राखी का त्यौहार और चश्में वाली पतंग: अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिये हर बहन रक्षा बंधन के दिन का इंतजार करती है। वैसे ही भाई भी बहन की राखी का बेसब्री से इंतज़ार करता है। यह त्यौहार बहन-भाई के प्यार का पर्याय बन चुका है, कहा जा सकता है कि यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है।
राखी का त्यौहार और चश्में वाली पतंग: मंजरी शुक्ला
“कितनी दूर तक जाती है ये पतंग?” आठ साल का भोला आसमान की ओर देखते हुए, अपनी आँखें चुंधियाते हुए बोला?
“बहुत दूर… इतनी दूर कि अपने गाँव के साथ साथ अगल बगल के गाँव वाले भी देख लेते होंगे” उसका दोस्त गोलू बोला।
“तो फ़िर क्या मेरी दीदी भी देख लेगी?” भोला ने पतंग से नज़रे हटाकर गोलू पर गड़ा दी।
अचानक पूछे गए सवाल से गोलू हड़बड़ा गया और बोला – “हाँ… हाँ… क्यों नहीं, जब पूरा गाँव देख लेता है तो तेरी दीदी भी देख लेगी”।
“पता है पूरे दो साल हो गए है, उनकी शादी को, तबसे एक बार भी राखी पर नहीं आ पाई” भोला रुंधे गले से बोला।
“तो तू क्यों नहीं चला जाता है?” गोलू ने फ़िर से पतंग को देखते हुए कहा जो अब एक लाल पतंग के बगल में उड़ रही थी।
“बाबूजी को इस समय खेत में बहुत काम रहता है और फ़िर मैं तो इतना छोटा हूँ, अकेले जा नहीं सकता” भोला ने दुखी होते हुए जवाब दिया।
“तो फ़िर, तू क्या पतंग पर चढ़कर जाएगा?” गोलू ने हँसते हुए कहा।
“नहीं, मैं पतंग पर दीदी को लिखकर भेज दूँगा कि इस साल वह राखी पर ज़रूर आ जाए वरना मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगा”।
“हाँ… ये सही है, पर पहले एक अच्छी सी पतंग खरीद कर लानी पड़ेगी” गोलू तुरतं बोला।
“नीला रंग दीदी को बहुत पसंद है। उसी रंग की पतंग लाते है” भोला अपने पैरों की मिट्टी झाड़ते हुए उठ खड़ा हुआ।
राखी और चश्में वाली पतंग दीदी का राखी पर इंतज़ार करते हुए भोला को दो साल हो जाते है और इस साल वह पतंग के द्वारा दीदी को बुलाने की कोशिश करता है। क्या दीदी पतंग पर उसके लिखे सन्देश को पढ़कर आएगी? क्या पतंग भोला के गाँव से दीदी के गाँव तक पहुंची? जानने के लिए पढ़िए मेरी कहानी “राखी और चश्में वाली पतंग?”
राखी का त्यौहार और चश्में वाली पतंग: मंजरी शुक्ला
गोलू बोला – “पैसे है तेरे पास”?
“अरे, ये तो सोचा ही नहीं, चल दादाजी से माँग लेता हूँ वह पिताजी की तरह सौ सवाल नहीं करेंगे” भोला मुस्कुराते हुए बोला।
दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और हाथ में चप्पल पकड़कर तेजी से दौड़ लगा दी।
कुछ ही देर बाद, दोनों हाँफते हुए दादाजी के सामने बाहर बरामदे में खड़े थे।
“जल्दी से माँग पैसे” गोलू ने धीरे से कहा।
“मैं सोच रहा हूँ कि दादाजी का चश्मा भी ले लूँ”? भोला फुसफुसाया।
“तू चश्में का क्या करेगा? तुझे तो सब कुछ ठीक से दिखाई पड़ता है” गोलू ने आश्चर्य से कहा।
“अरे, दादाजी बता रहे थे कि चश्मा लगाने के बाद उन्हें आसमान के नन्हें सितारें भी आसानी से दिख जाते है। अगर हम ये चश्मा पतंग पर चिपका दे तो पतंग मेरी दीदी को देख भी लेगी और उन्हें मेरा संदेसा भी दे देगी”।
“तू बहुत समझदार है भोला, पता नहीं पढ़ाई में ही तेरे नंबर क्यों अच्छे नहीं आते है” गोलू आँखें नचाता हुआ बोला।
“अगर बातें खत्म हो गई हो तो काम भी बता दो” दादाजी चश्मा उतारते हुए बोले, जो इतनी देर से उनकी खुसुरपुसुर देख रहे थे।
“पतंग खरीदने के लिए पैसे चाहिए” भोला ने दादाजी के चश्में की ओर देखते हुए कहा।
