निबलू की होली: निबलू बहुत देर से बैठा-बैठा शेरू के कान उमेंठ रहा था।
बेचारा शेरू रह-रह कर दर्द के मारे कूँ-कूँ करके भागने की कोशिश कर रहा था पर चेन छोटी होने के कारण वह भाग भी नहीं पा रहा था।
तभी मम्मी कमरे से बाहर निकल कर आई और बोली – “मैं होली के लिए मिठाई और गुलाल खरीदने जा रही हूँ, तुम्हें चलना है क्या”?
पर भला निबलू को उनकी बात कहाँ सुनाई दे रही थी। वह तो शेरू के कानों को खींचने में तल्लीन था। कान दुखने के कारण शेरू कराह रहा था।
मम्मी को देखते ही शेरू जोर से चिल्लाने लगा।
निबलू की होली: डॉ. मंजरी शुक्ला शिक्षाप्रद बाल कहानी
मम्मी ने देखा कि निबलू उसे कानों से खींचकर उठाने की कोशिश कर रहा था। निबलू की शैतानी देखकर उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
उन्होंने कसकर निबलू का हाथ पकड़ा और बोली – “अगर तुम्हें कोई चेन से बाँधकर इस तरह से सताए तो कैसा लगेगा”?
“मैं तो इसके साथ खेल रहा था। इसकी तो आदत है चिल्लाने की…” निबलू खिसियाते हुए बोला।
शेरू घबराता हुआ अपनी पूँछ सिकोड़ कर मम्मी के पैरों को चाटने लगा।
मम्मी ने प्यार से उसके ऊपर हाथ फेरा और कहा – “अब अगर तुम्हें निबलू ने परेशान किया तो मैं इसे होली नहीं खेलने दूँगी और कमरे में बंद कर दूँगी”।
निबलू ने तुरंत मम्मी की ओर देखा पर मम्मी तो शेरू को गोदी में बैठाकर हमेशा की तरह कोई कहानी सुनना शुरू कर चुकी थी।
“हे भगवान – अब कुत्ता भी कहानी सुनने लगा है” सोचते हुए निबलू ने गुस्से से शेरू की तरफ़ देखा।
“मुझे दूध दे दीजिये। सामने वाले पार्क में अपने दोस्तों के साथ होली का प्रोग्राम बनाने जाना है”।
“जाओ, खुद जाकर ले लो” मम्मी ने शेरू को पुचकारते हुए कहा।
निबलू ने शेरू को गुस्से से घूरा देखा जो बड़े मज़े से मम्मी की गोद में आराम से ऐसे बैठा हुआ था मानों पूरी कहानी याद करके मोहल्ले भर के कुत्तों को सुनाएगा।
निबलू ने किचन में जाकर दूध लिया और सोचने लगा – “इस शेरू के कारण ही मम्मी मुझे हर समय डाँटा करती हैं। इसे तो मैं ऐसा सबक सिखाऊंगा कि ये जीवन भर याद रखेगा”।
उधर जब मम्मी शेरू को दूध रोटी देने के लिए उठी तो निबलू को लगा कि वह अब रो ही देगा इसलिए तुरंत घर से बाहर चला गया।
पार्क में पहुँचते ही सभी दोस्तों ने उसे घेर लिया और होली मनाने के बारे में बात करने लगे।
पर निबलू के दिमाग में तो कुछ और ही खुराफ़ात चल रही थी आख़िर उसका दिमाग शैतानी का कारखाना जो था।
इसलिए निबलू तुरंत बोला – “जैसे पिछले साल हमनें होली खेलने के बाद सारे दिन नाच गाना किया था वैसे ही कुछ इस साल भी किया जाए”।
“पर मम्मी कह रही थी कि कोरोना के कारण हमें आपस में थोड़ी दूरी बनाकर रखनी चाहिए” रिंकी बोली।
“हाँ, पापा भी कह रहे थे कि जब तक वैक्सीन नहीं लग जाती हमें बहुत सावधानी रखनी होगी” अमित ने कहा।
“कोई बात नहीं, हम लोग दूर दूर नाच लेंगे” निबलू ठुमका लगाता हुआ बोला तो सभी बच्चे खिलखिलाकर हँस दिए।
“और हम सब सिर्फ़ गुलाल ही लेंगे क्योंकि पिछली बार निबलू ने पता नहीं कौन सा लाल रंग डाल दिया था कि महीने भर तक मेरी खुजली ही बंद नहीं हुई” वसंत ने नाराज़ होते हुए कहा।
“हाँ, याद है तू सारे समय बंदरों की तरह कभी सिर तो कभी पैर खुजलाता रहता था” निबलू ने जवाब दिया और ठहाका मारकर हँस दिया।
हँसते हुए उसने सबकी ओर देखा कि सब मिलकर वसंत की बन्दर वाली एक्टिंग उतारेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सब मिलकर उसे घूर रहे थे।
निबलू की होली: शिक्षाप्रद हिंदी बाल कहानी – Story continues…
मिनी ने निबलू से कहा – “हम तुम्हें अपना दोस्त समझते हैं इसलिए हर बार तुम्हें माफ़ कर देते है वरना पापा ने तो तुमसे बात करने को भी मना कर रखा है”।
