राखी: रक्षा और बंधन का संगम है रक्षाबंधन त्यौहार

राखी: रक्षा और बंधन का संगम है रक्षाबंधन

जब भी राखी का त्यौहार आता था, मुन्नी का दिल भर आता था। वह दिन भर घर के अंदर और बाहर चक्कर लगाया करती थी कि शायद उसका भाई लौट आये।

पर एक राखी के बाद दूसरी और फिर तीसरी और फ़िर बहुत सारी राखी आई पर उसका भाई नहीं आया।

आज राखी थी और हर साल की तरह मुन्नी को आशा थी कि उसका भाई राखी बँधवाने आ जाएगा।

वह माँ के पास जाकर बोली – “तुम तो कहती थी कि भैया शहर में पैसे कमाने गया है और राखी वाले दिन गाँव लौट आएगा”।

माँ ने मुन्नी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “हाँ, वह एक दिन ज़रूर लौटेगा”।

स्नेह और प्रेम की अटूट रेशमी डोरी की दिल को छु जानेवाली मंजरी शुक्ला जी की कहानी “राखी: रक्षा और बंधन का संगम है रक्षाबंधन त्यौहार”

“पर माँ, पूरे पाँच साल हो गए है। अब तक क्यों नहीं आया वह” कहते हुए दस साल की मुन्नी की आँखों में आँसूं तैर गए।

माँ ने मुन्नी के आँसूं पोंछे और बोली – “मैंने पूजाघर में सारी राखियाँ रख दी है। तू आज पूरी छह राखियाँ बाँधना उसे, पिछले पाँच सालों की भी राखियाँ तेरे भाई की कलाई पर कस कर बाँध देना”।

“एक… दो… तीन… चार… पाँच… छह… इतनी सारी राखियाँ, फिर तो बड़ा मज़ा आएगा। यहाँ तक हाथ भर जाएगा उसका…” कहते हुए मुन्नी ने कोहनी तक का इशारा किया और हँस दी।

मुन्नी के हँसते ही माँ का चेहरा भी खिल उठा।

मुन्नी बोली – “मैं अपनी सभी सहेलियों को बताकर आती हूँ कि इस बार मैं भैया को पूरी छह राखियाँ बाँधूँगी”।

और यह कहते हुए मुन्नी दौड़ती हुई घर से बाहर चली गई।

गली पार करते हुए मुन्नी बहुत सावधानी से पैर रख रही थी क्योंकि कहीं केले के छिलके पड़े थे तो कहीं कूड़ा… पर बचते बचाते भी मुन्नी का पैर साबुन के टुकड़े पर पड़ गया और वह फ़िसलते हुए धड़ाम से गिर पड़ी।

किसी ने काँच की बोतल भी सड़क पर ही फेंक दी थी जिसके कारण काँच के टुकड़े भी उसके हाथों में चुभ गए और खून बहने लगा था।

मुन्नी ने खड़े होने की कोशिश की पर वह दर्द और चोट के कारण बैठ भी नहीं पा रही थी।

तभी उधर से साइकिल पर एक चौदह पंद्रह साल का एक लड़का अपने दोस्त के साथ निकला। उसने जैसे ही मुन्नी को सड़क पर गिरा हुआ देखा, तुरंत अपनी साइकिल रोक दी।

तभी उसका दोस्त बोला – “विपिन, तू उसे यहीं पड़ा रहने दे, कोई ना कोई आकर उसे उठा ही देगा। हम लोगो को पहले ही राखी बंधवाने में बहुत देर हो चुकी है”।

उस लड़के की बातें सुनकर मुन्नी का दिल बैठ गया और वह रुआँसी हो उठी।

तभी उसे विपिन नाम के लड़के की आवाज़ सुनाई दी जो कह रहा था – “अगर इसकी जगह तुम्हारी बहन होती तब भी तुम ऐसा ही करते। चलो, जल्दी से उठाओ इसे”।

विपिन ने साइकिल स्टैंड पर लगाई और मुन्नी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला – “तुम तो बहुत बहादुर हो। अपने नन्हें हाथों से ही इतनी काँच की बोतले तोड़ डाली”।

विपिन का मज़ाक सुनकर मुन्नी दर्द में भी हँस पड़ी।

विपिन और उसके दोस्त ने मुन्नी को सहारा देकर खड़ा किया।

विपिन अपने दोस्त से बोला – “आशु, साफ़ रुमाल है तेरे पास”?

