
तभी किसी ने उसके सिर पर हाथ फेरा। उसने आँसूं भरी नज़रों से देखा तो सामने उसकी माँ खड़ी थी।
वह माँ के पैरों से लिपट गया। माँ ने उसके आँसूं पोंछते हुए कहा – “पैसे खो गए तुझसे”?
अंकुर उन्हें पूरी बात बताना चाहता था पर पता नहीं क्या सोचकर वह चुप रह गया।
माँ बोली – “इतनी तेज धूप में कितने घंटों से बैठा है तू, लू लग जायेगी तुझे। घर जा, मैं पैसों की कुछ व्यवस्था करके आती हूँ”।
अंकुर ने अब जाकर माँ की ओर ध्यान से देखा।
पसीने से लथपथ एक छोटा सा पर्स पकड़े वह धूप में खड़ी हुई थी।
अंकुर दुःख के कारण उनकी ओर देख नहीं सका और उसकी आँखें भर आई।
वह सिर झुकाये घर की तरफ़ चल दिया। वह जानता था कि माँ कपड़े सिलने के लिए सिलाई सेंटर गई है, कम से कम दो किलोमीटर दूर…
पूरी सड़क पर कोई नहीं दिखाई दे रहा था। जहाँ पर सड़क बन रही थी वहाँ का डामर तेज धूप में पिघल रहा था। दो कदम चलने पर ही अंकुर का मुँह सूख गया। उसने पलट कर देखा कि उसकी पतली दुबली माँ बार बार साड़ी के पल्लू से अपना मुँह पोंछती हुई तेज क़दमों से चली जा रही थी।
अंकुर का मन हुआ कि वह सीधे मिश्रा सर के घर जाए और उन्हें बताये कि उनके कारण उसका परिवार कितनी मुसीबत में पड़ गया है।
पर वह ऐसा कुछ नहीं कर सका और घर की ओर चल दिया।
शाम को काम से लौटने के बाद पापा के साथ मिलकर उसने खाना बनाया और माँ का रास्ता देखने लगा।
पापा के बहुत कहने के बाद भी उसका मन माँ के बगैर खाना खाने का नहीं हुआ और वह अपनी किताब उठाकर बैठ गया।
रात आठ बजे के करीब माँ आई। उनका चेहरा उतरा हुआ था और वह बहुत थकी हुई लग रही थी।
अंकुर ने तुरंत उन्हें पानी दिया और बोला -“आप ठीक हो ना माँ”?
“हाँ, बिलकुल ठीक हूँ” कहते हुए उन्होंने पापा को पर्स में पैसे निकालकर दे दिए।
ना माँ ने कुछ कहा और ना ही पापा ने कुछ पूछा। अंकुर को लग रहा था कि अब उसको पापा से बहुत डांट पड़ने वाली है पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
पापा बोले – “मैं अभी थोड़ा राशन लेकर आता हूँ”।
अंकुर ने खाना परोसकर माँ को दिया। माँ का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।
दिन भर की थकी माँ तो खाना खाने ही सो गई पर अंकुर की आँखों में नींद नहीं थी।
उन्हें सोता देख वह दबे पाँव उठा और सीधे मिश्रा सर के घर की ओर चल दिया।
मिश्रा सर का स्कूटर बाहर ही खड़ा था।
अंकुर ने इधर उधर देखा और किसी को ना पाकर एक नुकीला पत्थर लेकर दोनों टायरों की हवा निकाल दी और चुपचाप अपने घर लौट आया।
रात भर उसका दिल धड़कता रहा कि कहीं मिश्रा सर ने देख ना लिया हो पर जब अगले दिन स्कूल में उन्होंने अंकुर से कुछ नहीं कहा तो अंकुर समझ गया कि सर को पता नहीं चला।
पर जब कई बार उसने मिश्रा सर को लँगड़ा कर चलते हुए देखा तो उसे थोड़ा सा दुख लगा।
उसे पता था कि कुछ महीने पहले एक एक्सीडेंट के कारण सर के एक पैर में रॉड डाली गई थी जिसकी वजह से उन्हें चलने में बहुत दिक्कत होती थी।
पर बस स्टॉप स्कूल से दूर था और इसलिए उन्हें वहाँ तक तो पैदल जाना ही पड़ा था।