“अरे वाह, अपने दोस्त के साथ मिलकर पतंग उड़ाएगा” कहते हुए दादाजी ने कुर्ते की जेब से बीस रुपये निकालकर भोला को दे दिए और घर के अंदर चले गए।
गोलू ने लपककर चश्मा उठा लिया और बोला – “जल्दी चल, वरना दादाजी पूरे गाँव में दौड़ा दौड़ा कर मारेंगे”।
फ़िर क्या था, पलक झपकते ही दोनों वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए।
कई गली मोहल्ले पार करते हुए दोनों करीम चाचा की दुकान पर जा पहुँचे। उनकी दुकान पर ढेर सारी पतंगें करीने से सजी हुई थी।
किसी पतंग के ऊपर चाँद सितारें बने थे तो किसी के ऊपर रंगबिरंगी नन्ही चिड़िया बनी हुई थी।
भोला और गोलू हैरत से सभी पतंगों को देख रहे थे और बीच बीच में एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में तारीफ़ भी कर रहे थे। तभी उनकी नज़र एक नीले रंग की पतंग पर पड़ी जिसके ऊपर दो बड़ी बड़ी आँखें बनी हुई थी।
भोला और गोलू के चेहरे ख़ुशी से चमक उठे।
भोला ने करीम चाचा से कहा – “वो वाली पतंग और माँझा दे दीजिये”।
करीम चाचा के पतंग और माँझा पकड़ाते ही दोनों के पैरों में मानों पंख लग गए।
कई सड़क पार करने के बाद, दोनों एक दीवार के कोने में बैठ गए।
भोला ने अपनी नेकर की जेब से दादाजी का चश्मा निकाला।
गोलू डरते हुए बोला – “अगर दादाजी को पता चल गया तो तेरी तो पिटाई होगी ही वह मुझे भी नहीं छोड़ेंगे”।
“चिंता मत कर। दीदी के नहीं आने पर वह मुझसे ज़्यादा दुखी है और पापा उन्हें नया चश्मा भी तुरंत बनवा देंगे”।
“ठीक है, फ़िर ये काँच निकाल कर पतंग पर चिपका दे” गोलू बोला।
भोला ने तुरंत जेब से गोंद निकाला और दादाजी के चश्मे के फ्रेम से काँच निकालकर पतंग पर बनी आँखों पर चिपका दिए और पतंग पर बड़े अक्षरों में लिख दिया – “दीदी, अगर इस साल राखी पर नहीं आई तो हमेशा के लिए कुट्टी… तुम्हारा प्यारा भाई भोला”।
“चलो, सब काम हो गया” गोलू हँसते हुए बोला।
“और इसे उड़ाएगा कौन! हमें भला पतंग उड़ाना कहाँ आता है”? भोला ने गोंद की शीशी को वापस नेकर की जेब में रखते हुए कहा।
गोलू ने पतंग को घूरते हुए कहा – “मीतू दादा से अच्छी पतंग पूरे गाँव में कोई नहीं उड़ाता है। उन्हीं के पास चलते है”।
गोलू और भोला जानते थे कि मीतू दादा इस समय कहाँ मिलेंगे इसलिए उन्होंने सीधा मैदान की ओर दौड़ लगा दी।
मैदान में मीतू दादा माँझा लपेट रहा था और उनके बगल में ढेर सारी रंगबिरंगी पतंगें रखी हुई थी।
भोला उनके पास जाकर बोला – “मेरी ये पतंग उड़ा दो… खूब ऊँची… आसमान तक…”।
मीतू ने गोलू और भोला को देखा और जब उसकी नज़र पतंग पर पड़ी तो वह पेट पकड़कर हँसते हुए ज़मीन पर लोट गया और ठहाका लगाते हुए बोला – “हा हा हा, चश्मे वाली पतंग… स्कूल भेज रहा है क्या इसे”।
भोला बोला – “पूरी बात तो सुनो।”
पर मीतू दादा के तो हँसते हँसते आँसूं निकल आये थे। उसका हँसना बंद ही नहीं हो रहा था।
भोला ने देखा कि मीतू दादा चुप ही नहीं हो रहे है तो उसने उनके बगल में बैठते हुए पूरी बात बता दी।
मीतू दादा को भोला और गोलू के भोलेपन पर बहुत प्यार आया और इसलिए आँसूं पोंछते हुए वह बोला – “लाओ, मैं तुम्हारी पतंग उड़ा देता हूँ”।
और देखते ही देखते मीतू दादा के सधे हुए हाथों में नीली पतंग आसमान की सैर करने लगी।
दोनों टकटकी लगाए पतंग की ओर देख रहे थे कि तभी एक बड़ी सी काली पतंग आई और नीली पतंग की डोर को काटते हुए आगे बढ़ गई।
भोला का कलेजा बैठ गया।
वह रुआँसा होते हुए बोला – “अब दीदी कैसे आएगी”!
