संकल्प: नेहा की आयु 5 वर्ष थी। एक दिन जब स्कूल में Parent-Teacher meeting हुई तो किसी कारण उसकी मम्मी स्कूल न आ पाईं। नेहा को मन ही मन मम्मी पर गुस्सा आ रहा था। आखिर स्कूल में छुट्टी हुई तो नेहा सीधी घर आई। जब वह कमरे में आई तो देखा कि उसकौ मम्मी बिस्तर पर पड़ी हैं और उनके सिर पर पट्टी बंधी है।
नेहा को पता चला कि जब उसकी मम्मी स्कूल आ रही थीं तो रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया था। नेहा को मन ही मन अपने पर गुस्सा आने लगा कि वह खामख्वाह मम्मी पर गुस्सा हो रही थी। नेहा मम्मी से पूछने लगीं, “मम्मी, पापा घर क्यों नहीं रहते? यदि वह होते तो आपकी जगह मीटिंग पर आ सकते थे। आपको खामख्वाह…”
संकल्प: डा. दर्शन सिंह ‘आशट’
यह बात सुनकर नेहा की मम्मी बोलीं, “बेटी तुम्हारे पापा सैनिक हैं। सैनिकों को छुट्टी कम मिलती है”।
नेहा कुछ और बड़ी हुई तो उसकी समझ में आया कि उसके पिताजी सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात हैं।
कुछ समय बाद जब नेहा के पापा छुट्टी लेकर घर आए तो वह उनके गले लिपट गई और बोली, “पापा मेरी सहेलियों के पापा तो आमतौर पर घर पर ही रहते हैं या फिर दफ्तर से नौकरी करके शाम को घर लौट आते हैं लेकिन एक आप हैं जो इतना लम्बा समय लगा देते हैं घर आने में। पापा तुम यह नौकरी छोड़ दो”।
पापा ने उसका माथा चूमा और बोले, “यदि मैं और हमारे सैनिक मित्र नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाएं तो दुश्मन हमारे देश पर कब्जा कर सकते हैं। हम सरहद पर उनके दांत खट्टे करते हैं”। छुट्टी काट कर नेहा के पापा फिर सरहद पर लौट गए।
एक दिन नेहा के पापा का फोन आया कि अब सीमा पर युद्ध छिड़ गया है। नेहा स्कूल जाती तो उसका मन पढ़ाई में न लगता, अपने पिताजी की तरफ ही रहता। फिर किसी जान-पहचान वाले से पता चला कि नेहा के पापा और उनके दूसरे सैनिक मित्र पूरी मुस्तैदी से डटे हुए हैं। उनसे यह भी पता चला कि duty दे रहे सैनिक एक हांडी में दाल बना रह थे कि अचानक ही एक बम फटा और सारी की सारी दाल में धूल पड़ गई लेकिन कंकड़-मिट्टी से भरी वही दाल खाकर वे फिर दृढ़ता से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने लगे।
युद्ध रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। ज्यों-ज्यों नेहा के जन्मदिन की तारीख नजदीक आ रही थी, वह मन ही मन खुश हो रही थी। अपनी कई सहेलियों को उसने पहले से ही निमंत्रण दे रखा था और साथ ही यह बात भी विशेष तौर पर कही थी कि उसके पिताजी भी उसके जन्म दिन पर छुट्टी लेकर आ रहे हैं।
एक दिन अचानक ही रात को नेहा के मम्मी के मोबाइल पर रिंग बजी तो उनका दिल धक-धक करने लगा। वह हौसले से बोली, “हैलो….”। फोन पर सेना का अधिकारी बोल रहा था।
जब नेहा की मम्मी ने अनहोनी बात सुनी तो उसकी चीख निकल गई। युद्ध में जब नेहा के पिताजी दुश्मन पर ताबड़तोड़ फायर करके उन्हें खदेड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे तो अचानक एक-एक करके दो गोलियां उनकी टांग में लगीं। उन्हें फौरन सैनिक अस्पताल में लाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उनकी टांग को बहुत नुक्सान पहुंचा है जिसके कारण वह काटनी पड़ेगी वर्ना और ज्यादा हानि हो सकती है। फौरन आप्रेशन करने का निर्णय लिया गया। उसी दिन नेहा का जन्मदिन था।
नेहा के पिताजी होश में आ चुके थे लेकिन उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। वह गर्व से बता रहे थे कि उन्होंने कैसे अपने देश के दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोका और मुंह की खाकर उन्हें पीछे भागने के लिए मजबूर कर दिया।
पिताजी नेहा की आंखों में आंसू देखकर मुस्करा रहे थे और कहने लगे, “बहादुर बाप की बेटी की आंखों में आंसू”?
फिर उन्होंने नेहा की आंखों से आंसू पोंछते डर कहा, “नेहा, मैं तो भूल ही गया था आज तुम्हारा जन्मदिन है, बोलो क्या चाहिए”?
नेहा कुछ पल सोचती रही। फिर बोली, “जो कुछ मांगूंगी पूरा करोगे? वादा करो”।
“अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी करूंगा” पिताजी बोले।
“जब मैं बड़ी हो जाऊंगी, तो आप मुझे सैनिक बनाएंगे ताकि मैं आपके सपनों को पूरा कर सकूं”।
“यह हुई न बहादुर पिता की बहादुर बेटी वाली बात”। कहकर उन्होंने नेहा को गले लगा लिया फिर उसका माथा चूमते हुए बोले, “बेटी, तुम्हारा संकल्प जरूर पूरा होगा”।
नेहा पिताजी से लिपट गई। पास खड़े एक सैनिक ने नेहा को सैल्यूट किया। नेहा ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया। नेहा के मम्मी-पापा के चेहरों पर मुस्कान थी।