अंकुर ने सोचा – “अब पता चलेगा कि मेरी माँ धूप में पैदल कैसे गई थी”।
छुट्टी के समय तो एक बच्चे ने सर का बैग टाँग लिया था और उन्हें बस स्टॉप तक छोड़ दिया था पर अंकुर साफ़ साफ़ देख पा रहा था कि सर से एक कदम भी ठीक से चला नहीं जा रहा था।
उस रात को अंकुर फिर से सर के घर गया और उनके स्कूटर में कीलें चुभो दी ताकि स्कूटर पंक्चर हो जाए।
जैसे ही वह घर लौटा, माँ बोली – “मिश्रा सर आये थे”।
अंकुर का दिल जोरो से धड़कने लगा। उसे लगा कि सर उसकी शिकायत करने आये थे।
पर तभी माँ बोली – “कह रहे थे बैग में उनके भी पैसे गिरने के कारण उन्हें पता नहीं कि अंकुर को कितने पैसे देने थे। जब मैंने उन्हें चौदह सौ रुपये बताये तो उन्होंने पैसे दे दिए पर रसीद उनसे खो गई है वह कह रहे थे कि नई बनवा देंगे”।
माँ के बोलने के बाद ही अंकुर ने साँस ली और सोचा – “जब सर का अपना नुकसान हुआ तब पता चला कि दूसरों के पैसे चोरी नहीं करने चाहिए”।
अगले दिन स्कूल में जब उसने मिश्रा सर को लँगड़ा कर चलते हुए देखा तो उसे बहुत दुख हुआ।
उसे लगा कि सर कि साथ उसने बहुत गलत किया है पर उसकी हिम्मत उनके पास जाने की नहीं पड़ी।
आज भी छुट्टी के समय एक बच्चा सर का बैग टाँग कर उन्हें बस स्टॉप तक पहुंचाने जा रहा था। आज सर उस बच्चे के कंधे पर हाथ भी रखे हुए थे।
अंकुर उनसे नज़रे चुराता हुआ साइकिल स्टैंड की तरफ़ बढ़ गया।
अगले दो दिन मिश्रा सर स्कूल नहीं आये। तीसरे दिन मिश्रा सर की कक्षा में गणित वाले सर आये तो अंकुर से रहा नहीं गया और उसने पूछा – “सर, मिश्रा सर की तबीयत तो ठीक है ना, वह दो दिन से स्कूल नहीं आ रहे है”।
सर बोले – “उन्हें दो दिन स्कूटर के बिना बहुत चलना पड़ा था ना इसलिए उनके पैर में बहुत तकलीफ़ हो गई है। डॉक्टर ने बेड रेस्ट कहा है। उन्होंने हममें से भी किसी से नहीं बताया नहीं तो हम ही उनको घर तक छोड़ देते”।
अंकुर का चेहरा उतर गया। उसे नहीं पता था कि उसके कारण सर को इतनी ज़्यादा तकलीफ़ हो जायेगी।
तभी स्कूल का चपरासी आकर बोला – “नायर सर ने अंकुर को इंटरवल में बुलाया है”।
गणित वाले सर बोले – “अंकुर, नायर सर से मिल लेना”।
अंकुर का दिल बैठ गया।
उसने सोचा लगता है मिश्रा सर को सब पता चल गया है और अब वह नायर सर से कहकर मुझे स्कूल से निकाल देंगे। कहीं मेरी टी.सी. देने के लिए ही ना बुलाया हो। यही सब सोचते हुए अंकुर के माथे पर पसीना छलक गया।
इंटरवल होते ही अंकुर स्टाफ रूम पहुँचा और नायर सर को ढूंढने लगा।
तभी नायर सर उसे बाहर से आते हुए दिखाई दिए। अंकुर को देखते ही उन्होंने एक अलमारी से पीले रंग का लिफाफा निकालते हुए कहा – “परसों मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। इतने सारे बच्चे फ़ीस जमा करने के लिए खड़े थे और सब आपस में धक्का मुक्की कर रह थे। उसी में भागते दौड़ते हुए मैंने गलती से मिश्रा सर को खाली लिफाफा दे दिया और ये लिफाफा इतना मोटा है कि मुझे भी पता नहीं चला कि यह खाली है”।
अंकुर के सामने मिश्रा सर का चेहरा घूम गया। वह हकलाते हुए बोला – “सर, आप क्या कह रहे हो”?