मीतू दादा भी सकपका गए थे।
वह प्यार से भोला के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले – “तुम्हारी पतंग ने दीदी को देख लिया होगा ना, इसलिए चली गई तुम्हारा सन्देश देने के लिए”।
“सच! तो कल दीदी आ जायेगी” भोला उछलते हुए बोला।
“हाँ… ज़रूर आ जायेगी” कहते हुए मीतू दादा की आँखों में आँसूं छलछला उठे भोला ओर गोलू ने एक दूसरे को कस कर गले लगा लिया और भाग खड़े हुए।
भोला घर पहुँचा तो दादा जी का चश्मा जोरों शोरों से ढूँढा जा रहा था। मम्मी झाड़ू लिए पलंग के नीचे थी और पापा कपड़ों के ढेर के बीच में बैठे कुछ सोच रहे थे।
दादाजी बार बार कह रहे थे – “अरे, कब से कह रहा हूँ कि चश्मा बाहर रखा था तो पता नहीं सब मिलकर घर के अंदर क्यों ढूंढ रहे है।”
भोला पापा के पास जाकर बोला – “दादाजी तो कई दिनों से कह रहे थे कि उन्हें अब नया चश्मा बनवाना है।”
“हाँ… बिलकुल” कहते हुए पापा तुरंत कपड़े के ढेर के निकल कर भागे और मम्मी ने झाड़ू ऐसे छोड़ दी मानों साँप पकड़े थी।
दादाजी ने भोला के सिर पर हाथ फेरा और पापा के साथ चश्मा बनवाने के लिए चल दिए।
“कल दीदी आ रही है” भोला ने मम्मी से कहा।
मम्मी का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा पर फ़िर कुछ सोचते हुए वह बोली – “तुझे कैसे पता”?
“बस, आप देख लेना” कहते हुए भोला उछलता कूदता गिलहरी के पीछे भागने लगा रात भर भोला सपनें में दीदी से कभी राखी बँधवाता तो कभी मिठाई खाता और कभी गोलू के साथ पतंग उड़ाता।
सुबह जल्दी से नहा धोकर भोला तैयार होकर दीदी का रास्ता देखना लगा।
देखते ही देखते दोपहर हो गई। मम्मी, पापा और दादा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश करी कि दीदी किसी कारण से इस साल भी नहीं आ पाई होगी पर भोला था कि दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठा था।
तभी गोलू माथे पर बड़ा सा लाल रंग का तिलक लगाए और हाथ में बड़ी सी चमकीली राखी बाँधे आया और बोला – “अरे, दीदी से अब तक राखी नहीं बँधवाई तूने”?
“दीदी नहीं आई गोलू… दीदी नहीं आई” कहते हुए भोला बुक्का फाड़कर रो पड़ा।
मम्मी भी अपनी रुलाई रोकती हुई घर के अंदर चली गई।
तभी दरवाज़े से आवाज़ आई – “तो फ़िर दरवाज़े पर कौन खड़ा है”!
भोला ने दरवाज़े की तरफ़ देखा तो सामने हँसती मुस्कुराती हुई दीदी अपनी बाँहें फैलाये खड़ी थी।
भोला दौड़ता हुआ दीदी से जाकर लिपट गया और हिचकियाँ लेते हुए बोला – “कुट्टी के डर से आ गई ना!” गोलू हँसते हुए बोला – “दीदी, अब पतंग का रास्ता मत देखना। अब हर साल दादाजी का चश्मा थोड़ी ना तोड़ेंगे।”
और पूरी बात पता चलने पर दीदी के साथ-साथ सभी हँसते हुए लोटपोट हुए जा रहे थे जिसमें दादाजी के ठहाकों की आवाज़ सबसे ज़ोरदार थी।