पेंसिल बॉक्स: मंजरी शुक्ला
रानू के साथ उसके कई दोस्त भी बैठे हुए थे। वे सभी उसकी पेंसिल अलग-अलग बॉक्स में रख रहे थे।
तभी रानू की फ्रेंड चिन्नू सभी पेंसिल की तरफ़ देखते हुए बोली – “तुम्हारे पास तो हर रंग की पेंसिल है”।
“हाँ, क्योंकि मुझे पेंसिल का बहुत शौक है और इसलिए पापा हर बर्थडे पर मुझे ढेर सारी कलर पेंसिल गिफ़्ट करते हैं” रानू हँसते हुए बोली।
“अरे वाह, और तुमने उन्हें कितना संभाल कर भी रखा है” मुन्नू बोला।
“तुम्हारी सारी पेंसिल बिल्कुल नई लगती है। मुन्नू की पेंसिल तो दूसरे ही दिन इतनी गन्दी हो जाती है जैसे दस साल पहले लाई गई हो” मुन्नू की बहन चिन्नू बोली।
“और तेरी पेंसिल तो पेंसिल बॉक्स के अलावा पूरे घर में हर जगह मिल जायेगी। ऐसा लगता है उनके पैर है जो मानों सारा घर घूमती रहती है” मुन्नू गन्दा सा मुँह बनाता हुआ बोला।
तभी रानू उन दोनों का झगड़ा शांत करवाते हुए बोली – “हम सब एक बड़े से जंगल का चित्र बनाते है”।
“मैं झरना बनाऊंगा” मुन्नू बोला।
टिन्नी भला कैसे पीछे रहती वह तुरंत कूदकर आगे आई और बोली – ” जंगल में शेर होता है ना कि झरना”।
“होता है झरना…” मुन्नू अपनी बात पर अड़ गया।
रानू बोली – “हमारा शेर झरने पर पानी पीने आएगा हम उसका चित्र बनाएंगे”।
यह सुनकर मुन्नू और टिन्नी खुश हो गए और ढेर सारी पेंसिल पकड़कर बड़े ही ध्यान से ड्राइंग करने लगे। चारों बच्चे मिलकर एक जंगल की तस्वीर बनाने लगे जिस में हरे पेड़, नीली नदी, कल कल करता सफ़ेद झरना, रंगबिरंगे जंगली फूल, पीली और नीले तितलियाँ, रंगबिरंगा इंद्रधनुष के साथ साथ खूबसूरत पक्षी।
तभी टिन्नी ख़ुशी से चहकते हुए रानू से बोली – “तुम्हारे पास सभी रंग की पेंसिल है ना, इसलिए इतनी सुन्दर तस्वीर बन पाई है”।
अपनी पेन्सिलों के बारें में सुनकर रानू का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।
“अच्छा चलो, अब सभी पेंसिल वापस अलमारी में रख देते हैं। उसके बाद हम सब लूडो खेलेंगे” रानू मुस्कुराते हुए बोली।
चुन्नू बहुत ही लापरवाही से पेंसिल रख रही थी। अचानक उसका पैर, फ़र्श पर गिरी एक पेंसिल पर पड़ गया।
कट्ट… की आवाज के साथ ही पेंसिल टूटकर दो टुकड़ों में बँट गई।
अपनी पसंदीदा हरे रंग की पेंसिल को टूटा देखकर रानी का चेहरा उतर गया।
उसने दुखी होते हुए पेंसिल की ओर देखा तो चुन्नू हाथ में दोनों टुकड़ें पकड़े हुए हँस रही थी। चुन्नू को हँसता देख टिन्नी और मुन्नू भी हँसने लगे।
रानू ने धीरे से कहा – “तुम्हें देख कर पैर रखना चाहिए था”।
“तो क्या हो गया, एक पेंसिल ही तो टूटी है” चुन्नू ने लापरवाही से कंधे उचकाते हुए कहा।
रानू उदास होते हुए बोली – “पर यह पेंसिल अभी बहुत दिनों तक चल सकती थी, इसी तरह से तुमने कल मेरी स्केल तोड़ दी थी”।
