रॉबिन का क्रिसमस: नैतिक मूल्य से जुड़ी एक कहानी

रॉबिन का क्रिसमस: नैतिक मूल्य से जुड़ी एक कहानी

पड़ोस वाले अंकल अपने माली को डाँट रहे थे और रॉबिन उनके बगीचे के गुलाब हाथ में पकड़े हुए आज फ़िर अपने लॉन में बैठ कर कोई नई शरारत करने के लिए सोच रहा था।

मोहल्ले की गली से लेकर नुक्कड़ तक कोई भी ऐसी जगह नहीं बची थी, जहाँ पर क्रिकेट के साथ-साथ रॉबिन की शैतानियों की चर्चा ना होती हो।

सबसे मज़ेदार बात यह थी कि वह इन सब बातों को सुनकर बहुत खुश होता था।

उसकी छोटी-छोटी काली आँखें कंचे जैसी चमकने लगती थी।

पड़ोस वाले अंकल चिल्ला रहे थे – “रॉबिन के अलावा ये कोई और हो ही नहीं सकता।”

रॉबिन मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला – “मैं कितना प्रसिद्द हूँ। आसपड़ोस से लेकर दूर दराज़ तक मुझे सब जानते है।”

तभी उसे ढूँढते हुए पापा बगीचे में आये।

रॉबिन ने सोचा कि पापा अगर गुलाब के फूल देख लेंगे तो उसे बहुत डाँट पड़ेगी इसलिए उसने उन्हें पास आता देखकर सभी गुलाब तुरंत नींबू के पेड़ के पीछे फेंक दिए।

पापा समझ गए कि रॉबिन कोई शैतानी करके ही बगीचे में अकेले बैठा है।

वह रॉबिन के पास आकर समझाते हुए बोले – “इतनी शैतानियाँ करना अच्छी बात नहीं है,हम जैसा दूसरों के साथ करते है,वो लौटकर एक दिन हमारे पास ज़रूर आता है।”

रॉबिन पापा की बात सुनकर लॉन से भाग गया।

पापा बेचारे चुपचाप खड़े रह गए।

रॉबिन घर से तो निकल गया पर अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ जाए।

तभी हेमशा की तरह उसे सामने फल के ठेले नज़र आये। सुन्दर नारंगी संतरों को देखकर उसका मन ललचा उठा।

फल वाले की नज़र बचाकर उसने एक संतरा उठाया और उसी के ठेले के नीचे बैठ गया।

उसने संतरा खाना शुरू ही किया था कि तभी उसका दोस्त प्रवीण उसे ढूंढते हुए आ पहुंचा।

प्रवीण बहुत अच्छे से जानता था कि रॉबिन किसी फल के ठेले के नीचे ही बैठा कुछ खा रहा होगा इसलिए वह मेंढक की तरह उछल उछल कर चलते हुए ढूँढ रहा था।

जैसे ही प्रवीण ने उसे ठेले वाले के पैरों के पास बैठे हुए देखा वह उसके पास जाकर बोला – “जल्दी से ठेले के नीचे से निकल… क्रिसमस की कोई तैयारी नहीं करनी है क्या?”

ये सुनते ही रॉबिन इतना खुश हो गया कि उसे याद ही नहीं रहा कि वह संतरा चुराकर खा रहा
था। वह ठेले के नीचे से बाहर निकलकर फल वाले के बगल में ही आकर खड़ा हो गया। फल वाला रॉबिन को देखकर सकपका गया। उसे तो समझने में ही दो मिनट लग गए कि ये हुआ क्या!