निबलू को तुरंत याद आ गया कि उसने पिछले साल मिनी के पापा की पीठ पर पानी के चार-पाँच गुब्बारे इतनी जोर से मारे थे कि वह दर्द से तड़प उठे थे। अब भला उसे क्या पता था कि अंकल को निमोनिया था और उसके ठन्डे पानी के गुब्बारों से उनकी तबीयत इतनी ज़्यादा खराब हो जायेगी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा।
“ओफ़्फ़ो, एक के बाद एक करके सबकी याददाश्त बहुत तेजी से वापस आ रही है” निबलू ने सोचा और बात बदलते हुए बोला।
“तुम लोग जैसा कहोगे बिलकुल वैसा ही होगा”।
“ठीक है, फिर हम सब लोग कल गुलाल और गुझिया के साथ यहीं पर मिलेंगे” निर्मल ने खुश होते हुए कहा।
“हाँ, हम सब ठीक नौ बजे इसी पार्क में आ जाएँगे” कहते हुए शिशिर मुस्कुरा दिया।
पर निबलू के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था।
वह लगभग दौड़ता हुआ घर पहुँचा और मम्मी से बोला – “कल मेरे सभी दोस्त सिर्फ़ गुलाल से होली खेलेंगे इसलिए क्या मैं शेरू को भी अपने साथ ले जाऊं”।
“नहीं, नहीं, शेरू पानी से बहुत डरता है अगर किसी ने डाल दिया तो…”
“हम सब सामने वाले पार्क में ही रहेंगे। मैं अगर किसी के पास पानी देखूंगा तो शेरू को तुरंत घर ले आऊंगा”।
मम्मी हँसते हुए बोली – “तुम शेरू को इतना प्यार करते हो कि उसके बिना होली भी नहीं खेलना चाहते। ठीक है, ले जाना”।
अगले ही दिन सुबह निबलू ने गुलाल के पैकेट लिए और फ्रीज़र का ठंडा पानी एक बोतल में भर लिया।
जब वह शेरू के पास गया तो शेरू उसे देखकर ख़ुशी से पूँछ हिलाने लगा।
निबलू ने उसे अपनी गोदी में उठाया और पार्क की तरफ़ दौड़ लगा दी।
पर पार्क में पहुँचकर वह सन्न रह गया। वहाँ तो कोई भी नहीं था। अब जाकर उसे ध्यान आया कि शेरू को बर्फ़ के पानी से नहलाने की ख़ुशी में वह आठ ही बजे पार्क पहुँच गया।
जैसे ही वह घर जाने को हुआ तो कुछ लड़को ने उसे आवाज़ दी।
उसने पीछे मुड़कर देखा तो झाड़ियों के पास कुछ लड़के बैठे हुए थे।
वे सभी लड़के बहुत लम्बे और तगड़े थे। उसने ध्यान से उन्हें देखा पर उसकी पहचान का उनमें से कोई भी नहीं था।
वे सभी ऊपर से नीचे तक इतने सारे रंगों में रंगे हुए थे कि सिर्फ़ उनकी आँखें ही चमक रही थी।
वे सभी उसके पास आ कर खड़े हो गए। निबलू डर के मारे काँप उठा।
“बिना रंग लगाए तो तुझे नहीं जाने देंगे” कहते हुए एक लड़के ने निबलू के हाथ से शेरू को छीन लिया और दूसरे ने अपनी जेब से रंग की पुड़िया निकाल ली।
“अरे वाह, इसके पास तो पानी भी है। देना तो जरा सा मेरी हथेली में…” एक घुंघराले बाल वाले लड़के ने कहा।
“जरा सा क्यों, इसकी बोतल में ही रंग डाल दो तो अच्छे से रंग लगेगा” पेड़ के पास खड़ा लड़का चिल्लाया।
उधर शेरू कूँ-कूँ करके खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर एक महीना का पिल्ला भला इतने लम्बे चौड़े लड़के की गिरफ़्त से कैसे छूटता।
तभी घुंघराले बाल वाले लड़के ने बोतल का सारा पानी निबलू के ऊपर डाल दिया।
बर्फ़ का पानी पड़ते ही निबलू को ऐसा लगा जैसे उसका सिर सुन्न हो गया हो। रोते हुए उसने भागने की कोशिश की तो उस लड़के ने निबलू का कान पकड़कर उमेठ दिया।
निबलू जोर जोर से रोने लगा। तभी पेड़ के पास वाला लड़का चिल्लाया – “कुछ लोग इधर ही आ रहे है, जल्दी भागो, वरना पिटाई हो जायेगी”।
इतना सुनते ही सभी लड़के निबलू का मज़ाक उड़ाते हुए पार्क के बाहर भाग गए।
ठंड से काँपता हुआ निबलू हिचकियाँ ले लेकर रोने लगा।
शेरू बार बार निबलू के पैर चाट रहा था और उसके चारों तरफ़ घूम रहा था।
निबलू ने शेरू की तरफ़ देखा और उसे गोदी में उठाकर भींच लिया।
शेरू ख़ुशी के मारे पूँछ हिलाने लगा।
निबलू बार बार शेरू को पुचकारते हुए बुदबुदा रहा था – “मुझे माफ़ कर दे शेरू”।
और फ़िर निबलू ने शेरू और अपने दोस्तों के साथ खूब होली खेली। पर निबलू ने शेरू के माथे पर सिर्फ़ गुलाल का, ही सुंदर सा गुलाबी टीका लगाया था आख़िर शेरू अब उसका सबसे अच्छा दोस्त जो बन चुका था।