सच्ची दीपावली: गरीब की दिवाली पर हृदयविदारक कथा

सच्ची दीपावली: गरीब की दिवाली पर हृदयविदारक कथा बच्चों के लिए

सच्ची दीपावली: गरीब की दिवालीदीपावली का पर्व नजदीक आ रहा था और स्कूल में सभी बच्चों के मन में मानों खुशियों के पंख लग गए थे और वे तमाम तरीके से रोज नए पटाखों की लिस्ट बनाते और फिर अचानक दूसरे पटाखे याद आ जाते तो पहली लिस्ट के चिंदे करके चारों ओर उड़ा देते। कोई अपने लिए नए कपड़े खरीदने का सोच रहा था तो किसी ने साल भर बचत करके पटाखे खरीदने का सपना देख रहा था। किसी-किसी का तो ये हाल था कि दिन-रात पटाखों के बारे में सोचते रहने के कारण उसे सपने में भी रंगबिरंगी फुलझड़िया और आतिशबाजियां दिखाई देती थी। आज सभी बच्चे बहुत खुश थे क्योंकि दीवाली की छुट्टिया शुरू होने जा रही थी। तभी प्रिंसिपल सर ने सभी बच्चों को हॉल में बुलवाया और दीवाली की शुभकामना देते हुए कहा – “मैंने आज एक महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए तुम सबको यहाँ बुलवाया हैं।”

सच्ची दीपावली: मंजरी शुक्ला

यह सुनकर सभी छात्र उत्सुक हो उठे और एक दूसरे की तरफ प्रश्नवाचक द्रष्टि से देखने लगे। छात्रों की उत्सुकता देखकर प्रिंसिपल सर मुस्कुराकर बोले – “जो भी छात्र सबसे शानदार और धूमधाम तरीके से दीपावली का पर्व मनायेगा, उसे विद्यालय की तरफ से पाँच हजार रुपयों का ईनाम दिया जाएगा।”

इतने रुपयों की बात सुनकर तो मानों छात्रों का उत्साह हजार गुना बढ़ गया और वे खुशी से ऐसे झूम उठे मानों उनके हाथ में पाँच हज़ार रुपये आ ही गए हो। वे आपस में अपनी तैयारिओं के बारे में बात करते हुए और एक दूसरे को दीपावली की बधाईया देते हुए स्कूल से घर जाने के लिए दौड़ पड़े।

सबसे बेहतर करने की होड़ में बच्चों ने जोरो-शोरो से नए नए तरीकों को अपनाकर अपनी कमर कस ली थी। झिलमिल करने वाली झालरें घरों की मुंडेरो की शोभा में चार चाँद लगाने लगी। नीली, लाल, हरी, पीली और भी ना जाने कितने रंगों की मेल की रंगोली उनके घरों के आगे सजकर एक नई आभा बिखेरने लगी मानों आसमान से उतरकर इन्द्रधनुष धरती पर आ गया हो।

जिस दिन दीवाली थी उस दिन प्रिंसिपल सर शाम को अपने स्कूल के आस पास के बच्चों के घरों की तैयारिया देखने निकल पड़े। बच्चों ने सच में इनाम पाने के लालच में जी जान लगा दी थी और सभी ने बहुत मेहनत की थी। किसी के घर में रंगीन सितारा ऐसे नाच रहा था मानों वो आकाश में टिमटिमाते हुए तारों को मात दे रहा हो तो किसी के घर की छत पर छोटे -छोटे जगमगाते बल्बों से बनी झालर मन को बरबस ही मोह ले रही थी। खूबसूरत मिट्टी के दीयों की कतारों का तो कोई जवाब ही नहीं था। जिन घरों की सजावट उनको बहुत पसंद आ रही थी, उन बच्चों के नाम वह एक सूची में लिखते जा रहे थे।

तभी उनकी नजर एक बहुत ही छोटे और साधारण से मकान पर पड़ी। जिसमे रंग रोगन तो दूर की बात, दरवाजे के बाहर एक दिया तक नहीं जल रहा था। उत्सुकतावश वह उस घर की ओर चल पड़े। पास जाने पर उन्होंने देखा कि कमरे के अन्दर से दिए की मद्धिम रौशनी का प्रकाश आ रहा था। खिड़की से झाँकने पर उन्होंने देखा कि बिस्तर पर एक कमजोर सी औरत लेटी हुई थी और उसके बगल में एक लड़का खड़ा था। अचानक उन्हें ध्यान आया कि वह लड़का तो रोहन हैं, जिसने इस साल पूरे जिले में टॉप करके उनके विद्यालय का नाम रोशन कर दिया था।

