राजा की परीक्षा: तानाशाह शेर या लोकतंत्र प्रणाली से जंगल में चुनाव

राजा की परीक्षा: तानाशाह शेर या लोकतंत्र प्रणाली से जंगल में चुनाव

राजा की परीक्षा: सुंदरवन में राजा शेर सिंह का राज था। आज राजा के दरबार में एक बैठक आयोजित हुई। “महाराज की जय हो… महाराज आपकी आज्ञा हो तो बैठक की कार्रवाई शुरू की जाए?” महामंत्री छोटू खरगोश ने कहा।

“आज्ञा है…” राजा शेर सिंह ने कहा।

राजा की परीक्षा: गोविन्द भारद्वाज

छोटू खरगोश अपनी जगह पर खड़े होकर बोला, “महाराज अपनी सरकार का कार्यकाल अगले महीने पूरा हो रहा है, इसलिए अगले मंत्रिमंडल पर विचार किए जाने के लिए यह बैठक आपके आदेश पर बुलाई गई है… ।”

“हां… तो सर्वसम्मति से मंत्रिमंडल का गठन कर लो… अपने सारे मंत्री तो उपस्थिति हैं इस बैठक में” शेर सिंह ने कहा।

छोटू खरगोश ने कहा, “इस समय हमारे साथ रक्षामंत्री गजराज जी हैं, गृहमंत्री गोरिल्ला जी है और साथ में शिक्षा मंत्री हिरण कुमार जी हैं लेकिन…” छोटू बोलता-बोलता चुप हो गया।

“लेकिन क्या महामंत्री जी?” शेर सिंह ने पूछा।

“महाराज मंत्रिमंडल के कुछ महत्वपूर्ण सदस्य उपस्थित हीं हुए हैं। असल में सुंदरवन के कुछ नेता चुनाव करवाना चाहते हैं… इसलिए गैंडा जी, चीता जी, पंछियों के राजा मोर जी और लोमड़ी आदि ने इस बैठक का बहिष्कार किया है।”

गोरिल्ला ने कहा, “महाराज छोटू भाई ठीक कह रहे हैं… उनको बुलाकर बैठक में कोई निर्णय लिया जाए या फिर आम चुनाव की घोषणा कर दी जाए।”

“महाराज मैंने तो सुना है भेड़िया राजा का चुनाव लड़ना चाहता है” हिरण कुमार ने कहा।

“इसका मतलब यह कि सुंदरवन के निवासियों को अपने राजा पर भरोसा नहीं रहा” शेर सिंह ने चिता जताते हुए कहा।

“महाराज भरोसे की बात नहीं है… दरअसल, अपने यहां कई राजनीतिक दल बन चुके हैं, वे अंदर ही अंदर लोकतंत्र प्रणाली
से चुनाव करवाना चाहते हैं। उनका मानना है कि हर बार शेर सिंह ही राजा क्यों बनें” छोटू ने कहा।

इस पर शेर सिंह मुस्कुराते हुए बोले, “आज मैं बहुत खुश हूं।”

यह सुनकर वहां मौजूद सभी हैरानी में पड़ गए। उन्होंने तो सोचा था कि शेर सिंह को इस बात पर गुस्सा आएगा।

“किस बात की खुशी महाराज” हिरण कुमार ने पूछा।

“यही कि मेरी प्रजा में सब पढ़-लिख कर सुंदरवन की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे हैं। वैसे भी मैं बूढ़ा हो चुका हूं… और मैं नहीं चाहता कि आज के युग में राजनीति में परिवारवाद आए, इसलिए मैं अपने पुत्र को राजनीति से दूर रखकर लोकतंत्र प्रणाली से चुनाव करवाने पर अपनी सहमति देता हूं” राजा शेर सिंह ने कहा।

इतनी आसानी से राजा शेर सिंह अपनी सहमति आम चुनाव करवाने की दे देंगे, यह देख उन सब को बड़ा आश्चर्य हुआ। “महाराज की जय हो, महाराज की जय हो” बैठक में सभी नारे लगाने लगे।

यह खबर सुंदरवन में आग की तरह फैल गई। भालू, चीता, बाघ, लोमड़ी, गीदड़ और लकड़बग्घा सब खुशी से झूम उठे। सारे सुंदरवन में उत्सव का वातावरण हो गया। राजा शेर सिंह की इस बड़ी सोच के सभी कायल हो गए।

दूसरे दिन एक बड़ा शिष्टमंडल राजा शेर सिंह से आकर राजभवन में मिला। राजा ने उनका भव्य स्वागत किया और उनके नाश्ते-पानी की बढ़िया व्यवस्था की।

इस आदर-सत्कार को देखकर राजा शेर सिंह के बारे में सभी की गलतफहमियां दूर हो चुकी थीं। कालू भालू ने सभी के साथ राय मशविरा किया। शिष्टमंडल के मुखिया चीतू चीते ने कहा, “महाराज की जय हो… आपका विशाल हृदय देख हम सब आपके आभारी हैं।
दरअसल, आज हम आपसे मिलने नहीं, बल्कि सर्वसम्मति से फिर से आपको राजा चुनने के लिए आए हैं।”

यह सुन गजराज ने सूंड उठाकर कहा, “मैं चीतू के प्रस्ताव का समर्थन करता हूं।”

शेर सिंह ने कहा, “भाइयो, मुझे संन्यास लेने क्यों नहीं देते… “!

“महाराज आपकी अभी उम्र राज करने की है… आपका अनुभव ही हमारे सुंदरवन के लिए उपयोगी रहेगा” लोमड़ी ने कहा।

“फिर आप सबने राजनीतिक पार्टियां क्यों बनाई”! शेर सिंह ने पूछा।

“महाराज किसी ने कोई पार्टी नहीं बनाई, हम सब तो आपकी परीक्षा ले रहे थे। अब पता चला कि आप निस्वार्थ हैं और तानाशाह नहीं हैं। आप हमारी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए” गोरिल्ला ने कहा।

सारा राजभवन शेर सिंह की जय हो, शेर सिंह की जय हो, के नारों से गूंज उठा।

~ ‘राजा की परीक्षा’ story by ‘गोविन्द भारद्वाज’, अजमेर

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