साहस की जीत
अरावली के जंगलो के पास मत्स्य नामक एक राज्य था। वहां के राजा वीरभान अत्यंत साहसी एवं नेक इंसान थे। राजा वीरभान दिन-रात प्रजा की चिंता करते रहते थे। ईश्वर की कृपा ऐसी भी कि राज्य में किसी को कोई अभाव न था परंतु राजा वीरभान कई बार बैठे-बैठे उदास हो जाते थे। दरबारीकरण महाराज से उनकी का कारण पूछते किंतु महाराज से उनकी चिंता का कारण पूछते किंतु महाराज किसी को कोई उत्तर नहीं देते थे। दरअसल राजा वीरभान की चिंता का का कारण था उनकी लाड़ली राजकुमारी। राजकुमारी उनकी एकमात्र संतान थी, इसीलिए उसका नाम भी लाड़ली ही रखा गया था। अब वह लाड़ली बड़ी हो गई थी। महाराज उसके विवाह की बात करते तो लाड़ली भड़क उठती थी। राजकुमारी का कथन था कि उसकी शादी उसी की मर्जी से होगी। महाराज या महारानी ने अगर जबर्दस्ती की तो वह अपनी जान दे देंगी।
राजा वीरभान नगर की प्रजा के राजा थे किंतु वे एक बेटी के पिता भी थे। राजकुमारी के इक्कीसवें जन्मदिन पर महाराज ने फिर उससे विवाह की बात चलाई।
राजकुमारी बोली, “महाराज, मेरे विवाह की ऐसी क्या चिंता है? क्या मैं आप पर बोझ बन गई हूं?”
“नहीं बेटी, तुम बोझ नहीं हो। यह तो हमारा धर्म है कि हम समय पर तुम्हारा हाथ किसी योग्य राजकुमार के हाथ में सौंप दें”। महारानी ने राजकुमारी को प्यार से समझाते हुए कहा था। राजकुमारी बोली, “मैं अपनी पसंद के व्यक्ति से ही विवाह करना चाहती हूं।”
तुम्हारी पसंद क्या है! हमें भी तो बताओ। “महाराज ने जिज्ञासावश पूछा तो राजकुमारी ने बताया कि वह सबसे साहसी व्यक्ति से विवाह करना चाहती हैं।”
बहुत दिनों बाद महाराज के चेहरे पर मुस्कान और संतोष के भाव दिखाई दिये थे, क्योंकि उसकी लाड़ली शादी के लिए तैयार हो चुकी थी। राजा ने मंत्री को बुलाकर सारी बातें सुनाते हुए कहा कि मंत्री जी, राजकुमारी लाड़ली विवाह के लिए राजी हो गई हैं। वह चाहती हैं कि सबसे साहसी युवक से विवाह करें, किंतु समझ में नहीं आ रहा है कि हम सबसे साहसी युवक का चयन कैसे करेंगे?
कुछ देर सोचने के बाद मंत्री बोले, “महाराज, अगले माह राज्य में सालाना तलवारबाजी की प्रतियोगिता हो रही है। उसी समय श्रेष्ठ एवं साहसी युवक का पता चल जाएगा।”
“ठीक है मंत्री जी, राज्य में मुनादी करवा दें। जो कोई राजकुमारी से विवाह करना चाहे, वह अपने साहस का प्रदर्शन कर, स्वयं को श्रेष्ठतम सिद्ध करे।”