ईनाम: मुसीबत में सच्चा दोस्त ही साथ देता है - शिक्षाप्रद हिंदी बाल कहानी

ईनाम: मुसीबत में सच्चा दोस्त ही साथ देता है – शिक्षाप्रद हिंदी बाल कहानी

ईनाम – शिक्षाप्रद हिंदी बाल कहानी – एक भाषण प्रतियोगिता जीतने के लिए दो सहपाठियों में प्रतिद्वंद्विता

राजू और अमन सहपाठी थे। दोनों ने ही इस वर्ष होने वाली भाषण प्रतियोगिता में भाग लेना था। अमन अच्छी-खासी तैयारी कर रहा था। राजू सोचने लगा, “लगता है इस वर्ष भी भाषण प्रतियोगिता में यहा प्रथम आएगा। कुछ करना पड़ेगा। राजू का एक और मित्र था अभिषेक। बेचैनी कौ स्थिति में वह शाम को अभिषेक के घर आया और उसे सारी बात बता दी।”

अभिषेक बोला, “तुम चिंता मत करो। अब मेरा काम है। जब वह सुबह साइकिल लेकर आएगा तो मैं पीछे से उसको साइकिल में जोर से टकराऊंगा। वह मुंह के बल न गिरा तो कहना। सारा भाषण भूल जाएगा।”

ईनाम: डा. दर्शन सिंह ‘आशट’ की शिक्षाप्रद हिंदी बाल कहानी

लेकिन उस दिन अमन साइकिल को बजाए पापा के साथ स्कूटर पर आ रहा था। वे अभी एक किलोमीटर ही आगे आए होंगे कि उन्होंने सड़क के किनारे कुछ लोगों का इकट्ठा देखा।

पास आकर अमन क पापा ने बाइक रोका। देखा तो एक लड़के के सिर से खून बह रहा था और वह चिल्ला रहा था। उसकी साइकिल का अगला पहिया बुरी तरह कुचला पड़ा था।

अमन ने जख्मी लड़के को पहचनाते हुए एकदम कहा, “पापा यह तो राजू है। मेरा दोस्त।”

“क्या हुआ बेटा?”, अमन के पापा ने स्कूटर खड़ा करके उसे संभालते हुए कहा।

“अंकल, अंकल।” राजू ने अपनी बात अभी पूरी भी नहीं की थी कि वह बेहोश हो गया।

अमन के पापा ने हाथ देकर एक कार को रोका। कार ड्राइवर का स्थिति बताईं। उन्होंने बेहोश पड़े राजू को पिछली सीट पर लिया दिया। उसे अमन संभाल रहा था। अमन के पापा की जान-पहचान वाला एक और व्यक्ति भी कार में बैठ गया। अमन के पापा अपने स्कूटर पर कार के पीछे-पीछे एक अस्पताल में आ गए।

डॉक्टर ने राजू की हालत देखी और बोला, “इसे गहरी चोट लगी है। इसे खून चढ़ाने को तुरंत जरूरत है।”

“खून? कौन-सा ब्लड ग्रुप है इसका?” पापा ने पूछा।

पास खड़े अस्पताल के एक और कर्मचारी ने राजू के खून का नमूना लिया और जांच करने लगा। कुछ समय के बाद ही पता चला कि उसका ब्लड ग्रुप बी-पॉजिटिव था।

“लेकिन मेरा ब्लड ग्रुप तो ‘ए-पॉजिटिव’ है। वर्ना मैं दे देता।” अमन के पापा बोले।

यह सुनकर अमन तुरंत बोला, “पापा, मेरा ब्लड ग्रुप ओ-पॉजिटिव है। यह यूनिवर्सल डोनर ग्रुप है, किसी को भी दिया जा सकता है। मैं राजू को खून देने के लिए तैयार हूं।”

“नहीं बेटा, तुम अभी बच्चे हो। तुम्हारा खून नहीं लिया जा सकता।” डॉक्टर बोला।

खैर किसी न किसी तरह खून का प्रबंध हो गया। राजू के घर वाले भी सूचना मिलते ही अस्पताल में आ पहुंचे।

“चलो अमन, अब चलें। राजू के मम्मी-पापा आ चुके हैं। अब ये राजू को सम्भाल लेंगें। तुम्हारी प्रतियोगिता आरम्भ हो चुकी होगी।” पापा ने अमन के कान में धीरे से कहा।

अमन बोला, “नहीं पापा। मेरा प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मन नहीं करता। जब तक यह होश में नहीं आ जाता, मैं यहीं रहूंगा। इसके पास।”

तभी राजू ने आंखें खोलीं। वह रोने लगा लेकिन उपस्थित लोग उसे धैर्य देने लगे।

“मुझे क्‍या हो गया था?” राजू ने पूछा।

“घबराने की कोई बात नहीं बेटा, तुम्हारी साइकिल से एक कार टकरा गई थी और तुम सड़क पर गिर पड़े थे।” पापा का जवाब था। धीरे-धीरे उसे सारी घटना का पता चल गया।

“मुझे इस अस्पताल में कौन लेकर आया था?” राजू ने पुछा। “तेरा दोस्त और उसके पापा।” राजू के पापा ने कहा।

“कौन दोस्त? अभिषेक?” राजू ने पूछा।

“नहीं, अमन। ये और इसके पापा यहीं हैं। ये मौके पर न आते तो न जाने कितना खून बह जाता।” राजू के पापा ने कहा।

“क्या? अमन? तुम भाषण प्रतियोगिता में नहीं गए?” राजू ने धीमी आवाज़ से पूछा।

“नहीं, मैं प्रतियोगिता में जाने को बजाए अपने पापा के साथ तुम्हें लेकर अस्पताल आ गया था।”

“तुम्हें जरूर भाग लेना चाहिए था। तुम्हें ईनाम मिलता।”

“मेरे लिए तुम्हारी जान बचाना पहला काम था और प्रतियोगिता में भाग लेना बाद की बात थी। शुक्र है कि आपका बचाव हो गया है। क्‍या मेरे लिए यह किसी ईनाम से कम है?” अमन ने राजू का हाथ पकड़ कर कहा।

यह सुनते ही राजू को आंखों में आंसू टपक पड़े और उसने उसे सारी बात बताते हुए उससे माफी मांगी।

~ ‘ईनाम‘ story by ‘डा. दर्शन सिंह ‘आशट’

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