फ़िर जैसे ही उसने रॉबिन के हाथ में संतरा देखा तो उसे सारा माज़रा समझ में आ गया। वह गाय भगाने वाली छड़ी लेकर रॉबिन के पीछे दौड़ पड़ा। पर भला रॉबिन कहाँ उसकी पकड़ में आने वाला था। वह तो पलक झपकते ही नौ दो ग्यारह हो चुका था।

दौड़ते भागते सँकरी गलियों को कूदता फाँदता वह उस जगह पर पहुँच गया, जहाँ पर उसके सारे दोस्त रोज़ मिला करते थे।

अपनी टोली के सभी दोस्तों को देखकर रॉबिन बहुत खुश हो गया और बोला – “इस बार क्रिसमस पर किसको लूटकर खूब सारे उपहार इकठ्ठा किये जाए?”

तब तक उसे प्रवीण आता दिखाई पड़ा जो रॉबिन को देखकर जोरो से हँस पड़ा।

प्रवीण बोला – “तुम्हें पता है कि हमारी पीछे वाली गली में एक बेकरी खुली है, जिसका मैनेजर बहुत मोटा है, बहुत ही मोटा और उसने अपने दोनों फैलाते हुए पीठ के पीछे कर दिए।”

रॉबिन हँसते हुए बोला-“इतना मोटा भी मत कर दो कि दरवाज़ा छोटा पड़ जाए।”

दुबला पतला पॉल चिढ़ते हुए बोला-“अंकल का मज़ाक मत उड़ाओ।”

ये सुनकर रॉबिन ने आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखा। पहली बार ऐसा हो रहा था कि पॉल किसी का मजाक उड़ाने पर गुस्सा हुआ हो।

सैम बोला – “बेकरी वाले अँकल तो इतने अच्छे है कि कभी भी पैसे लेते समय गिनते भी नहीं हैं।”

“और उनके पास एक डिब्बा भी है। हम सब उसी में पैसे डाल देते है” पॉल बोला।

रॉबिन की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई। उसने तुरंत पूछा – “और अगर उस डिब्बे में कुछ नहीं डाले तो और या फ़िर कम पैसे डाले!”

“नहीं, उनके साथ कोई ऐसा नहीं करता क्योंकि अगर किसी के पास कुछ कम पैसे होते है तो भी वह मुस्कुरा कर ले लेते है” रवि भावुक होते हुए बोला।

टीना बोली – “हाँ… हमको जितना सामान लेना होता है, हम ले लेते हैं और कई बार पैसे नहीं होने पर भी वह हमारी मनपंद पेस्ट्री या चिप्स हमें ज़बरदस्ती पकड़ा देते हैं”।

“और उनके पास जो डिब्बा है, हम सब उसी में पैसे डाल देते है” पॉल बोला।

रॉबिन की तो जैसे लॉटरी लग गई। वह इतना खुश हो गया कि प्रवीण के गले लग गया। किसी के भी समझ में नहीं आया कि आख़िर रॉबिन को अचानक क्या हो गया पर यह रहस्य तो सिर्फ़ रॉबिन ही समझ सकता था। और रॉबिन अपने दोस्तों को लगभग घसीटते हुए गली की तरफ़ लेकर बढ़ चला। गली के नुक्कड़ से ही केक और पेस्ट्री की महक रह रहकर हवा के साथ उड़ रही थी।

“लगता है, बहुत बढ़िया केक बनाते है” रॉबिन ने ललचाई नज़रों से दूकान की ओर ताकते हुए कहा।

“अरे, बहुत बढ़िया” कहते हुए पॉल के मुँह में पानी आ गया!

रॉबिन सड़क पर पड़े पत्थर को ठोकर मारते हुए बोला – “क्या करूँ, सारा दिन मुझे सामने वाले बाग-बगीचे से फ़ुर्सत ही नहीं मिलती कि कभी गलियों के चक्कर मार कर भी देख लूँ”।

प्रवीण ने कहा – “पर तुम अँकल को बिलकुल तंग मत करना। वह उस टकलू माली जैसे नहीं है, जो बगीचे के फल चुराकर बाज़ार में बेचता है और हम बच्चों को मारने के लिए डंडा लेकर घूमता रहता है।”

