जिम्मेदारी किसकी: बबलू बेहद लाडला था। अब वह पांच वर्ष का हो गया था। स्कूल से उसे डर लगता था। मम्मी उसे कभी चॉकलेट, कभी टॉफियां देकर मानती लेकिन बबलू स्कूल जाने से पहले ही चॉकलेट और टॉफियां चट कर जाता। स्कूल में प्रवेश करते ही उसे पता चल जाता कि मम्मी अब उसे छोड़कर घर चली जाएंगी।
दूसरी कक्षा के बच्चों में सबसे ज्यादा चिल्लाने वाला बबलू ही था। बबलू का ज्यादा ध्यान शरारतों की ओर ही लगा रहता। उसकी किताबें और कापियों के पृष्ठ प्राय: फटे ही रहते।
जिम्मेदारी किसकी: दर्शन सिंह ‘आशट’
एक दिन नितिका मैडम अभी कक्षा में नहीं आई थीं। कक्षा में शोरगुल मचा हुआ था। बबलू अपनी एक कॉपी के पृष्ठ फाड-फाड़ कर जहाज बना कर उड़ाता हुआ चिल्ला रहा था। उसने एक और जहाज बनाकर दरवाजे की ओर जोर से उड़ाया। बिल्कुल उसी समय नितिका मैडम ने कमरे में प्रवेश किया। जहाज की नोक उनके माथे पर लगी। नितिका मैडम एकदम घबरा गईं। शुक्र है कि उनकी आंख बच गई। गुस्से में उनके माथे पर बल पड़ गए।
नितिका मैडम ने पता लगा लिया कि जहाज बबलू ने ही उड़ाया था। उन्होंने उसे पकड़कर तत्काल कमरे से बाहर निकाल दिया और बोलीं, “बाहर खड़े रहो। तुम्हारे लिए यही सजा है।”
बबलू सिसकने लगा। कुछ देर बाद नितिका मैडम ने उसे अंदर बुला लिया। उससे वादा लिया कि वह कमरे में कभी ऐसी हरकत नहीं करेगा लेकिन बबलू की शराततें ज्यों की त्यों ही रहीं।
वार्षिक परीक्षा का परिणाम निकल चुका था। बबलू भी ठीक-ठाक पास हो ही गया था।
एक दिन मम्मी बबलू की कॉपियों में स्कूल का काम देखने लगीं तो चकित रह गईं। उसकी कोई भी कॉपी ऐसी न थी, जिसके पृष्ठ फटे हुए न हों। पता चला कि उसने अपनी कॉपियों के पृष्ठ जहाज, किश्तियां और गेंदें बनाकर नष्ट किए हैं। स्कूल परिसर की कोई भी दिशा ऐसी नहीं थी, जिस तरफ उसका जहाज न उड़ा हो। स्कूल का माली क्यारियों और फूलों की झाड़ियों की शाखाओं में फंसे हुए कागज के टुकड़े निकालता। कई बार कागज के टुकड़े एक स्थान पर जमा हो जाते। परिणाम स्वरूप पानी बाहर बहने लगता।
बबलू को अपने दादा जी से बहुत स्नेह था। एक-दो दिन बाद वह दादा जी के साथ शाम को पड़ोस के पार्क में घूमने जरूर जाता। दादा जी बहुत सफाई पसंद थे।
एक दिन बबलू के दादा जी उसे पार्क में लेकर गए। उन्होंने देखा कि वहां कागज के कुछ टुकड़े बिखरे पड़े थे। लेकिन यह क्या? सैर करते-करते दादा जी कागज के टुकड़े उठाने लगे।
“दादा जी, ये क्या कर रहे हो? वह सामने देखो। मेरे दोस्त बंटी के पापा आ रहे हैं। क्या सोचेंगे? आप कोई….?
Swachh Bharat Abhiyan (Mission): India cleanliness drive
यह सुनकर दादा जी हंस पड़े। कहने लगे, “बबलू मैं समझ गया हूं कि तुम क्या कहना चाहते हो? यह पार्क हम सबके लिए ही बनाया गया है। हम यहां आकर सैर करते हैं। ताजी और खुली हवा लेते हैं। फूलों को देख कर हमारा मन हर्षाता है। जिस किसी ने भी खा-पीकर कागज के लिफाफे यहां फैंके हैं, मैं उसे मूर्ख कहूँगा। बेटा मैं बिखरे कागजों को उठाकर डस्टबिन में फैंक कर छोटा नहीं हो जाऊंगा। यदि हर कोई यही सोच ले कि यह मेरा काम नहीं है, तो पार्क में गंदगी बढ़ती ही जाएगी।”
इतने में ही बंटी के पापा बबलू के दादा जी के पास आए। उन्होंने उन्हें कागज के बिखरे टुकड़े उठाते देख लिया था।
“अंकल लाओ मुझे पकड़ाओ ये कागज के टुकड़े। मैं इन्हें डस्टबिन में फैंक आता हूँ।” यह कह कर बंटी के पापा ने उनके हाथ से कागज लिए और डस्टबिन में फैंकने के लिए चले गए।
घर लौटते समय बबलू इसी घटना के बारे में सोचता रहा।
अगले दिन बबलू स्कूल गया। उसने देखा कि फूलों की क्यारियों में कुछ कागज के टुकड़े बिखरे पड़े थे। ये वहीं कागज थे, जो कल बबलू ने अपना मनोरंजन करने के लिए जहाज वगैरह बनाकर फैंके थे। उसने एक-एक करके उन टुकड़ों को उठाया और डस्टबिन में फैंक आया।
“’शाबाश।” अचानक बबलू के कानों में यह शब्द सुनाई दिया। साथ ही किसी ने उसकी पीठ भी थपथपाई। बबलू ने पीछे मुड़कर देखा नितिका मैडम थीं।