तभी उसके पास से एक नाव गुज़री, चीची जान बचाने के लिए हिम्मत करते हुए किसी तरह उसमे चढ़ गया। नाव में एक दो आदमी बैठे थे जो शायद उस राज्य के राजा से मिलने जा रहे थे और साथ में आमों से भरा एक झोला राजा को उपहार देने के लिए ले जा रहे थे। चीची जल्दी से उस झोले के अंदर कूद गया और बिना हिले डुले दम साधे बैठा रहा। जब नाव किनारे पर लग गई तो वे दोनों आदमी राजमहल की ओर चल पड़े। चीची अपने घर और दोस्तों की याद करते हुए सोच रहा था कि पता नहीं वो उन लोगो से अब कभी मिल भी पायेगा या नहीं।
तभी अचानक द्वारपाल ने एक आदमी से थैला हाथ में लेते हुए जाँच पड़ताल के लिए जमीन पर उलट दिया। आमों के बीच से निकल कर चीची फुर्ती से एक और भागा। सभी आमों को उठाने में लग गए और चीची की तरफ किसी ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। चीची जिस तरफ़ से राजमहल के अंदर घुसा, वो महल का रसोईघर था। ढेर सारे पकवान देखकर उसकी भूख और बढ़ गई और वो ज़मीन पर पड़ी पूड़ी के टुकड़े को आराम से बैठकर कुतरने लगा। इस साहसिक यात्रा के बाद चीची के अंदर थोड़ी हिम्मत आ चुकी थी और वह महल रसोईघर से बाहर निकालकर दूसरे कमरे में पहुंचा जहाँ पर राजा परेशान सा इधर उधर टहल रहा था और उसके मंत्री भी परेशान से खड़े हुए थे।
चीची राजा को गौर से देखने लगा। तभी राजा बोला – “मुझे समझ में नहीं आ रहा हैं कि आखिर हमारे राज्य में हर समय सिर्फ दिन ही क्यों रहता हैं, रात क्यों नहीं आती?”
ये सुनकर चीची आश्चर्य से इधर उधर देखने लगा। खिड़की के बाहर से झीने परदे की ओट से सूरज की रौशनी छन छन कर अंदर आ रही थी।
तभी महामंत्री धीरे से बोला – “महाराज, अब तो रात का पता ही नहीं लगने के कारण सब जाग जाग कर चिड़चिड़े हो गए है।
चीची को अपने राजा की हालत देखकर बहुत दुख हुआ और वो राजा के पास पहुँचा।
महामंत्री चूहे को देखकर भड़क उठा और वो उसे उठकर फेंकने ही वाला था कि राजा बोला – “रुको” और उसने चीची को बड़ी ही सावधानी से अपनी हथेली पर उठा लिया
चीची बोला – “महाराज, आपके सपनों का गोला तो हमारी बस्ती में पड़ा हैं, इसलिए यहाँ रात नहीं हो रही।”
सपनों का गोला…