“हाँ, बेटा, इस लिफाफे में तुम्हारी रसीद और फीस के बचे बाकी पैसे है। मुझे बहुत दुःख है कि मेरे कारण तुम्हें परेशानी उठानी पड़ी”।
अंकुर की आँखें भर आई। वह बुदबुदाया -“परेशानी मुझे नहीं सर मिश्रा सर को उठानी पड़ी है। अब किस मुँह से उनके सामने जा पाउँगा”।
अंकुर ने लिफाफा जेब में रखा और क्लास की ओर चल दिया।
आख़िरी के तीन पीरियड कैसे बीते अंकुर को पता ही नहीं चला।
छुट्टी की घंटी बजते ही वह भागता हुआ निकला और साइकिल स्टैंड की तरफ़ गया।
कब उसने साइकिल उठाई और कब घर पहुँचा उसे कुछ पता नहीं चला।
उसके दिमाग में सिर्फ़ मिश्रा सर का उदास चेहरा और उनका लंगड़ाते हुए चलना याद आ रहा था।
माँ अंकुर की सूजी हुई आँखों को देखते ही बोली – “रोकर आये हो क्या तुम”?
माँ, कहते हुए अंकुर बुक्का फाड़ कर रो पड़ा।
“क्या हो गया! क्या हो गया”? कहते हुए माँ भी रुआंसी हो गई।
अंकुर ने हिचकियों के बीच में उन्हें सारी बातें सुबकते हुए बता दी।
पूरी बात सुनकर माँ का चेहरा पीला पड़ गया और वह भी रोने लगी।
थोड़ी देर बाद आँसूं पोंछते हुए वह उठ खड़ी हुई और बोली – “चलो, मिश्रा सर के घर चलते है”।
अंकुर ने आँसुओं से भीगा हुआ चेहरा उठाया और माँ की तरफ़ देखते हुए उनका हाथ पकड़ लिया।
मिश्रा सर का घर देखते ही अंकुर का दिल धड़क उठा।
दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने बिस्तर पर मिश्रा सर लेटे हुए थे।
अंकुर और उसकी माँ को देखते ही वह बैठने की कोशिश करने लगे।
“नहीं सर, आप लेटे रहिये” अंकुर उनके पास खड़ा होता हुआ बोला।
मिश्रा सर मुस्कुराते हुए बोले – “तुम अचानक यहाँ”!
“सर, ये मेरी माँ है” अंकुर ने धीरे से कहा।
“सर, जब तक आपका पैर पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता मैं आपके यहाँ का खाना बनाने के साथ साथ घर का सारा काम कर दूँगी और ये अंकुर आपके बाहर के काम कर दिया करेगा”।
“नहीं, नहीं, इसकी कोई जरुरत नहीं है” मिश्रा सर संकोच से बोले।
“नहीं सर, हमें पता है आप अकेले रहते है और सारा काम आप खुद ही करते है” अंकुर अपनी रुलाई रोकते हुए बोला।
सर बोले – “आप लोगो ने मेरे लिए इतना सोचा इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर सिर्फ़ कुछ दिन की ही बात है। मैं आजकल खाना होटल से मंगवा लेता हूँ”।
पर तब तक अंकुर की माँ रसोईघर में जाकर वहाँ की सफ़ाई करने लगी थी।
अंकुर मिश्रा सर के पैर दबाने लगा।
“अरे, ये क्या कर रहे हो” सर अपने पैर पीछे खींचते हुए बोले।
“कर लेने दीजिये सर, अपना ही बच्चा समझिये मुझे” कहते हुए अंकुर की आँखें डबडबा गई।
मिश्रा सर ने अंकुर को देखा और उसे गले से लगा लिया।
इतनी देर का बंधा बाँध बह निकला और अंकुर सर के गले लग कर जोरो से रो पड़ा।
उधर रसोईघर में खड़ी अंकुर की माँ अपने आँसूं पोंछ रही थी।