नेक दिली: बगुलों का एक झुंड साइबेरिया से हजारों किलोमीटर की यात्रा करके भारत के बड़ोपल झील में सर्दियों की छुट्टी मनाने आता है।
चूंकि साइबेरिया में सर्दियों में बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है इसलिए साइबेरियन बगुले – ग्रेट फ्लेमिंगो, वाटर फ्लेमिंगो, राजहंस आदि अपने परिवारों सहित हजारों की संख्या में बड़ोपल झौल में मस्ती व उछल-कूद करने आते हैं और पिकनिक मनाकर वापस चले जाते हैं।
राजहंस बगुलों के सरदार हर्षवर्धन प्रत्येक वर्ष बड़ोपल झील के जिप्सम के नमकीन पानी का भरपूर आनंद लेते। उसमें तैरते उछल-कूद करते। अठखेलियां करते छोटे-छोटे जीव-जंतुओं का शिकार करते।
नेक दिली: नरेश मेहन
उन्हें उसमें बहुत आनंद आता। झील से थोड़ी दूर सड़क के पास एक छोटा लेकिन बहुत हरा-भरा और सुन्दर पेड़ था।
कई पक्षी, उसी पेड़ पर परिवार सहित निवास करते। पेड़ भी उनका इंतजार करता रहता था। शाम होते हो जब सभी पक्षी रात्रि निवास के लिए आते, सब टहनियों के बीच में छिपकर रात गुजारते और प्रेम-मोहब्बत के गीत गाते। फिर सुबह वापस झील में चले जाते।
पेड़ बहुत खुश रहता। उसे बहुत अच्छा लगता लेकिन जैसे ही गर्मियां आरंभ होतीं बगुले पेड़ से फिर वापस मिलने का वायदा करके वापस साइबरेरिया चले जाते। पेड़ फिर मिलने की चाह में 6 महीने गर्मियों के निकाल देता था।
जब अगली बार झील में राजहंस आए तो उन्होंने देखा कि झील में पानी बहुत कम है, तो उन्होंने भरतपुर अध्यारण्य में जाने का फैसला किया और भरतपुर ही रुक गए लेकिन जब वापस जाने का समय आया तो राजहंस हर्षवर्धन को बेटी गौरी फ्लेमिंगो ने जिद की – मुझे उस बरगद के पेड़ से मिलना है जहां मेरा जन्म हुआ है।
पापा एक बार मुझे बड़ोपल झील ले चलो।
राजहंस अपनी बेटी गौरी की इच्छापूर्त करने के लिए पेड़ के पास पहुंच गए तो यह देखकर हैरान रह गए कि वह तो सूख कर बिल्कुल कंकाल जैसा हो गया था। उसकी तो सिर्फ टहनियां ही नजर आ रही थी। उसका तना गंदगी व कचरे से लिपटा पड़ा था। उसकी जड़ें लगभग जमीन से उखड़ चुकी थीं।
राजहंस ने पेड़ से पूछ कि भाई साहब, आपका यह हाल कैसे हुआ।
उदासी में डूबा पेड़ रुआंसा होकर कहने लगा कि यहां करीब ही एक बहुत बड़ा होटल खुल गया है। उसका सारा कचरा मेरे ऊपर डाल देते हैं। दूसरा यहां पर कपास और चावल की फसल होने लगी है। उसका बचा हुआ सारा पैस्टिसाइड भी मेरे पर उंडेल जाते हैं जिससे कोई जानवर इसमें मुंह न मारे।
इस जहर से मैं बीमार हो गया। मुझे कई जगह लकवा हो गया है। मेरा शरीर कांपता है। मेरे पत्ते सूख गए। मैं इतना कमजोर हो गया हूं कि मेरी जड़ें धरती से पानी भी नहीं ले पातीं। मैं लगभग जमीन से उखड़ चुका हूं। मैं अब मरने वाला हूं। बस आप सभी का इंतजार कर रहा था।
राजहंस की बेटी गोरी यह सब सुनकर भावुक हो कर रोने लगी। पापा इसे बचा लो, इतना सुंदर पेड़ इस प्रकार मर रहा है। यह तो मनुष्य प्रकृति के साथ अन्याय कर रहा है। हम इसे अपने देश ले कर चलेंगे। गौरी बोली हम इसे मरे नहीं देंगे पापा।
राजहंस ने सभी पक्षियों को इकट्ठा किया। विशेष तौर पर पक्षियों के राजा चील को बुलाया और उससे सहायता मांगी गई। चील ने कहा हम सब तैयार है। यह पेड़ हम सभी का भी बहुत प्रिय साथी है। हम सभी प्रयास करते हैं।
उसने उपाय बताया कि उनके दल में मौजूद ताकतवर पक्षी मिल कर जड़ सहित सूख कर कंकाल हो चुके पेड़ को उठा कर किसी तरह कुछ दूर हरे-भरे जंगल में ले जाकर लगा दें तो यह बच सकता है।
पेड़ गौरी और उन सबका प्यार देखकर रोने लगा। गौरी ने कहा कि आप घबराओं मत, हम सब पक्षी तुम्हारे साथ हैं। सभी पक्षियों ने इकड्ठे हो कर जोर लगाया और पेड़ को जड़ सहित उठा लिया और जंगल में एक जगह खुदी हुई जमीन पर रख कर उसकी जड़ों पर मिद्टी डाल दी। कुछ ही दिनों बादकह फिर से हरा-भर और विशाल हो गया। अब सभी पक्षी जब भी साइबवेरिया से लौटते तो उसी पेड़ के ऊपर निवास करते। पेड़ बगुलों की नेक दिली से खुश है, पक्षी भी खुश है और सबसे अधिक खुश है गौरी फ्लेमिगो।