अनंतमूर्ति ने ‘नहीं’ कहा और यह भी बताया कि उसकी फीस माता-पिता भरते थे, जो कपड़ो की धुलाई का कार्य करते हैं। निदेशक ने उससे अपने हाथ दिखाने के लिए कहा। अनंतमूर्ति के हाथ बहुत मुलायम थे। निदेशक ने उससे पूछा, “तुमने कभी माता-पिता की उनके कार्यों में मदद की?”
अनंतमूर्ति ने फिर ‘नहीं’ कहा क्योंकि उसके माता-पिता यही चाहते थे कि यह केवल पढ़ाई पर ध्यान दे।
निदेशक ने उससे कहा, “आज जब तुम घर जाओ तो अपने माता के हाथ साफ करो और कल मुझसे फिर मिलो।”
अनंतमूर्ति जब अपने घर पहुंचा तो उसने माता-पिता से कहा कि वह उनके हाथ धोना चाहता है। जब वह उनके हाथ साफ करने लगा तो उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसके माता-पिता के हाथ कठोर काम करने से रूखे और जख्मी हो गए हैं। उसकी आखों से आंसू बहने लगे। उसे महसूस हुआ कि उसे महसूस हुआ कि उसे पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने के लिए उसके माता-पिता इस उम्र तक कितनी कड़ी मेहनत करते रहे हैं।
अगले दिन निदेशक ने अनंतमूर्ति से उसका अनुभव पूछा। उसने कहा, “मैंने उनके हाथ धोए और धुलाई का बचा हुआ काम भी निपटाया। अब मैं जान गया हूं कि उनकी करुणा का मूल्य क्या है। यदि वे यह सब न करते तो मैं आज आपके सामने नहीं बैठा होता।”