अनकहा सच: नाजायज रिश्तों की जायज कहानी

अनकहा सच: नाजायज रिश्तों की जायज कहानी

हाँ… तो मैं बता रही थी निबलू के बारे में। मैंने माँ से कहा कि वह दिन भर मुझे देख कर सीटी बजाया करता है। इस पर मेरी माँ मुस्कुरा दी और वह मुझे सीटी बजाने के फ़ायदे बताते हुए इसे होंठों का एक बेहतरीन व्यायाम बताने लगी। मैंने चिढ़ते हुए कहा – “दुनिया की सारी माँ अपने बच्चों को पढ़ने लिखने के लिए कहती हैं और यहाँ तक की मंजुषा की मम्मी भी… फ़िर आप ही क्यों मुझे मंजूषा के उस अजीब सी शक्ल वाले भाई से दोस्ती करने के लिए कह रही है। मैं मर जाऊंगी पर इतने बदसूरत लड़के से कभी शादी नहीं करूंगी”। यह सुनकर मैंने डरते हुए माँ की तरफ़ देखा क्योंकि मुझे लगा कि कहीं एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरा स्वागत ना कर दे पर माँ की आँखों में आँसूं झिलमिला गए।

वे भरे गले से बोली – “कई बार जो हमें दिखता है, वह खूबसूरत नहीं होता पर वह हमारे लिए बहुत बेहतर होता है। तेरी उम्र एक ऐसी परियों की दुनियाँ है, जहाँ पर हर राजकुमारी अपने राजकुमार का ही सपना देखती है जबकि असलियत में यह दुनिया उसी राजकुमारी की कहानी के राक्षसों से भरी पड़ी हुई है। खुश किस्मत होती है वह राजकुमारी जिसे अपने ख़्वाबों का राजकुमार मिल जाता है, वरना मेरे जैसे भी तो लोग हैं इस दुनिया में…” कहते हुए माँ भरभरा कर रो पड़ी। मैंने माँ की ओर देखा और आज पहली बार मुझे उनके ऊपर तरस आया। रोने के कारण उनका गोरा चेहरा बिलकुल लाल हो गया था। नाक पर पसीने के मोती बिखरें थे और काले घुँघराले बाल जूड़े से खुलकर कंधे तक आ गए थे।

मैंने धीमे से कहा – “मेरे पापा कहाँ है? क्या तुम आज भी मुझे इस बात का जवाब नहीं दोगी”?

माँ बड़े ही प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली – “वह कायर थे। उन्हें जैसे ही पता चला कि तू मेरे पेट में है वो घर से कहीं चले गए। कुछ दिनों तक उनका कोई पता ठिकाना नहीं मिला। मैं पागलों जैसी यहाँ से वहाँ भटकती रही। उनके जितने दोस्तों को मैं जानती थी, मैंने सबसे पूछा पर कहीं कुछ पता नहीं चला किसी ने कहा शायद वो शहर छोड़कर चले गए थे”।

मैंने आश्चर्य से पूछा -“तो क्या आपके अलावा और किसी ने उन्हें ढूँढने की कोशिश नहीं की”?

“क्यों करता कोई… तेरे दादाजी ने ही तो उन्हें खुला सांड बना रखा था कि जहाँ चाहे मुँह मारता फिरे” माँ ने क्षोभ से कहा।

मैंने माँ का काँपता हाथ पकड़ा और कहा – “पर आख़िर हुआ क्या था”?

“मैं खुद ही कहाँ समझ पाई थी। जैसे ही मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ, मैंने सबसे पहले ये खुशखबरी सुनाने के लिए तेरे पापा के कमरे में गई, जहाँ पर वो कोई किताब पढ़ते हुए सिगरेट पी रहे थे। मैं भावातिरेक में कुछ बोल ही नहीं पाई और उनका हाथ मेरे पेट पर रख कर मुस्कुरा दी। दो पल को तो वो कुछ समझ ही नहीं पाएँ और हँस दिए पर जैसे ही वे समझे उन्होंने दाँत पीसते हुए कमरे की दीवार पर किताब दे मारी और जलती हुई सिगरेट ज़मीन पर फेंक दी। किताब के पन्नें फरफरा कर फ़र्श पर बिखर गए और जलती हुई सिगरेट उनकी चप्पल पर। मैं डर के मारे काँपने लगी। जब तक मैं कुछ समझ पाती…

माँ ने ये कहते हुए अपनी कलाई ज़ोरो से दबा ली, पर उन्हें बीच में रोकने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।

माँ जैसे खुद से ही कह रही थी – “तेरे आने की बात सुनकर ही तेरे पापा स्लीपर डालकर कमरे से निकल गए थे। मैं उनके पीछे-पीछे भागी पर तब तक वो कार लेकर वहाँ से चले गए”।

“पर मम्मी, मैं तो उनकी अपनी बेटी थी ना, तुम्हारी तो उनसे शादी हुई थी ना, फ़िर वह तुम्हें छोड़कर क्यों चले गए”?

