लाइफबोट: पेरेंट्स डे विशेष हिंदी कहानी

लाइफबोट: पेरेंट्स डे विशेष हिंदी कहानी

लाइफबोट: एक स्कूल में टीचर ने अपने छात्रो को एक कहानी सुनाई और बोली एक समय की बात है की एक समय एक छोटा जहाज दुर्घटना ग्रस्त हो गया। उस पर पति पत्नी का एक जोड़ा सफ़र कर रहा था। उन्होने देखा की जहाज पर एक लाइफबोट है जिसमे एक ही व्यक्ति बैठ सकता है, जिसे देखते ही वो आदमी अपनी पत्नी को धक्का देते हुए खुद कूद कर उस लाइफबोट पर बैठ गया। उसकी पत्नी जोर से चिल्ला कर कुछ बोली?…

लाइफबोट: हिंदी कहानी

टीचर ने बच्चो से पूछा की तुम अनुमान लगाओ वो चिल्लाकर क्या बोली होगी? बहुत से बच्चो ने लगभग एक साथ बोला की वो बोली होगी की “तुम बेवफा हो”, “मैं अंधी थी जो तुमसे प्यार किया”, “मैं तुमसे नफरत करती हूँ”।

तभी टीचर ने देखा की एक बच्चा चुप बैठा है और कुछ नहीं बोल रहा… उसने उसे बुलाया और कहा बताओ उस महिला ने क्या कहा होगा… तो वो बच्चा बोलो मुझे लगता है की उस महिला ने चिल्लाकर कहा होगा की “अपने बच्चे का ख्याल रखना”। टीचर को आश्चर्य हुआ और बोली क्या तुमने ये कहानी पहले सुनी है, उस बच्चे ने कहा – नहीं लेकिन… मेरी माँ ने मरने से पहले मेरे पिता को यही कहा था…”

तुम्हारा जवाब बिलकुल सही है। फिर वो जहाज डूब गया, और वो आदमी अपने घर गया और अकेले ही अपनी मासूम बेटी का पालन पोषण कर उसे बड़ा किया।

बहुत वर्षो के बाद उस आदमी की मृत्यु हो जाती है तो वो लड़की को घर के सामान मे अपने पिता की एक डायरी मिलती है जिसमे उसके पिता ने लिखा था की जब वो जहाज पर जाने वाले थे तब ही उन्हें ये पता लग गया था की उसकी पत्नी एक गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसके बचने की उम्मीद नहीं है, फिर भी उसको इलाज करवाने व बचाने के लिए उसे लेकर जहाज से कही जा रहे थे इस उम्मीद मे की कोई इलाज हो सके, लेकिन दुर्भाग्य से दुर्घटना हो गयी, वो भी उसके साथ समुद्र की गहराइयों मे डूब जाना चाहता था, लेकिन सिर्फ अपनी बेटी के लिए दुखी ह्रदय से अपनी पत्नी को समुद्र में डूब जाने को अकेला छोड़ दिया।

कहानी ख़त्म हो गयी पूरी क्लास मौन थी। टीचर समझ चुकी थी छात्रों को कहानी का उपदेश समझ आ चूका था… संसार मे अच्छाई और बुराई दोनों है, लेकिन उनके पीछे दोनों मे बहुत जटिलताएं भी है, जो परिस्थितियों पर निर्भर होती है और उन्हें समझना कठिन होता है। इसीलिए हमें जो सामने दिख रहा है उसपर सतही तौर से देख कर अपनी राय नहीं बनाना चाहिए, जब तक हम पूरी बात समझ ना लें.

अगर कोई किसी की मदद करता है तो उसका मतलब यह नहीं की वो एहसान कर रहा है, बल्कि ये है की वो दोस्ती का मतलब समझता है।*

अगर कोई किसी से झगडा हो जाने के बाद माफ़ी मांग लेता है तो मतलब यह नहीं की वो डर गया या वो गलत था, लेकिन यह है की वो मानवता के मूल्यों को समझता है।

*कोई अपने कार्यस्थल पर पूरा काम निष्ठा से करता है तो मतलब यह नहीं की वो डरता है, बल्कि वो श्रम का महत्त्व समझता है और देश के विकास मे अपना योगदान करता है। अगर कोई किसी की मदद करने को तत्पर है तो उसका मतलब ये नहीं की वो फ़ालतू है या आपसे कुछ चाहता है, बल्कि ये है की वो अपना एक दोस्त खोना नहीं चाहता।

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