“हाँ… अँकल तो हम सब बच्चों को बहुत प्यार करते है” नैना ने तुरंत कहा।

“नहीं नहीं, मैं भला उन्हें परेशान क्यों करूंगा” रॉबिन ने सकपकाते हुए कहा।

जब सब बच्चे दुकान में पहुँचे तो रॉबिन ने देखा कि अँकल सच में बहुत मोटे थे। सैम ने जितने हाथ फैलाए थे, शायद उससे भी ज़्यादा मोटे…

उन्होंने सिर पर भूरे रंग का बड़ा सा हैट पहना हुआ था और गले में चमकती सुनहरी चेन में क्रॉस का लॉकेट था। पर रॉबिन को सबसे बढ़िया लगा उनके चौड़े फ्रेम का काला चश्मा।

“शाम के समय आँखों में काला चश्मा…” रॉबिन ने आश्चर्य से टीना से पूछा।

टीना फुसफुसाती हुई बोली – “अंकल को बहुत धुंधला दिखता है। उनकी आँखें बहुत कमज़ोर हैं ना, इसी वजह से वह पैसे नहीं गिनते और डिब्बों में डलवा देते हैं”।

तभी सैम बोला – “अंकल हम लोग आ गए”।

“आओ-आओ बेटा, तुम चॉकलेट केक बोल कर गए थे ना, मैंने तुम्हारे लिए मँगवा कर रखा है”।

“कितने पैसे हुए अँकल?” सैम ने कृतज्ञता भरे स्वर में पूछा।

“है तो दो सौ रुपये का बेटा, पर तुम्हारे पास कम भी हो तो कोई बात नहीं” अंकल ने प्यार से जवाब दिया।

सैम ने हँसते हुए पैसे वाले डिब्बे में दो सौ रुपये डाल दिए। रॉबिन मन ही मन सैम की बेवकूफ़ी पर खूब हँसा। अंकल ने अपना काला चश्मा हल्का-सा हटाया और काँच हटाकर ट्रे में से केक उठाकर मेज पर रख दिया।

ये देखकर रॉबिन बोल पड़ा – “अँकल, आपको तो सब दिखते है तो आप पैसे क्यों नहीं गिनते?”

यह सुन कर अंकल हँस पड़े और बोले बेटा -“पैसों से आँखों पर बहुत जोर पड़ता है और बेकरी का काम तो मैं बचपन से कर रहा हूं, इसीलिए केक और पेस्ट्री की तो खुश्बू से ही बता देता हूँ कि कौन सा केक है”।

एक पल रूककर अँकल बोले – “तुम क्या नए आए हो?”

टीना खुश होते बोली – “हाँ, अँकल ये हमारा दोस्त रॉबिन है”।

अँकल मुस्कुराते हुए बोले – “तुम भी आना रॉबिन, मुझे बच्चों के साथ दोस्ती करना बहुत पसंद है”।

“ज़रूर आऊँगा” कहते हुए रॉबिन उनसे विदा लेकर अपने दोस्तों के साथ निकल गया।

रास्ते भर सब अँकल की और क्रिसमस की ही बाते करते रहे, जो अब सिर्फ़ चार दिन ही दूर था। सब दोस्त जब अपने-अपने घर चले गए तो रॉबिन अपने खेल वाले नोट लेकर अँकल की दुकान पर जा पहुँचा और उसने तीन केक लिए। अँकल के साथ उसने ढेर सारी बातें भी की और जब पैसे देने की बारी आई तो उसने डिब्बे में वहीँ नकली नोट डाल दिए। तीन दिन तक रॉबिन ऐसा ही करता रहा, पर उसने किसी भी दोस्त को नहीं बताया कि वह अँकल की दुकान पर केक और पेस्ट्री लेने के बाद उनके डिब्बे में खेल वाले नकली नोट डाल रहा है।