“हाँ… कहते हुए आशु ने जेब से सफ़ेद रंग का रुमाल निकलकर मुन्नी के हाथ में लगे काँच के टुकड़े झाड़े और बोला – “अच्छा है, कोई काँच खाल के अंदर नहीं घुसा”।

अपनी इतनी चिंता करते देख मुन्नी को अपने भाई की याद आ गई।

विपिन और आशु ने मुन्नी को साईकिल पर बैठाया और खुद साइकिल पकड़कर चलते रहे।

रास्ते में मुन्नी बोली – “मुझे इंजेक्शन से बहुत डर लगता है”।

“तो किसने कहा कि तुम्हें इंजेक्शन लगेगा”? विपिन ने आश्चर्य से पूछा।

“माँ, कहती है कि जब सड़क पर गिर कर चोट लग जाए या जंग खाया लोहा लग जाए तो टिटनेस का इंजेक्शन लगता है”।

“तुम बिलकुल मत डरो। हम दोनों भी तुम्हारे साथ इंजेक्शन लगवा लेंगे”।

“झूठ बूल रहे हो तुम” मुन्नी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“अरे सच में लगवाएँगे। टिटनेस का इंजेक्शन तो हर छह महीने में लगवाना ही पड़ता है, है ना आशु!

विपिन ने मुस्कुराते हुए आशु से कहा तो आशु के साथ साथ साथ मुन्नी भी जोर से हँस पड़ी।

थोड़ी ही देर में डॉक्टर का क्लिनिक आ गया।

विपिन और आशु ने मुन्नी को सहारा देकर साइकिल से उतारा और क्लिनिक के अंदर ले गए।

“अंकल, जरा इसे देख लीजिये” विपिन ने मुन्नी को आगे करते हुए कहा।

डॉक्टर अंकल ने मुन्नी को देखते हुए पूछा – “अरे बेटा, चोट कैसे लग गई”?

मुन्नी बोली – “भैया को इस साल छह राखी बाँधनी है ना… यही बात बताने के लिए अपनी सहेली के घर जा रही थी कि फ़िसल गई”।

“छह राखी… लकी है तुम्हारा भाई… एक हमें देखो, हमारी बहनें तो हमें सिर्फ़ एक राखी बाँधती है, वो भी सौ नखरें दिखाकर”! आशु हँसते हुए बोला।

“तो आप तो हर साल बँधवाते हो ना राखी, मेरा भाई तो छह साल से शहर से नहीं आया। इसलिए माँ ने कहा है कि जब वह आज आये तो उसे पिछले सालों की राखियाँ भी बाँध दूँ” मुन्नी ने सिर नीचे करते हुए कहा।

मुन्नी के बात सुनते ही आशु और विपिन के साथ साथ डॉक्टर अंकल भी सन्न रह गए जो मुन्नी के ड्रेसिंग करने लगे थे।

विपिन ने मुन्नी का उदास चेहरा देखा और बाद बदलते हुए मुन्नी की तरफ़ देखता हुआ बोला – “चलो, अब तुम देखो कि आशु टिटनेस का इंजेक्शन कैसे हँसते हुए लगवाता है”!

“नहीं पापा, अभी छह महीने नहीं हुए है, विपिन झूठ बोल रहा है” आशु बोला।

“तो आप आशु के पापा हो”? मुन्नी मुस्कुराते हुई बोली।

“हाँ, तभी तो इन दोनों को टिटनेस याद रहता है” डॉक्टर अंकल ने हँसते हुए कहा।

और फ़िर एक के बाद एक करके तीनों को टिटनेस के इंजेक्शन लगे, पर अचानक ही मुन्नी फूट फूट कर रोने लगी।

“क्या हुआ बेटा, दर्द हो रहा है”? डाक्टर अंकल ने मुन्नी से पूछा।

“नहीं…” मुन्नी ना में सिर हिलाते हुए जवाब दिया।

“तो फ़िर क्या हो गया”? विपिन ने मुन्नी का हाथ पकड़ते हुए प्यार से पूछा।

“इन दोनों ने सिर्फ़ मेरे ही कारण आज इंजेक्शन लगवाया, इन्हें देखकर मुझे अपने भाई की याद आ रही है”।

“तो क्या हम दोनों तुम्हारे भाई नहीं है”? आशु ने मुन्नी के आँसूं पोंछते हुए कहा।

“तो क्या आप दोनों मुझसे राखी बँधवाओगे”? मुन्नी ने आश्चर्य से पूछा।

“क्यों नहीं बँधवाएँगे! आज सबसे पहले हम दोनों तुमसे ही राखी बँधवाएँगे” कहते हुए विपिन का गला भर आया।

“हर साल बँधवाओगे, भैया”? मुन्नी ने फ्रॉक से अपनी आँखें पोंछते हुए पूछा।

विपिन ने मुस्कुराते हुए कहा – “हाँ… हर साल… अगले साल भी… उसके अगले साल भी… और।

“और उसके अगले साल भी…” आशु हँसते हुए बोला।

“डाक्टर अंकल मुस्कुराते हुए बोले – “और अब तीनों को इकठ्ठा टिटनेस भी लगवाना पड़ेगा”।

और डाक्टर अंकल के साथ साथ पूरा कमरा ठहाकों से गूँज उठा, जहाँ पर कुछ ही देर पहले मिले अनजान लोग, अब जीवन भर के लिए स्नेह और प्रेम की अटूट रेशमी डोरी में बंध गए थे।

~ मंजरी शुक्ला (बाल भारती के अगस्त अंक से ली गयी कहानी)

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