टांय-टांय फिस्स: एक थी मछली। छोटी-सी, प्यारी सी। कुछ बच्चों ने उसे देखा। एक बच्चे ने पूछा, “तुम कौन हो?”
मछली ने कहा, “मैं फिश हूं।”
सब बच्चे हंस पड़े।
एक बोला, “फिश तो सभी मछली होती हैं। तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम टांय-टांय है।”
“हैं? तो तुम्हारा पूरा नाम हुआ टांय-टांय फिस्स।” जब एक बच्चे ने कहा तो सब हंस पड़े।
“इसमें हंसने की क्या बात है?”
टांय-टांय फिस्स: लेखक गोबिंद शर्मा
“हंसने की बात यह है कि जो पटाखा चलता नहीं यानी आवाज नहीं करता, उसे हम फिस्स हो जाना कहते हैं। जो कोई बड़बोला होता है या हिम्मत हारने वाला होता है, वह असफल हो जाता है तो उसे हम टांय-टांय फिस्स हो जाना कहते हैं। तुम्हारा तो नाम ही टांय-टांय फिस्स है।”
“नहीं, मैं फिस्स नहीं, फिश हूं। मैं हिम्मत हारने वालों में नहीं हूं। आज मैं पानी से बाहर इसलिए आई हूँ कि मुझे इस पहाड़ की चोटी पर चढ़ना है।”
यह सुनकर बच्चे हंस पड़े । एक बोला, “तो तुम तेनजिंग शेरपा बन कर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने आई हो?”
“मुझे मालूम है यह पहाड़ की चोटी माउंट एवरेस्ट नहीं है।”
“लेकिन तुम्हारे लिए तो यह माउंट एवरेस्ट ही साबित होगा। तुम इस पर नहीं चढ़ सकोगी।”
“मैं इस पहाड़ कौ चोटी पर चढ़ कर दिखाऊंगी।”
नन्ही फिश ने पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया। अभी वह थोड़ा-सा ऊपर गई थी कि फिसल करनीचे गिर पड़ी । बच्चों को हंसी आ गई।
फिश ने अपना इरादा नहीं छोड़ा। उसने एक चिड़िया को उड़कर पहाड़ की चोटी की तरफ जाते देखा। उसने चिड़िया को आवाज दी, “सुनो मुझे पहाड़ की चोटी पर जाना है। मुझे भी अपने संग उड़ा ले चलो।”
चिड़िया को यह छोटी फिश बहुत अच्छी लगी। चिड़िया नीचे बैठ गई। फिश उसके ऊपर चढ़ गई। चिड़िया उड़ने लगी। फिश को बड़ा मजा आने लगा पर यह क्या, फिश नीचे गिर गई। गिरे क्यों न? चिड़िया की पीठ के पंख बहुत ही नर्म और चिकने थे | वहां पकड़ने के लिए भी कुछ नहीं था। नीचे गिरने से मछली को चोट तो आई पर उसने परवाह नहीं की बच्चे इस बार पहले से भी ज्यादा जोर से हंसे।
चिड़िया की पीठ से गिरने पर फिश को पानी की जरूरत महसूस हुई। उसने देखा पहाड़ की उसी चोटी से पानी की एक धार लगातार नीचे गिर रही है। नीचे पानी की झील-सी बन गई है। वह उस पानी में कूद गई।
एक बच्चे ने कहा, “फिश पानी में कूद गई। इसका मतलब है उसने पहाड़ पर चढ़ने का इरादा छोड़ दिया है। उसकी टाय-टांय फिस्स हो गई है। आओ, हम भी उसे भूल कर पानी की इस पतली धार को देखने का मजा लेते हैं।”
अचानक एक बच्चा बोला, “अरे देखो, पानी की धार में वह क्या है?”
“अरे, यह तो वही फिश है। पानी की ऊपर से नीचे गिरती धार में यह तो ऊपर चढ़ रही है।”
“यह तो बिजली के करंट की तरह है। यदि बिजली के नंगे तार पर ऊपर से पानी की धार गिरे तो उस घार से करंट ऊपर की तरफ चला जाता है। लगता है ऊपर से गिरती इस धार के सहारे यह तो चोटी पर चढ़ जाएगी।”
थोड़ी देर बाद सबने देखा वह फिश पहाड़ की चोटी पर फुदक रही है।
बच्चों ने उसकी तरफ अपने हाथ हिलाए और कहा “तुम नहीं हो टांय-टांय फिस्स। तुम हो असली टांय-टांय फिश। बाय, बाय फिश…।”