क्रिसमस के दिन रोज़ की तरह सब बच्चे नुक्कड़ पर मिले।

उन सबके हाथों में अँकल के लिए गिफ़्ट था।

रॉबिन बोला – “मैं तो गिफ़्ट लाना ही भूल गया”, जबकि वह अँकल को कुछ नहीं देना चाहता था इसलिए उसने उनके लिए कुछ ख़रीदा ही नहीं था।

टीना बोली – “तुम कल दे देना। अभी चल कर हमारे साथ अँकल से मिल लो”।

रॉबिन ये सुनकर खुश हो गया और सब दोस्तों के साथ चल पड़ा।

क्रिसमस के कारण अँकल की दुकान रंगबिरंगी झालरों से सजी हुई बहुत सुन्दर लग रही थी।

अँकल बच्चों की आवाज़ सुनते ही खुश हो गए। जब एक-एक करके बच्चों ने उन्होंने उपहार दिए तो उनकी आँखों में आँसूं आ गए और वह अपना चश्मा उतारकर रुमाल से आँसूं पोंछने लगे।

ख़ुशी के मारे वह कुछ कह ही नहीं पा रहे थे।

थोड़ी देर बाद अँकल रूंधे गले से बोले – “मेरी तरफ़ से ये तुम सब बच्चों के लिए उपहार। इन पैसों से तुम सब अपनी पसंद का सामान खरीदना और मुझे ज़रूर दिखाना।”

अँकल ने यह कहते हुए पाँच सुनहरे रंग के लिफ़ाफ़े मेज पर रख दिए। सभी बच्चे बहुत खुश हो गए और सबने एक-एक लिफ़ाफ़ा उठाते हुए अँकल को धन्यवाद दिया। सबसे ज़्यादा अगर कोई खुश था तो वह था रॉबिन। वह सोच रहा था, इतने दिन फ़्री में केक और पेस्ट्री खाने के बाद आज रुपये भी… वाह मज़ा आ गया

रॉबिन अपने दोस्तों से बोला – “जल्दी से लिफ़ाफ़ा खोलकर देखते है, अँकल ने कितने पैसे दिए?”

“उससे क्या फ़र्क पड़ता है, ये क्या कम है कि वह हम सबको इतना प्यार करते है” पॉल ने कहा।

“देखो ना… मेरे कहने से प्लीज़” रॉबिन ने विनती भरे स्वर में कहा।

“अच्छा बाबा देखते है” प्रवीण बोला और सभी बच्चे अपने-अपने लिफ़ाफ़े खोलने लगे।

पाँच सौ रूपए… चार सौ… छह सौ…

“सबको अलग अलग क्यों दिए?” रॉबिन फ़िर बोला।

“ओफ्फो… उनको दिखाई नहीं देता ना… अंदाज़ से रख दिए होंगे। हम सब इन पैसो को मिलकर कोई अच्छा सा गेम ले लेंगे, जिसे हम सब मिलकर खेलेंगे” पॉल बोला।

“हाँ… रॉबिन, तू बता तेरे लिफ़ाफ़े में कितने पैसे है?” प्रवीण ने पूछा।

रॉबिन के हाथ काँप गए। उसके लिफ़ाफ़े में उसी के डाले हुए नकली नोट झाँक रहे थे।

शर्म और दुःख से उसकी आँखें डबडबा गई और वह बुदबुदाया – “क्या पापा सही कहते है कि हम जो देते है, वो एक ना एक दिन हमारे पास लौटकर आता है”।

सैम ने घबराते हुए पूछा – “क्या हुआ, तू रो क्यों रहा है?”

कुछ नहीं कहते हुए रॉबिन ने अँकल की दुकान की तरफ़ दौड़ लगा दी।

और ये क्रिसमस रॉबिन के लिए एक ऐसी सुनहरी सुबह लेकर आया जिसकी रौशनी में उसकी ज़िंदगी के सालों सालों जगमगाते रहे।

~ डॉ. मंजरी शुक्ला

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