माँ बीच वाली ऊँगली में पहनी माणिक की अँगूठी को आगे-पीछे करते हुए बोली – “तू मर्दों को नहीं जानती, तभी तो… तभी तो मैं तुझे समझाती हूँ कि किसी के काले गोरे रंग पर मत जा। मैं अपनी सहेली की शादी में गई थी। वहीं पर तेरे पापा से मिली थी। माँ की आँखों में जैसे पापा का चेहरा घूम गया। वह दरवाजे पर ऐसे देखने लगी, जैसे पापा उन्हें अभी भी वहीँ खड़े दिखाई दे रहे हो।

“तेरे पापा लाल शर्ट और काली पैंट पहने हुए एक कोने में खड़े पान खा रहे थे, पर उनकी भूरी आँखें और होंठ मुझे आज भी याद है। पता है तुझे, वह करीब दो घंटे तक एक ही जगह पर अपनी कोहनी टिकाए मुझे देख रहे थे। मेरी सभी सहेलियाँ मुझे छेड़ रही थी। ढोलक की थापों के बीच में वो हँस रही थी और तेरे पापा की ओर इशारा करके दिखा रही थी। उन सबका मुस्कुराना, मुझे छेड़ना सब जैसे एक सपने सा लग रहा था। मैं ख़ुद को परियों की शहज़ादी समझ रही थी और मन ही मन इतरा रही थी। थोड़ी देर पहले लगने वाली उमस भरी गर्मी का महीना मानों फूलों से भरा बसँत का मौसम हो गया था। मैं कल्पनालोक में विचर रही थी… उड़ रही थी… रह-रहकर मुझे एक मीठा सा एहसास हो रहा था कि कोई मुझसे इतना भी प्यार कर सकता है। मौका पाकर मैं झट से अपनी सहेली के कमरे में जाकर आईने को ताक आती और सोचती, क्या मैं वाकई इतनी सुन्दर हूँ या मोहब्बत अचानक हमें ख़ूबसूरत बनाकर पूरी कायनात को खुशनुमा बना देती है।

मेरी सहेलियों ने मुझसे जब बताया कि तेरे पापा ने उनमें से किसी को एक नज़र भी नहीं देखा तो मेरा मन मोर सा नाच उठा। मैंने अब पहली बार तेरे पापा की तरफ़ नज़र भर कर देखा। मेरी सबसे सुंदर सहेली शामली उनके आगे पीछे चक्कर काट रही थी पर वह बस टकटकी लगाए मुझे ही देख रहे थे। बचपन में फ़ैब्रिक पेंटिंग सीखते समय मैने चाँद और चकोर की बड़ी ही खूबसूरत पेंटिंग बनाई थी, पर आज पहली बार जैसे वह साकार हो कर मेरी आँखों के आगे आ गई थी। हाँ, आज मैं सचमुच चाँद ही तो लगती, अगर आज सफ़ेद झिलमिल सितारों वाली साड़ी पहन लेती और यह सोच कर मैंने अपनी नीली साड़ी की तरफ़ देखा और हँस दी। दूर खड़े तेरे पापा ने मेरे हँसने को मेरी सहमति समझा और मुस्कुरा दिए। तभी मुझे मेरी माँ आती दिखाई दी। अगर पूरे मोहल्ले में कहीं पत्ता भी खड़कता था, तो उन्हें जैसे बहती हवा सबसे पहले जाकर बता आती थी, और यहाँ तो बात उनकी अपनी बेटी की थी। वह भी लोगो को धक्का देते, दो लोगो के बीच रास्ता बनाते ऐसी दौड़ती चली आ रही थी, मानों किसी चोर का पीछा कर रहीं हो। जब वो मेरे पास आई, तो उनकी साँस धौकनीं सी चल रही थी।

