“नहीं… ये सब मेरे बगीचे के फूल है…नहीं दूँगा।”
“अच्छा, वो जो गुलाब जमीन पर गिर चुका है, उसे ही दे दो।”
“नहीं, उसे तो मैं अपनी किताब में रखूँगा।” कहते हुए राजीव ने उसे उठा लिया और अपनी किताब में रख लिया।
उसके इस व्यवहार से मोहित और वहाँ खड़े सभी दोस्तों को उस पर बहुत गुस्सा आया।
राजीव चिढ़ता हुआ बोला – “माना कि तेरा बगीचा बहुत खूबसूरत है, पर मोहित ज़मीन पर पड़ा हुआ फूल ही तो माँग रहा था।”
“हाँ… पर मैं अपने बगीचे का एक भी फूल किसी को नहीं दूँगा, चाहे मैं कूड़ेदान में फेंक दूँ।”
उसकी बात सुनकर सोनू कुछ बोलता, इससे पहले ही मोहित ने सबको वहाँ से चलने का इशारा किया। बातचीत कहीं लड़ाई झगडे में ना बदल जाए इसलिए सोनू भी चुपचाप चल दिया।
पर अपने दोस्तों को दुखी करने के बाद भी राजीव पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह वापस अपने बगीचे में लगे गुलाब, चंपा, मोगरा, सूरजमुखी और गेंदे के फूलों को निहारने लगा।
माली काका जो वहीँ पास में बैठे हुए गेंदे के फूलों को पानी दे रहे थे, उससे बोले – “बिटवा, तुम तो कभी इन फूलों की देखभाल नहीं करते हो और ना ही कभी इनमें पानी देते हो तो तुम एक फूल देने में इतना नाराज़ क्यों हो रहे थे?”
राजीव चिढ़कर उनसे भी कुछ बोलने ही जा रहा था कि तभी सामने से पापा आते दिखाई दिए।
वो जानता था कि अगर माली काका या किसी से भी उसके पापा ने उल्टा – सीधा बात करते हुए देख लिया तो उसे सबके सामने ही डाँट पड़ने लगेगी इसलिए वो अपनी किताब सम्भालते हुए वहाँ से भाग गया।
उधर दोस्तों की मंडली चली तो जा रही थी पर सबको राजीव के व्यवहार पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
सोनू बोला – “याद है, पिछले महीने मेरी छोटी बहन का कितना मन था, बेला के फूलों को देखने का… पर इस राजीव ने बगीचे के बाहर से ही उसे पेड़ दिखा दिया था।”
“हाँ… याद है… ज़मीन पर बिखरे फूल भी नहीं चुनने दिए थे उसने।”
“हम सबको उससे बात करनी तुरंत बंद कर देनी चाहिए। चार दिन अलग – थलग पड़ा रहेगा तो सारे होश ठिकाने आ जाएंगे… अब तक चुपचाप खड़ा नीरज ने कहा।
नहीं… इस तरह से तो तो वो कभी अपनी गलती नहीं समझ पाएगा और हम सब अपना एक दोस्त खो देंगे।
“पर हम कर भी क्या सकते है?” अमित ने कहा।
मेरे पास एक आइडिया है… सोनू ने धीरे से कहा।
जल्दी बता …मोहित चहका।
और फिर सोनू ने अपनी योजना सबको बता दी।
सभी के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे और उन्होंने तुरंत उसकी बात मान ली।
दूसरे दिन जब राजीव क्लास में पहुंचा तो सभी बच्चे सोनू को घेरे बैठे हुए थे। अमित कह रहा था… “मुझे भी वो जादू सिखा दो ना।”
“नहीं नहीं… पहले मुझे” …मैं तेरा सबसे अच्छा दोस्त हूँ ना… नीरज ने तिरछी नज़रों से राजीव को देखते हुए कहा।
अब तो राजीव से रहा नहीं गया और वो भी कूदकर अपने दोस्तों के बीच जा पहुंचा।
“कौन सा जादू… मुझे भी बताओ।”
“अरे तू जानकर क्या करेगा? तू तो रहने ही दे।”
“नहीं नहीं… मुझे भी सिखाओ जादू… तुम सबको तो पता है है, मुझे जादू कितना पसंद है!”
सोनू बोला – “ठीक है… तुम भी सुन लो पर और किसी को बताना नहीं।”
“नहीं नहीं… बिलकुल नहीं। जल्दी से बताओ मुझे।” कहते हुए राजीव उचककर सोनू की टेबल पर बैठ गया।
उसकी उत्सुकता देखकर सभी धीमे से मुस्कुरा उठे।
तभी सोनू ने कहा – “मुझे फूलों का रंग बदलना आ गया है।”
ये सुनकर राजीव का मुँह आस्चर्य से खुला का खुला रह गया।
वो हकलाते हुए बोला – “ऐसा कैसे हो सकता है… मैं ये मान ही नहीं सकता।”
“तभी तो तुझे नहीं बता रहे थे, चल अब जा यहाँ से और हमें अपने जादू की बात करने दे।”
राजीव बोला – “नहीं नहीं… पर ये तो असम्भव बात है ना!”
“है तो… पर हमारे सोनू जादूगर ने इसे संभव कर दिखाया है।”
“मैं अपने बगीचे के सारे फूल तुम लोगो को दे दूँगा, अगर सोनू ने फूलों का रंग बदलकर दिखा दिया…”
सोनू बोला – “तुम अपनी बात से मुकरोगे तो नहीं?”
“कभी नहीं… मैं तुम सबके सामने कह रहा हूँ, कहो तो लिखकर भी दे सकता हूँ।” कहते हुए वो बस्ते से कॉपी निकालने लगा।
“अरे, अरे… उसकी कोई जरुरत नहीं तुम बस दो-तीन सफ़ेद गुलाब डंठल सहित आज दोपहर को मेरे घर लेकर आ जाना।”
“और हाँ… फिर हम लोग खूब खेलेंगे, इसलिए मम्मी से बता कर आना।”
“ठीक है… मैं ठीक तीन बजे के करीब पहुँच जाऊँगा।”
तभी सर आ गए और सभी बच्चे दौड़ते भागते अपनी जगह पर जा पहुँचे।
सारे दिन राजीव उन जादुई फूलों के बारे में ही सोचता रहा। उसकी बैचेनी किसी से छिप नहीं रही थी इसलिए सब आपस में एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
छुट्टी होते ही राजीव ने घर पहुंचकर मम्मी से कहा-” आज सोनू मुझे कुछ जादू सीखने वाला है… हम सब दोस्त उसके यहाँ जा रहे है।”
मम्मी जानती थी कि राजीव को जादू का बहुत शौक है इसलिए वो मुस्कुराते हुए बोली – “हाँ… पहले खाना खा लो… फिर चले जाना और लौटकर मुझे भी सिखा देना।”
जरूर जरूर… कहते हुए राजीव ने फटाफट खाना खत्म किया और थोड़ी देर आराम करने के बाद बगीचे से जाकर सावधानी से दो सफ़ेद गुलाब के फूल लिए और चल पड़ा सोनू के घर।
दरवाजे के बाहर से ही हँसी ठहाकों की आवाज़ें आ रही थी। वो बुदबुदाया – “कहीं सोनू ने सारा जादू मेरे बिना ही तो नहीं सिखा दिया”
और ये सोचते ही घबराकर उसने तुरंत डोर बेल बजाई।