पेड़ों की रक्षा: खेजड़ी का पेड़ - रेगिस्तान का गौरव व राजस्थान का कल्पवृक्ष

पेड़ों की रक्षा: खेजड़ी का पेड़ – रेगिस्तान का गौरव व राजस्थान का कल्पवृक्ष

पेड़ों की रक्षा: गगन के घर के पास खेजड़ी का एक विशाल वृक्ष था, जिसे उसके दादाजी ने उसके पिताजी के जन्म पर लगाया था। खेजड़ी का यह पौधा वह अपने गांव से लाए थे और कहते थे कि यह बहुत ही अमूल्य पेड़ है। इसे बचाने के लिए अमृता देवी ने खेजड़ी के साथ कट कर प्राण दे दिए थे। इसकी फली सांगरी बहुत ही स्वादिष्ट व स्वास्थ्यवर्धक होती है।

पेड़ों की रक्षा: खेजड़ी के पेड़ की कहानी

उन्होंने खेजड़ी का पौधा अपने घर के पास ही लगाया था। गगन के पिताजी और खेजड़ी साथ-साथ जवान हुए। कुछ वर्षो बाद खेजड़ी विशाल वृक्ष बन गई। खेजड़ी की डालियां छत को छूने लगीं। दादाजी छत पर खड़े-खड़े उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते व सहलाते और मन ही मन खुश होते। जब गगन के पिताजी नौकरी लगे और पहली तनख्वाह लाकर दी, तब उसके दादाजी ने पहली बार बड़े प्यार से खेजड़ी की फली सांगरी तोड़ी और खेजड़ी भी श्रद्धा से टहनियों सहित नीचे झुक गई। दादाजी ने पहले सांगरी भगवान को अर्पित की फिर उसकी सब्जी बनाकर सारे मोहल्ले में बांटी। खुश होते हुए दादाजी ने गगन की दादी से कहा, देखो आज मेरे बेटे व बेटी दोनों ने एक साथ फल दिया है। जब गगन पैदा हुए, तब दादाजी ने थोड़ी दूरी पर बेरी का एक पौधा लगाया और कहा, गगन यह तुम्हारी बहन है, इसका हमेशा ध्यान रखना।

गगन के दादाजी गर्मियों में खेजड़ी के नीचे ही आराम करते थे। गगन का बचपन भी खेजड़ी के नीचे हंसते-खेलते बीत रहा था। दादा जी कहते थे, अगर हमें स्वस्थ व खुश रहना है, तो हमें पेड़-पौधों को भाई-बहन बनाना होगा। इस प्रकार प्रकृति के साथ रिश्तेदारी से हमारे दिन खुशी से बीत रहे थे।

जब मैं 10वीं कक्षा में हुआ, तब मेरे दादाजी का देहांत हो गया। अंतिम समय मेरे दादाजी ने मेरे पिताजी से कहा, “बेटे यह खेजड़ी तुम्हारी बहन है। गगन यह तुम्हारी बुआ है। आने वाले समय में यह सब बुआ-मौसी शब्द खत्म हो जाएंगे। तुम इन्हें संभाल कर रखना। यह वृक्ष और ये संबोधन हमारे समाज की अमूल्य धरोहर हैं। यह खेजड़ी सैंकड़ों पक्षियों के परिवारों को पालती है, उन्हें आश्रय देती है और हमारे आसपास के वातावरण को भी शुद्ध रखती है। गगन खेजड़ी का ध्यान अपने पिताजी से भी ज्यादा रखने लगा। जब उसकी सांगरिया लगती तो वह बड़े प्यार से तोड़ता। अड़ोस-पड़ोस में बांटता। उसके सारे यार-दोस्त भी खेजड़ी का ध्यान रखने लगे और प्यार से उसे खेजड़ी बुआ के नाम से पुकारते।

एक दिन गगन स्कूल से वापस आया तो उसने देखा कि खेजड़ी बुआ के आसपास बहुत भीड़ लगी है। एक मोटा, काला-सा व्यक्ति उसे काटने कौ तैयारी कर रहा है, उसने कुल्हाड़ी से पहला वार उसके तने पर कर दिया । गगन जोर से चीखता हुआ खेजड़ी के तने से लिपट गया। मैं नहीं कटने दूंगा इसे, यह खेजड़ी मेरी बुआ है। नगर पालिका का बड़ा अधिकारी गुस्से से बोला, हटाओ इस बुआ के बच्चे को, हमने सड़क चौड़ी करनी है।

उसे मोटे व्यक्ति ने गगन को खींचकर दूर जमीन पर पटक दिया। गगन के जमीन पर गिरते ही खेजड़ी के वृक्ष से जोर से आवाज आई… सुनो सब लोग सुनो | मैं गगन की खेजड़ी बुआ बोल रही हूं। आप सबको मेरा प्यार व आशीर्वाद। मेरा काम तो आप सब लोगों को देना ही देना है। मैं आप सबसे कुछ भी नहीं मांगती, फिर भी आप लोग मुझे काट रहे हैं। मैंने आप सबका क्या बिगाड़ा है। अगर आप सड़क चौड़ी करते हैं, तो बड़े-बड़े वाहन यहां से आएंगे-जाएंगे। मोहल्ले वाले परेशान होंगे। भोले-भाले बच्चे खेल नहीं सकते।

इतने में खेजड़ी पर बैठे पक्षियों ने जोर-जोर से शोर मचाना आरंभ कर दिया और कहने लगे, मोहल्ले-वासियों आप बोलते क्यों नहीं? बोलो! मोहल्ले वाले यह सुन कर स्तब्ध रह गए और सभी एक आवाज में बोले, खेजड़ी का यह वृक्ष हम नहीं काटने देंगे। नगर पालिका के अधिकारी व कर्मचारी यह दृश्य देखकर हैरान रह गए। उन्हें लगा यह वृक्ष नहीं, सचमुच में हम सबकी बुआ है। वह भी कहने लगे, यह खेजड़ी नहीं कटेगी। यहां पर इतनी सड़क उपयुक्त है। गगन व अन्य बच्चे खेजड़ी बुआ से लिपट गए। खेजड़ी के कटे भाग से खून निकल रहा था। सभी बच्चों ने वहां दवाई लगाकर पट्टी बांध दी। बच्चों का प्यार देखकर खेजड़ी बुआ के खुशी के आंसू निकल गए।

खेजड़ी ने सभी मोहल्ले वासियों, बच्चों व सभी पक्षियों का धन्यवाद किया।

खेजड़ी को रेगिस्तान का गौरव व राजस्थान का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। खेजड़ी को सन 1983 में राजस्थान का राजकीय वृक्ष भी घोषित किया गया था। खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस वृक्ष की आयु 5000 वर्ष मानी जाती है।

Sangri pods grow on the khejri tree
Sangri pods grow on the khejri tree

खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़, खेजड़ी, जांट / जांटी, सांगरी, छोंकरा, जंड, कांडी, वण्णि, शमी, सुमरी आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं।

Prosopis cineraria, also known as ghaf, is a species of flowering tree in the pea family, Fabaceae. It is native to arid portions of Western Asia and the Indian Subcontinent, including Afghanistan, Bahrain, Iran, India, Oman, Pakistan, Saudi Arabia, the United Arab Emirates, and Yemen. Its leaves are bipinnate.

~ ‘पेड़ों की रक्षा‘ story by ‘नरेश मेहन

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