माँ मेरा हाथ धीरे से दबाते हुए बोली जानती है इस ब्याह में सब तेरी ही बातें कर रहे हैं। वह लड़का देख रही है ना तू जो पिछले एक घंटे से तुझे ताकता ही चला जा रहा है। सब बता रहे हैं, बहुत अमीर है वह। माँ गदगद स्वर में बोली।

फिर मेरे और करीब आकर धीरे से बोली कि लोग कहते है, वे करोड़पति लोग है। सब कह रहे है कि तू उसे पसँद आ गई है। मैं तो कहती हूँ कि अगर तेरी उससे शादी हो जाए…

मैंने उनकी बात बीच में काट कर कहा, हाँ जानती हूँ, तो तुम गंगा नहाने चली जाओ।

अरे हाँ, सच कह रही हूँ, गंगा जी क्या… यमुना… नर्मदा… गोदावरी… सारे तीरथ एक साथ कर आऊँ। इतना अच्छा हीरो जैसा लड़का भाग्य से मिलता है। अरे तू उसको देख तो, कम से कम एक घंटे से ऊपर हो गया। मैं उसे बहुत देर से देख रही हूँ। वह बस तुझे ही एकटक देखे जा रहा है और जरा उसकी माँ को तो देख, जो गहनों में लकदक बैठी चमक रही है। हे भगवान… तू जिसको भी देता है, छप्पर फाड़ कर देता है एक हमें देखो सारी उम्र बीत गई पर इन काली बिछियों को साबुन के पानी के घोल में धोकर, कपड़े वाले ब्रश से रगड़-रगड़ कर चमका कर ही खुश हो गए और उस लड़के की माँ को तो देखो, दसों उँगलियों में कैसे हीरे जड़े मोटे-मोटे बिछुआ पहने बैठी है। माँ ने एक ओर ताकते हुए कहा।

फिर जैसे खुद ही नींद से जागी और मेरा हाथ पकड़कर मनुहार करते हुए कहने लगी – मेरी रानी बेटी, मेरी बात मान, मेरे पास तो पैसे है नहीं, तेरी शादी करवाने के लिए… और तू भाग वाग मत जाना किसी लुच्चे लफ़ंगे के सँग, क्योंकि उमर तो तेरी दुधारू गाय के बराबर हो रही है, हाँ, पर तू ज़रा दुबली पतली है तो लगती मिमियाती बछिया ही। अगर तू भाग गई तो मेरी बड़ी बदनामी हो जाएगी। गंगा मैया का स्नान तो छोड़ ही दे, मुझे ना जाने कहाँ मुँह धोने जाना पड़ेगा। माँ की बात सुनकर मैं हँस दी और मैंने कहा, ठीक है मैं तैयार हूँ। तुम बात कर लो और मैंने माँ को मुस्कुराते हुए हाँ कर दिया। जैसे उस वक्त मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। वो कहा गया है ना,विनाश काले विपरीत बुद्धि… जब बुद्धि विनाश की ओर जाती है तो उसे कुछ भी नहीं दिखता।

मेरे जन्म के समय ही पिता चले गए थे, इसीलिए माँ को मैं सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी लगती थी। माँ को लगता था, मेरे हाथ पीले हो जाए तो वह गंगा स्नान को हरिद्धार चली जाए। मुझे भी लगा, इतने अच्छे घर का लड़का है, कम से कम पैसे लत्ते की तो मुझे कभी कोई कमी नहीं रहेगी। मैंने माँ की ओर देखा, जो इस विवाह में भी एक साधारण पीली साड़ी, हरे ब्लाउज़ और नारँगी पेटीकोट के साथ पहनकर आई थी। लाख कोशिशों के बाद भी उनकी सस्ती पीली साड़ी का पल्लू, साड़ी की लंबाई कम होने के कारण, हरे ब्लाउज़ को ढक नहीं पा रहा था। माँ को देखकर मेरा दिल भीग गया। आज भी मुझे माँ की आँखों की चमक याद है, जब वो तेरे होने वाले पापा देख रही थी। ना चाहने पर भी ख़ुशी के मारें बार-बार उनकी भीगी पलकों पर आँसूं छलछला उठते थे।

