प्रेरक प्रसंग १ – स्वर्ग- नरक
शास्त्रों में निपुण, प्रसिद्ध ज्ञानी एवं प्रख्यात संत श्री देवाचार्य के शिष्य का नाम महेन्द्रनाथ था। एक शाम महेन्द्रनाथ अपने साथियों के साथ उद्यान में टहल रहे थे। और आपस में वे किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। चर्चा का विषय था- स्वर्ग-नरक। किसी एक साथी ने महेन्द्रनाथ से पूछा- “क्यों मित्र! क्या मैं स्वर्ग जाऊंगा?”
महेन्द्रनाथ ने उत्तर देते हुए कहा- “जब मैं जायेगा, तभी आप स्वर्ग जाओगे।” उसके मित्र ने सोचा कि महेन्द्रनाथ को अभिमान हो गया है और सारे मित्रों ने मिलकर महेन्द्रनाथ की शिकायत अपने गुरु श्री देवाचार्य से कर दी।
गुरुदेव को पता था कि उनका शिष्य महेन्द्रनाथ न केवल निरहंकारी है बल्कि अल्प शब्दों में गंभीर ज्ञान की बातें बोलने वाला है। उन्होंने महेन्द्रनाथ को बुलाकर इस घटना के बारे में पूछा, और उसने अपना सिर हिलाकर इस बात की पुष्टि की। अन्य शिष्यों में इस घटना को देखने के बाद कानाफूसी शुरू हो गयी। श्री देवाचार्य ने मुस्कुराते हुए दोबारा वही प्रश्न पूछा- “अच्छा ये बताओ महेन्द्रनाथ! क्या तुम स्वर्ग जाओगे?” महेन्द्रनाथ ने कहा- “गुरुदेव! जब मैं जायेगा, तभी तो मैं स्वर्ग जा पाउँगा। “
श्री देवाचार्य शिष्यों को समझाते हुए बोले- “शिष्यों, इनके कहने का मतलब है जब “मैं” जाएगा यानि जब अहंकार जायेगा, तभी तो हम स्वर्ग के अधिकारी बन पाएंगे। जब-जब आपके मन में ये बातें आएंगी कि मैंने ऐसा किया, मैंने इतने पुण्य किये, मैंने सब किया। उस स्थिति में स्वर्ग के बारे में सोचना भी गलत है।”