नटखट सोनू एक बहुत ही शरारती बच्चा था और रात दिन सिर्फ़ शैतानियाँ करने के बारे में ही सोचता रहता था।
उसके घर में एक सफ़ेद रंग गाय थी नंदनी, जो बहुत ही सुन्दर और सीधी थी। वह सोनू को बहुत प्यार करती थी पर जब भी सोनू अपने पापा के साथ गौ शाला में जाता तो उसकी घास छुपा देता था या उसका पानी फ़ेंक देता था।
बेचारी नंदनी को इस कारण कई बार भूखा-प्यासा ही रहना पड़ता था। पर तब भी वह कभी सोनू को ना तो मारने दौड़ती और ना ही उसे अपने नुकीले सींघो से डराती।
सोनू के दादाजी उसे कई बार समझाते पर वह उनकी नज़रें बचाकर चुपचाप शैतानियाँ करता रहता।
एक दिन दादाजी सोनू से बोले – “पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है”।
सोनू सिर झुकाये उनकी बात सुनता रहा और बोला – “तो क्या इसीलिए कृष्ण भगवान के साथ जो गाय की फ़ोटो हैं, उसमें सभी भगवान् नज़र आ रहे है”।
दादाजी ने मुस्कुराते हुए पूछा – “कौन सी फ़ोटो”?
“जब आप मुझे शाम को मंदिर लेकर जाते हो तो वहाँ दीवार पर एक फ़ोटो टंगी है ना…”।
सोनू मासूमियत से बोला।
दादाजी हँसते हुए बोले – “हां… बिलकुल वैसे ही… उस फ़ोटो में तुमने देखा ना कि गाय के पूरे शरीर में देवी देवता दिखाई दे रहे है और अथर्ववेद में भी लिखा है कि “धेनु सदानाम रईनाम” अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है इसलिए गाय का कभी अपमान नहीं करना चाहिए”।
सोनू दादाजी की बात को सोचते हुए सोने चला गया। उसके कानों में अभी भी दादाजी की कही हुई बातें गूँज रही थी।
उस रात जब रात वह सोया तो उसने सपनें में देखा कि नंदनी गौशाला से बाहर आ गई है।
यह देखकर उसने नंदनी को पकड़ा और उसके खूटें के पास उसे बाँधने के लिए पहुंचा पर अचानक रस्सी उसके गले से लिपट गई और देखते ही देखते वह गाय बन गया।
डर के मारे वह बहुत घबरा गया और उसके आँसूं बहने लगे और जब उसने नंदिनी की ओर मदद के लिए देखा तो वह सामने उसके रूप में खड़ी थी।
उसने डरकर जोर से माँ को आवाज़ लगाईं पर उसके मुँह से सिर्फ़ गाय जैसी रंभाने के आवाज़ निकली जिसे सुनकर माँ दौड़ी-दौड़ी गौशाला में आई और नंदनी को सोनू समझ कर प्यार करते हुए घर के अन्दर ले गई।
सारी रात उसने भूखे प्यासे मच्छरों के साथ काटी। अब जाकर उसे याद आया कि पापा ने जब भी मच्छर भगाने की अगरबत्ती गौशाला में जलाई तो उसने तुरंत पानी डालकर बुझा दी थी जिससे नंदनी को सारी रात मच्छर और मक्खियाँ तंग करती रहे।
थोड़ी ही देर बाद उसके ऊपर ठंडी ठंडी पानी की बूंदे, टिपटिप की आवाज़ के साथ गिरने लगी। उसने घबराकर ऊपर देखा तो छत से पानी टपक रहा थी।
ये कवेलू किसने हटाया सोचते हुए जब वह ठंड के मारे ठिठुरने लगा तो उसे याद आया कि एक बार पापा ने उसे नंदनी के पीने का पानी फेंकते देखकर बहुत मारा था तो उसने बदला निकालने के लिए नंदनी के खड़े होने वाली जगह के ठीक ऊपर का कवेलू हटा दिया था, जिससे वह बरसात में भीगती रहे। उसने इधर उधर जाने की कोशिश की, पर रस्सी इतनी छोटी थी कि उससे बैठा भी नहीं जा रहा था इसलिए वह वहीं पर पाने में भीगने के लिए मजबूर था और यह सोचने की सोनू को ज्यादा जरुरत नहीं पड़ी कि रस्सी भी उसी ने काटकर छोटी कर दी थी।
सारी रात वह अपने किये पर पश्चाताप करता रहा और मन ही मन नंदनी से माफ़ी मांगता रहा। सुबह जब उसके पापा दूध दूहने आये तो साथ में नंदिनी भी आई थी और उसे एकटक देख रही थी।
तभी उसके पापा बोले – “पता है सोनू, गाय को हम ऐसे ही माता नहीं कहते इसमें सच में माँ की तरह ममता होती है। बचपन में हमने तो सारी दवा दारु कराकर तुम्हारे बचने की उम्मीद हो छोड़ दी थी तब अचानक किसी ने तुम्हें गाय का दूध देने के लिए कहा और हम नंदनी को घर ले आये। समझो, नंदनी ने ही तुम्हें दूसरा जीवन दिया है” कहते हुए पापा की आँखों में आँसूं आ गए।
सोनू तो इतना शर्मिंदा था कि नंदिनी से नज़रें भी नहीं मिला पा रहा था। उसने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया।
तभी उसकी माँ से गोदी में प्यार से लेते हुए बोली – “सोनू, कोई डरावना सपना देखा क्या?”
सोनू ने आँखें मलते हुए अचकचाकर माँ की ओर देखा और दौड़कर गौशाला की और भागा जहाँ पर नंदनी मच्छरों से परेशान होकर अपनी पूँछ से उन्हें इधर उधर भगा रही थी।
सोनू भागता हुआ गया और मच्छर भगाने की अगरबत्ती जलाई और उसके उसके आगे पानी रखा और नंदनी के गले लग गया।
उसकी मम्मी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था पर वह सोनू को नंदनी की देखभाल करते देखकर बहुत खुश थी और नंदनी की आँखों से भी आँसूं बह रहे थे और वह अपना मुँह सोनू के गले से लगाए हुए थी।
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