पर माँ को कम से कम यह तो पता करना चाहिए था कि मैं ऐसी कौन सी हूर की परी थी कि एक घंटे के अंदर ही एक करोड़पति लड़का, जिसके आगे-पीछे नौकरों की फ़ौज चलती थी, जो दिखने में भी इतना खूबसूरत था अचानक ही मुझ पर मर मिटा। पर ऐसा ही होता है, जब किस्मत खराब होती है तो ऐसा ही होता है… और ये कहते हुए उनकी आँखों के जैसे सैकड़ों दिए एक साथ जले और बुझ गए। दो आँसूं आखों से होते हुए उनकी कलाई पर गिर पड़े।

और फिर माँ ने अपनी कलाई इतनी जोर से दबा ली कि उनकी हरी चूड़ी चिटक गई। मैंने माँ का हाथ तुरंत पकड़ते हुए पूछा – “यह क्या कर रही हो”। पहली बार मुझे माँ से सच में सहानुभूति हुई। मैंने बहुत सावधानी से उनकी टूटी हुई चूड़ियों के टुकड़े उठाए और एक तरफ़ रखते हुए कहा- “लगता है, आपका दिमाग खराब हो गया है”।

“हाँ.. बेटा दिमाग ही तो खराब हो गया था मेरा। मैंने सिर्फ आठ इंच का चेहरा देखा। उस चेहरे के पीछे जो कई स्याह चेहरे छिपे बैठे थे, उन्हें नहीं देख सकी। मुझे उसके आगे भी उसको देखना चाहिए था। मुझे उसके बारे में पता करना चाहिए था, शायद जानते बूझते हुए मैंने नहीं पता किया कि कहीं ऐसी किसी बात का पता ना लग जाए, जिससे मैं उससे शादी ना करूँ और मेरी आँखों के आगे मेरी माँ का चेहरा घूम गया। मेरी माँ के पास बिल्कुल पैसे नहीं थे। उन्होंने सोचा उनका भी बुढ़ापा आ जाएगा और मैं जानती हूँ, उनकी गलती नहीं थी। वह यह सोच कर खुश हो गई थी कि मैं रानी की तरह राज करुँगी। मैं शायद जिंदगी भर कुँवारी रहती तो भी वह मुझे बैठ कर खिलाती पर उनकी किस्मत बहुत खराब थी मुझसे भी ज़्यादा। हाँ, तो मैं तुझे बता रही थी कि कैसे तेरे पापा घर के बाहर चले गए थे, जब एक शाम को वो लौटकर आए तो सीधे धड़धड़ाते हुए कमरे में चले गए। मैं उनके पीछे-पीछे भागी जब तक वो कुछ कहते, मैं उनके सामने जाकर खड़ी हो गई और उनसे पूछा -“पर क्यों करवाऊं अबॉर्शन! क्या तुम्हें बच्चा नहीं चाहिए? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि हमारा पहला बेबी आ रहा है”।

“पागल हो गई है क्या? बच्चों की लाइन लग लगाएगी क्या… पहले लड़का चाहिए होगा, फ़िर लड़की चाहिए होगी… तुझे तेरा फिगर खराब करना है क्या? साँड़ जैसी हो जाएगी। बहुत जल्दी ही मटक-मटक के चलने लगेगी। कौन जाएगा मेरे साथ पार्टी में यहाँ वहाँ… ना दोस्तों के साथ नाच पाउँगा… ना कहीं घूम सकूँगा। बस तेरी तिमारदारी में लगा रहूँगा आया की तरह चौबीसो घंटे…”

“अरे, करोड़पति होना भी कोई आसान बात नहीं है। रुतबा कायम रखना पड़ता है”।

मुझे तेरे पापा की बात सुनकर जैसे चक्कर आने लगे। मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें हो क्या गया है। दो महीनों तक पलकों पर बैठाए रखने वाला आदमी बच्चा गिराने की बात इतने आराम से कर रहा है जैसे सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दे रहा हो।

मैंने तेरे पापा से हिम्मत करते हुए कहा – “पर लोग खुश होते हैं, शादी के बाद फैमिली बनाते हैं”।

“मैं नहीं बनाउँगा। कान खोलकर अच्छी तरह सुन लो, मैं बिल्कुल भी नहीं बनाउँगा”।

“पर आप बच्चा गिराने की बात कर रहे हैं, इससे मेरे शरीर पर भी नुकसान हो सकता है” मैंने आखरी शस्त्र फेंका।

“कुछ नहीं होगा तेरे शरीर को… तेरा शरीर बड़ा सोने का बना है ना… तू क्या समझती है जो पचास औरतें मेरा बच्चा गिरा चुकी है, सब का शरीर खराब हो गया है”।

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