पढ़े लिखे मूर्ख: पंचतंत्र की कहानी

पढ़े लिखे मूर्ख: पंचतंत्र की कहानी

किसी नगर में चार लड़के रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चल कर पढ़ाई की जाए। एक दिन के पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गए। वहां जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे। बारह वर्ष तक जी लगा कर पढ़ने के बाद वे सभी अच्छे विद्वान हो गए।

अब उन्होंने सोचा कि हमें जितना पढ़ना था पढ़ लिया, अब अपने नगर लौटना चाहिए। गुरु से आज्ञा लेकर वे अपने नगर की ओर रवाना हुए।

रास्ते में उन्हें एक गधा दिखा। एकांत में रहकर पढ़ने के कारण उन्होंने इससे पहले कोई जानवर भी नहीं देखा था। एक ने पूछा, “भई यह कौनसा जीव है?”

पढ़े लिखे मूर्ख: पंचतंत्र की कहानी

अब दूसरे लड़के की पोथी देखने की बारी थी। पोथी में इसका भी समाधान था। उसमें लिखा था: “जो सुख में दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रुओं का सामना करने में, न्यायालय में और श्मशान में साथ दे, वही बंधु है।” उसने यह पढ़ा और कहा, “यह हमारा बंधु है।”

अब चारों में से कोई तो उसे गले लगाने लगा कोई उसके पांव पखारने लगा। अभी वे यह सब कर ही रहे थे कि उनकी नजर एक ऊंट पर पड़ी। उनके अचरज का ठिकाना न रहा। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि इतनी तेजी से चलने वाला यह जानवर है क्या बला।

इस बार पोथी तीसरे को उलटनी पड़ी और पोधी में लिखा था, “धर्म की गति तेज होती है“। अब उन्हें यह तय करने में क्या रुकावट हो सकती थी कि धर्म इसी को कहते हैं पर अभी चौथे को सूझ गया एक रटा हुआ वाक्य, “प्रिय को धर्म से जोड़ना चाहिए“।

अब क्या था। उन चारों ने मिल कर उस गधे को ऊंट के गले से बांध दिया।

यह बात किसी ने जाकर उस गधे के मालिक धोबी से कह दी। धोबी हाथ में डंडा लिए दौड़ता हुआ आया। उसे देखते ही वे वहां से चंपत हो गए। वे भागते हुए कुछ ही दूर गए होंगे कि रास्ते में नदी पड़ गई। सवाल था कि नदी को पार कैसे किया जाए। अभी वे सोच-विचार कर ही रहे थे कि नदी में बह कर आता हुआ पलाश का एक पत्ता दिख गया। सहयोग से पत्ते को देखकर पत्ते के बारे में जो कुछ पढ़ा हुआ था, वह एक को याद आ गया: आने वाला पत्र ही पार उतारेगा”।

अब किताब की बात गलत तो हो नहीं सकती थी। एक ने आव देखा न ताव, कूद कर उसी पर सवार हो गया। तैरना उसे आता नहीं था। वह डूबने लगा तो एक ने उसको चोटी से पकड़ लिया। उसे चोटी से उठाना कठिन लग रहा था। यह भी अनुमान हो गया था कि अब इसे बचाया नहीं जा सकता। ठीक उसी समय एक अन्य को किताब में पढ़ी एक बात याद हो गई कि यदि सब कुछ हाथ से जा रहा हो तो समझदार लोग कुछ गंवा कर भी बाकी को बचा लेते हैं। सब कुछ चला गया तब तो अनर्थ हो जाएगा।

यह सोच कर उसने उस डूबते हुए साथी का सिर काट लिया।

अब वे तीन रह गए। जैसे-तैसे बेचारे एक गांव में पहुंचे। गांव वालों को पता चला कि ये पढ़े-लिखे हैं तो तीनों को तीन गृहस्थों ने भोजन के लिए न्योता दिया। एक जिस घर में गया उसने उसे खाने के लिए सेवई दी गई। उसके लम्बे लच्छों को देख कर उसे याद आ गया कि दीर्घसूत्री नष्ट हो जाता है । मतलब तो था कि दीर्घसूत्री या आलसी आदमी नष्ट हो जाता है पर उसने इसका सीधा अर्थ लम्बे लच्छे वाला किया और सेवई के लच्छों पर लगा कर सोच लिया कि यदि उसने इसे खा लिया तो वह स्वयं नष्ट हो जाएगा। वह खाना छोड़ कर चला गया।

दूसरा जिस घर में गया था, वहां उसे रोटी खाने कोदी गई। पोथी फिर आड़े आ गईं। उसे याद आया कि अधिक फैली हुईं चीज की उम्र कम होती है। वह रोटी खा लेता तो उसकी उम्र घट जाने का खतरा था। वह भी भूखा ही उठ गया।

तीसरे को बड़ा खाने को दिया गया। उसमें बीच में छेद तो होता ही है। उसका ज्ञान भी कूद कर उसके और बड़े के बीच में आ गया। उसे याद आया, छिद्र से बहुत से अनर्थ घटित होते हैं । छेद के नाम पर उसे बड़ों का ही छेद दिखाई दे रहा था।

छेद का अर्थ भेद का मिलना भी होता है यह उसे मालूम ही नहीं था। वह बड़े खा लेता तो उसके साथ ही अनर्थ हो जाता। बेचारा वह भी भूखा रह गया। लोग उनके अज्ञान पर हंस रहे थे पर उन्हें लग रहा था कि वे उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। अब वे तीनों भूखे प्यासे ही अपने नगर की ओर रवाना हुए।

सम्पूर्ण पंचतंत्र: पं. विष्णु शर्मा

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा है। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है: मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव), मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ), काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा), लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना), अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में कदम न उठायें)। पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है।

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