वह अन्दर जाने ही वाले थे कि तभी वह औरत रोहन से बोली – “बेटा, उधर आले में कुछ पैसे रखे हैं। तू जाकर अपने लिए कुछ मिठाई और पटाखे तो ले आ। सुबह से त्यौहार के दिन भी मेरे पास भूखा प्यासा बैठा हैं। प्रिंसिपल सर ने सोचा जब रोहन पटाखे लेने निकलेगा तो वह भी उसे कुछ पैसे दे देंगे। पर तभी रोहन बोला – “नहीं माँ, उन पैसो से मैं तुम्हारे लिए दवा और फल लाऊंगा, ताकि तुम जल्दी से अच्छी हो जाओ।” यह सुनकर उसकी माँ की आँखों से आँसूं बह निकले और वह बोली – “बेटा, तुझे तो पटाखे बहुत पसंद हैं ना। इतने सारे पटाखों की आवाजे आ रही हैं, क्या तेरा मन नहीं कर रहा है कि कम से कम तू एक फुलझड़ी ही जला ले?”

रोहन यह सुनकर अपनी माँ के आँसूं पोंछते हुए रूंधे गले से बोला – “तुम जल्दी से अच्छी हो जाओ माँ, हम लोग अगले साल साथ-साथ पटाखे फोड़ेंगे।”

उसकी माँ ने खीचकर उसे अपने गले से लगा लिया और फूट फूटकर रोने लगी। यह देखकर प्रिंसिपल सर सन्न रह गए। उस अँधेरे कमरे की रौशनी ने उनके मन में एक ऐसा उजाला भर दिया था जिसकी चमक के आगे सारे शहर की रौशनी फीकी पड़ गई थी। वह अन्दर जाकर रोहन से बात करना चाहते थे, उसे सांत्वना देना चाहते थे पर बार-बार उनका गला भर आता था। इसलिए वह चुपचाप अपने आँसूं पोंछते हुए वहाँ से चले गए। दूसरे दिन सभी बच्चे ईनाम के पीछे जल्दी ही स्कूल पहुँच गए और प्रिंसिपल सर का इंतज़ार करने लगे। जैसे ही सर आये, बच्चे उत्सुकता से उनसे कूद कूद कर ईनाम का पूछने लगे। प्रिंसिपल सर ने प्यार से बच्चों के सर पे हाथ फेरा और मंच पर जाकर माइक पकड़ कर कहा – “कल मैंने जो देखा और सुना, वह मैं आप सबको बताना चाहता हूँ।”

और यह कहकर उन्होंने सभी बच्चों के घरों और मेहनत की तारीफ़ करते हुए जब रोहन के बारे में बताया तो उनके साथ साथ सभी बच्चों कि आँखें नम हो गई। सभी छात्रों का दिल रोहन के प्रति श्रद्धा और सम्मान से भर उठा। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रोहन ने पूरे जिले में टॉप दिए कि मद्धिम रौशनी और तमाम अभावों के बीच न जाने कितनी मुसीबते झेलते हुए किया था। उसके माँ के प्रति असीम प्रेम ने सबको आज निरुत्तर कर दिया। उन्हें एहसास हुआ कि वो अपने मम्मी पापा के बहुत महंगे कपड़े और पटाखे खरीदने के बाद भी कभी खुश नहीं होते बल्कि उन्हें सारे साल कहते है कि उन्हें दिवाली में तो ख़ास मजा ही नहीं आया था।

प्रिंसिपल सर ने रुंधे हुए गले से पूछा – “बच्चो, अब यह फैसला में तुम सब पर छोड़ता हूँ कि इस इनाम का असली हकदार कौन हैं?”

सभी छात्रों एक स्वर में जोर से चिल्लाये – “रोहन”

और फिर वे सब एक कोने में खड़े ख़ुशी के मारे रोहन को ख़ुशी के मारे उठाकर मंच की और ले चले जहाँ पर प्रिंसिपल सर ताली बजाकर उसे गले लगाने के लिए खड़े थे ओर अब बच्चों को भी घर जाने की जल्दी थी क्योंकि आज उन्हें अपने मम्मी पापा से माफ़ी भी तो मांगनी थी और यह दिवाली रोहन के साथ साथ सभी के जीवन में बहुत खुशियाँ लेकर आई थी…

~ ‘सच्ची दीपावली‘ story by ‘मंजरी शुक्ला

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