“यह सब मैंने गलती से तोड़ा है” चुन्नू नाराज़ होते हुए बोली।
“एक पेंसिल ही तो गई है, उसके टूटने से क्या फ़र्क पड़ गया” मुन्नू ने भी चुन्नू का पक्ष लेते हुए कहा।
“मैं तुम में से किसी से भी बात नहीं करुंगी क्योंकि तुम लोग बहुत लापरवाह हो” रानू दुखी होते हुए बोली।
“हमनें तुमसे बड़ा कंजूस आज तक नहीं देखा” टिन्नी ने अपनी आखें नचाते हुए कहा।
“तुम बहुत कंजूस हो, बेहद कंजूस…” कहते हुए सारे बच्चे रानू का मजाक उड़ाने लगे और उसकी पेंसिल और पेंसिल बॉक्स हवा में उछालने लगे।
तब तक एक बेहद खूबसूरत पेंसिल बॉक्स खिड़की के बाहर जा गिरा।
यह “पेंसिल बॉक्स” इसी बर्थडे पर रानू के पापा ने उसे गिफ़्ट किया था ओर रानू इसे बहुत प्यार से संभालकर रखती थी।
रानू दौड़ती हुई घर के बाहर गई और पीछे वाली खिड़की के पास पहुँच गई।
रानू के पीछे पीछे उसके तीनों दोस्त भी भागते हुए गए कि कहीं कोई उस पेंसिल बॉक्स को उठाकर ना ले जाए।
बच्चों ने देखा कि वहाँ पर दो छोटे बच्चे कूड़े के थैले के पास खड़े थे। थैले के पास कुछ टूटी प्लास्टिक की बोतलें, कुछ ढक्कन, आठ दस पन्नियां पड़ी हुई थी। ऐसा लग रह था कि वे सोनों बच्चें वहाँ पर कूड़ा बीनने आये थे।
एक बच्चे की शर्ट जगह जगह से फटी थी तो दूसरा फटी हुई गन्दी सी बनियाइन पहने हुए था। रानू ने अपने दोस्तों की ओर देखा। वह और उसके दोस्त स्वेटर, टोपी और जूते मोजो में भी काँप रहे थे।
वे दोनों बच्चे उस पेंसिल बॉक्स को पकड़कर ख़ुशी से उछाल रहे थे और उसके अंदर की पेंसिल को देखकर कूद रहे थे।
तभी उन दोनों बच्चों की नज़र रानू और उसके दोस्तों पर पड़ी।
उनमें से एक बच्चे ने तुरंत दूसरे बच्चे के हाथ से पेंसिल छीनकर वापस पेंसिल बॉक्स में रखी और रानू की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला – “दीदी,क्या यह तुम्हारा पेंसिल बॉक्स है”?
रानू ने उस बच्चे की ओर देखा। आगे के दो टूटे दाँतों से मुस्कुराता हुआ वह बच्चा हाथ बढ़ाए रानू की ओर बड़े ध्यान से देख रहा था।
रानू ने दूसरे बच्चे की ओर देखा जो टकटकी लगाए पेंसिल बॉक्स की ओर ताक रहा था।
रानू ने बच्चे की की तरफ़ प्यार से देखा और मुस्कुराते हुए बोला – “नहीं… यह पेंसिल बॉक्स मेरा नहीं है”।
बच्चों के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे।
वे हँसते हुए उस पेंसिल बॉक्स को वापस पकड़कर उछलने कूदने लगे
रानू की आँखों में ख़ुशी के आँसूं आ गए।
तीनों दोस्तों के चेहरे शर्म से झुके हुए थे।
चुन्नू ने रानू को कुछ कहना चाहा पर दुःख के मारे उसका गला भर्रा गया। रानू ने चुन्नू को कस के गले से लगे लिया क्योंकि वह जानती थी कि चुन्नू क्या कहना चाहती थी।